कश्मीर में कितना मुश्किल है इस वक़्त माँ होना

  • पूनम कौशल
  • श्रीनगर से लौटकर, बीबीसी हिंदी के लिए
कश्मीर

इमेज स्रोत, Getty Images

श्रीनगर के अधिकतर इलाक़ों में भले ही सन्नाटा पसरा हो लेकिन यहां के लल दद्य अस्पताल के गलियारों में चहल पहल है.

बाहर के तनाव का असर यहां भी साफ़ नज़र आता है. श्रीनगर के इस सबसे बड़े मैटरनिटी अस्पताल में नन्ही ज़िंदगियों को दुनिया में ला रही मांओं के चेहरों पर उल्लास से ज़्यादा उदासी दिखाई देती है.

अपने सीने से नवजात बेटी को चिपकाए एक मां कहती है, "मेरी बेटी बेहद मुश्किल हालात में दुनिया में आई है, अल्लाह उसे बेहतर ज़िंदगी दे."

वहीं पहली बार मां बनीं समीरा कहती हैं, "हम जिस माहौल में बड़े हुए, नहीं चाहते थे वो माहौल हमारे बच्चों को मिले. अपनी बेटी को गोद में लिए मैं बस अमन की दुआ करती रहती हूं."

अस्पताल की एक डॉक्टर आंकड़ों पर नज़र डालते हुए बताती हैं, "रोज़ाना औसतन सौ बच्चे यहां जन्म ले रहे हैं. हमारी तैयारी पूरी है इसलिए कोई दिक़्क़त नहीं आ रही है."

अस्पताल पहुंचकर भले ही गर्भवती महिलाओं को संतोषजनक सुविधाएं मिल पा रही हैं लेकिन उनके लिए यहां तक पहुंचना बड़ी चुनौती है.

कश्मीर

इमेज स्रोत, Poonam Kaushal

गर्भवती महिलाओं की मुश्किलें

बीते पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त करने के बाद केंद्र सरकार ने भारत प्रशासित कश्मीर घाटी में बेहद सख़्त पाबंदियां लागू की हैं.

यूं तो इनसे सभी बेहाल हैं लेकिन इनका सबसे ज़्यादा असर महिलाओं और बच्चों पर नज़र आता है.

लल्ला देड अस्पताल में भर्ती होने का इंतज़ार कर रही एक गर्भवती महिला कहती हैं, "हम बमुश्किल यहां पहुंचे हैं. गाड़ी में मरीज़ होने के बावजूद हमें जगह-जगह रोका गया. उम्मीद है यहां सब ठीक होगा."

ग्रामीण इलाक़े से आई एक गर्भवती महिला के तीमारदार कहते हैं, "पाबंदियों की वजह से दवाइयां लेना और चेकअप कराना मुश्किल हो गया था."

कश्मीर घाटी के एक ग्रामीण इलाक़े में दो महीने बिताकर क़तर लौट रही एक महिला बताती हैं, "सबसे ज़्यादा परेशान गर्भवती महिलाएं हैं. अस्पताल जाने के लिए गाड़ी भी नहीं मिल पाती है."

वो कहती हैं, "सिर्फ़ गर्भवती महिलाएं ही नहीं बल्कि सभी बीमार लोगों के लिए हालात बेहद ख़राब हैं."

कश्मीर

इमेज स्रोत, Poonam Kaushal

मायूस मासूमियत

स्कूल बंद होने की वजह से बच्चे भी घरों में ही क़ैद हैं. श्रीनगर की एक खाली गली में तेज़ क़दमों से चलतीं दो बच्चियां मिलीं.

उनकी मासूमियत पर मायूसी हावी थी. वो इन दिनों स्कूल नहीं जा पा रही हैं. डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाली ये बच्चियां कहती हैं, "हड़ताल की वजह से स्कूल बंद हैं. हर जगह आर्मी है, हम खेल भी नहीं पा रहे हैं."

वो कहती हैं, "एग्ज़ाम आ रहे हैं, हम सब यही चाहते हैं कि स्कूल जल्दी खुल जाए."

सरकार का कहना है कि श्रीनगर और अन्य इलाक़ों में अधिकतर स्कूल खोल दिए गए हैं. लेकिन स्कूलों में बच्चे नज़र नहीं आते.

श्रीनगर के जीबी पंत अस्पताल के बाहर अपनी बेटी को गोद में लिए एक महिला कहती है, "मैं अपनी बच्ची के लिए अच्छा ही सोचती हूं. चाहती हूं मेरी बच्ची आगे चलकर अच्छा कर सके. लेकिन अभी हालत बहुत ख़राब है. स्कूल बंद होने की वजह से हमारे बच्चों की तालीम रुक गई है. अभी तो बस आग ही आग नज़र आती है."

