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देश के सामने पानी की दोहरी समस्या है-एक तरफ पानी की कमी है, दूसरी तरफ स्वच्छ जल की अनुपलब्धता है। नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक करीब 40 फीसदी भारतीयों के पास पीने का पानी नहीं होगा। इस संकट का मुकाबला करने के लिए सरकार पहले से ही रणनीति बना रही है। प्रधानमंत्री ने जहां लोगों से जल संरक्षण में योगदान करने का आग्रह किया है, वहीं जल शक्ति मंत्रालय को 2024 तक देश के सभी घरों में नलों के जरिये स्वच्छ पानी पहुंचाने का काम सौंपा गया है।
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देश के सामने पानी की दोहरी समस्या है-एक तरफ पानी की कमी है, दूसरी तरफ स्वच्छ जल की अनुपलब्धता है। नीति आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक करीब 40 फीसदी भारतीयों के पास पीने का पानी नहीं होगा। इस संकट का मुकाबला करने के लिए सरकार पहले से ही रणनीति बना रही है। प्रधानमंत्री ने जहां लोगों से जल संरक्षण में योगदान करने का आग्रह किया है, वहीं जल शक्ति मंत्रालय को 2024 तक देश के सभी घरों में नलों के जरिये स्वच्छ पानी पहुंचाने का काम सौंपा गया है।
पर देश दूसरी जिस बड़ी समस्या का सामना कर रहा है, वह है स्वच्छ पेयजल तक पहुंच में कमी। नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई) में कुछ निराशाजनक आंकड़े सामने आए हैं। देश में लगभग 70 फीसदी दूषित पानी की आपूर्ति हो रही है। जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों के सूचकांक में 120वें स्थान पर है।
नीति आयोग की सीडब्ल्यूएमआई रिपोर्ट आगे कहती है कि अनुमानतः दो लाख लोग हर साल स्वच्छ पानी उपलब्ध न हो पाने के कारण मरते हैं। विश्व बैंक, यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि के कुछ अध्ययन बताते हैं कि भारत में लगभग 20 प्रतिशत संक्रामक रोग, जैसे-डायरिया, हैजा, टाइफाइड और वायरल हेपेटाइटिस, आदि प्रदूषित जल के कारण होते हैं।
भारतीयों द्वारा प्रदूषित जल के उपभोग के कारण हर साल कुल स्वस्थ जीवन वर्षों का जो नुकसान होता है, वह 3.5 से 4.5 करोड़ वर्षों के बीच कुछ भी हो सकता है। उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग, बगैर उपचारित किए या आंशिक रूप से उपचारित कर सीवेज वाटर और गंदे पानी की आपूर्ति, रसायनों के असुरक्षित प्रयोग और असुरक्षित और अवैज्ञानिक तरीकों से भूजल स्टोर करने और अन्य कारणों से हमारी नदियों के तटों का अधिकांश हिस्सा साल-दर-साल दूषित होता जाता है।