#जीवनसंवाद: रिश्तों की दीमक, गलतफहमी!
Jeevan Samvad: ऐसा कैसे संभव है कि जो मुझे लगे, समझ आए, वही सही हो. जिंदगी में अक्सर ऐसा भी होता है, न आप गलत होते हैं ...अधिक पढ़ें
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दूसरे को गलत समझना. उस चीज़ के लिए किसी को जिम्मेवार मानना, जिसका उससे कोई संबंध ही न हो. गलतफहमी की शुरुआत ऐसे ही होती है. किसी से भी कहिए, आपको गलतफहमी तो नहीं हुई. जवाब यही मिलेगा, नहीं. मैं किसी की बातों में नहीं आता. मैं आपको इतना भोला दिखता हूं. हम तथ्य को इतना अधिक भावुक बना देते हैं कि उससे जुड़े सत्य से धीरे-धीरे अलग होते हुए अंतत: उससे दूर निकल जाते हैं.
हमें अपनी बात पर इतना अधिक विश्वास होता है कि अनजाने ही हम उसे अहंकार में बदल देते हैं. ऐसा अहंकार, जिसमें केवल वही सही है, जो मुझे लगता है. ऐसा कैसे संभव है कि जो मुझे लगे, समझ आए, वही सही हो. जिंदगी में अक्सर ऐसा भी होता है, न आप गलत होते हैं, न मैं सही.
यह सहज नहीं, खासा कठिन है. स्वयं को ऐसी जगह पर लाकर खड़ा करना जहां यह महसूस किया जा सके कि भले ही आप सामने वाले से सहमत ना हो लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह सही नहीं. हमारे दृष्टिकोण अलग हो सकते हैं, लेकिन इसका प्रेम से कोई संबंध नहीं. प्रेम तो नदी है, जिसके साथ तरह-तरह की वनस्पतियों से लेकर, पेड़ -पौधे, नाव-नाविक सब सफर करते हैं.
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कभी उनसे पूछिए, जो अपनों का साथ गलतफहमी की वजह से छोड़ देते हैं, किसी दिन अचानक उन्हें पता चलता है अब जो इस दुनिया में नहीं रहा, उसने किया ही नहीं था जिसकी उसे बिना किसी की गलती की सजा मिल गई ! गलतफहमी रिश्तों की दीमक है. धीरे-धीरे संबंधों की ऊर्जा, ऊष्मा, स्नेह चट कर जाती है. रिश्तों को आत्मीयता का उजाले देना है. गलतफहमी के दीमक से बचाना है.
पता: दयाशंकर मिश्र (जीवन संवाद)
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