इसराइल में आज चुनाव: नेतन्याहू की होगी वापसी?
इस अशांत क्षेत्र में सब कुछ बहुत पास-पास है. ये छोटी जगह है. इस देश के अंदर और उस पार जाने में, जहां के लिए लंबी लड़ाइयां लड़ी गईं, ज़्यादा वक्त नहीं लगता है. दुश्मन, नाराज़गी, उम्मीदें और निराशा यहां से कभी ज़्यादा दूर नहीं होते.
मैं गाड़ी से जॉर्डन पहुंचा. ये सी ऑफ गैलिली और डेड सी के बीच पड़ता है. ये इलाक़ा अधिकतर रेतिला और पथरीला रेगिस्तान वाला है.
ये दुनिया की सबसे गहरी घाटियों में से एक है, जो समुद्री सतह से 1300 फीट (400मी) नीचे है. चट्टान पर बने मोनेस्ट्री ऑफ टेम्पटेशन के गुंबद नीचे दिखते फ़लस्तीनी शहर जैरिको की ओर झांक रहे हैं. दावा किया जाता है कि ये शहर दुनिया में सबसे पुराना है.
ईसाई मानते हैं कि वो शैतान इसी इलाक़े के पास से ईसा मसीह के सामने आया था, जो 40 दिन के लेंट दौरान उन्हें ललचाने की कोशिश कर रहा था.
मैं घाटी के दक्षिणी हिस्से तक पहुंचा, जिसे इसराइल ने 1967 से अपने क़ब्ज़े में लिया हुआ है. इस इलाक़े का ज़्यादातर हिस्सा उस साल के मध्य-पूर्व के युद्ध में नियंत्रण में लिया गया था.
ज़्यादातर वक़्त ये घाटी शांत रहती है. लेकिन इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इसे अपने देश के आम चुनाव में खींच लाए हैं. ये चुनाव आज हैं.
चुनावी वादे
उन्होंने घोषणा की है कि अगर वो प्रधानमंत्री के तौर पर वापस लौटते हैं तो वो जॉर्डन घाटी और वेस्ट बैंक की यहूदी बस्तियों पर अपना अधिकार जमाएंगे.
इस बात की ब्रिटेन समेत इसराइल के कई दोस्त देशों ने भी निंदा की है. कहा जा रहा है कि ये शांति की उम्मीदों वाले ताबूत में एक और कील ठोकने जैसा होगा. इससे इसराइल उस ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेगा, जिसे फलस्तीनी एक दूसरा देश बनाने के लिए लेना चाहते हैं.
नेतन्याहू पहले भी ऐसा कह चुके हैं. हो सकता है कि जीतने के बाद वो अपना वादा ना निभाएं. या हो सकता है निभा लें.
वो वोट के लिए इसराइली दक्षिणपंथियों को एक सुहावना चुनावी प्रलोभन दे रहे हैं. उन्हें वोट की ज़रूरत है, क्योंकि चुनाव पास हैं.
किसी भी और चीज़ से ज़्यादा ये नेतन्याहू के लिए एक जनमत संग्रह है. वो नेतन्याहू जो इसराइल के सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री रहे हैं.
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यरूशलम में मैं एक कट्टरपंथी रैली में गया. मैं शहर के एक धार्मिक पड़ोसी इलाक़े में गया. हज़ारे काले कोट और टोपी पहने, दाढ़ी वाले आदमी शहर के एक बड़े हाइवे पर भीड़ लगाए खड़े थे.
लोग वहां धार्मिक पार्टियों के एक गठबंधन को समर्थन की घोषणा करने आए थे, जो नेतन्याहू के कट्टर समर्थक थे. उन्हें नई सरकार बनाने के लिए उनके समर्थन की ज़रूरत होगी.
इसराइल के चुनाव के बाद हमेशा गठबंधन बनते हैं. जो शख्स प्रधानमंत्री बनने वाला होता है. अपने समर्थन के बदले में पार्टियां क़ीमत वसूलती हैं.
यहां अति-रुढ़िवादी नेतन्याहू के कट्टर समर्थक हैं. उनकी सीटों के बिना, वो सरकार नहीं बना सकेंगे.
इसराइल एक मज़बूत देश है. उसने बहुत कुछ हासिल किया है. लेकिन इसमें एक असुरक्षा की भावना भी है, जिसे यहूदियों और इसराइल देश का इतिहास समझा जा सकता है. नेतन्याहू इन डरों पर खेलते हैं. उनका अभियान अधिकतर ईरान, सीरिया और लेबनान में इसराइल के दुश्मनों पर आधारित होता है.
वो बार-बार ये संदेश देते हैं कि मध्य-पूर्व का पड़ोसी होना बहुत ही मुश्किल है और वो एकलौते नेता हैं, जो इसराइल को सुरक्षित रख सकते हैं.
चुनावी पोस्टरों में उन्हें अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के साथ दिखाया गया है. पोस्टरों में दोनों मुस्कुरा रहे हैं, जिससे ये दिखाने की कोशिश हो रही है कि नेतन्याहू ही इस अनोखे सहयोग को बनाए रख सकते हैं.
उनका प्रमुख प्रतिद्वंदी एक सेंटर-लेफ्ट गठबंधन है. इसका नाम है ब्लू एंड व्हाइट. एक रिटायर्ड जनरल बेनी गन्ज़ और और याएक लेपिड इस गठबंधन का नेतृत्व करते हैं, जो पहले एक टीवी पर्सनालिटी थे.
नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जिनसे वो इनकार करते रहे हैं. उनके विरोधियों का कहना है कि उन्होंने इसराइल को विभाजित कर दिया है और उसका स्तर गिरा दिया है.
बहरहाल इसराइल में चुनाव का दिन आ गया है और यहां का मौसम काफी सुहाना हो गया है.
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