कश्मीर

इमेज स्रोत, Poonam Kaushal

महिलाओं में बढ़ता ग़ुस्सा

पुरुष तो फिर भी घर के बाहर निकल पा रहे हैं. लेकिन महिलाएं पूरी तरह घरों में ही क़ैद हैं. इससे उनमें ग़ुस्सा और अवसाद बढ़ रहा है.

बेहद ग़ुस्से में एक महिला कहती हैं, "अधिकारियों को बता दिया गया था कि वो सामान इकट्ठा कर लें. लेकिन हमें आगाह नहीं किया गया. हमारे पास अब खाने पीने का सामान भी ख़त्म हो रहा है. हम घरों में मर रहे हैं लेकिन कोई ख़बर लेने वाला नहीं हैं."

वो कहती हैं, "कश्मीर घाटी में कुछ भी ठीक नहीं है. ज़ुल्म इतना बढ़ गया है कि बच्चे पेट में ही मरने लगेंगे क्योंकि प्रेग्नेंट महिलाएं अस्पताल ही नहीं पहुंच पा रही हैं."

वो सबसे ज़्यादा नाराज़ मीडिया की उन ख़बरों से हैं जिनमें कश्मीर घाटी में सब कुछ सामान्य होने का दावा किया जा रहा है.

तल्ख़ आवाज़ में वो कहती हैं, "मेरा मन करता है कि मैं टीवी तोड़ दूं. सरकार अगर हमसे बात करती, हमारी सुनती तो हम ख़ुशी-ख़ुशी भारत के साथ रहते."

कश्मीर

इमेज स्रोत, Poonam Kaushal

डर

छोड़कर पॉडकास्ट आगे बढ़ें
दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर (Dinbhar)

वो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख़बरें जो दिनभर सुर्खियां बनीं.

दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर

समाप्त

मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी का असर भी महिलाओं की मानसिक सेहत पर पड़ रहा है. मर्दों के घर से बाहर जाने पर वो इस चिंता में रहती हैं कि वो ठीक भी होंगे या नहीं.

डल के पास दुकान चलाने वाले एक कारोबारी बताते हैं, "अब लैंडलाइन ठीक हुआ तो हालात कुछ बेहतर हुए हैं. पहले मेरी मां पूरा दिन दरवाज़े के पास मेरे घर लौटने का इंतज़ार करती रहती थीं. अब दिन में कई बार फोन करके हालचाल पूछती हैं."

कश्मीर में महिलाओं के लिए हालात पहले भी मुश्किल थे लेकिन अब ये असहनीय हो रहे हैं. बीते कई सप्ताह से अपने घर की चारदीवारी में क़ैद एक महिला बस इतना ही कहती है, "हमारा दम घुट रहा है. घर से बाहर झांकते हैं तो सन्नाटा ही दिखाई देता है."

दस साल से लंदन में रह रहीं हिबा अपने मां-बाप का हालचाल जानने श्रीनगर पहुंची हैं. बहुत कोशिशों के बाद भी उनका अपने मां-पिता से संपर्क नहीं हो पा रहा था.

किसी तरह उनके पिता ने सीआरपीएफ़ के एक अधिकारी के फ़ोन से दिल्ली में उनके एक रिश्तेदार को फ़ोन किया जिन्होंने दूसरे फ़ोन से हिबा को उनके पिता की आवाज़ सुनवाई.

वो कहती हैं, "मेरे अब्बा ने सबसे पहले मुझसे यही कहा कि मैं सोशल मीडिया पर कुछ ना लिखूं. वो मेरी सुरक्षा को लेकर चिंतित थे और मैं उनकी सुरक्षा को लेकर."

हिबा कहती हैं, "इसके बाद मेरा घरवालों से कोई संपर्क नहीं हुआ. मेरे पिता को डायबिटीज़ है, मुझे नहीं पता था कि उनके पास दवाइयां हैं या नहीं."

कश्मीर

इमेज स्रोत, Poonam Kaushal

वो कहती हैं, "मैंने जैसा सोचा था ज़मीनी हालात उससे भी कहीं ज़्यादा ख़राब हैं. मेरी दादी अस्पताल में भर्ती हैं. मैं उनसे मिलने गई तो रास्ते में कम से कम दस बार रोका गया. कर्फ्यू पास होने के बावजूद हमें रोका गया क्योंकि वो सड़कों पर किसी तरह की आवाजाही नहीं चाहते थे. मैं अपनी दादी का हाल नहीं जान सकी."

हिबा कहती हैं कि उन्होंने कश्मीर छोड़ा क्योंकि उनके लिए यहां मौके नहीं थे. वो कहती हैं, "यहां हमारा कोई कश्मीर नहीं हैं. मुझे अपना बचपन याद है. शाम को साढ़े पांच बजे हमारे घर के दरवाज़े बंद हो जाते थे."

हिबा के मुताबिक उनकी चचेरी बहनें इन दिनों बेहद परेशान हैं. वो कहती हैं, "बीती रात मैं अपनी कज़िन बहन से बात कर रही थी. वो सातवीं क्लास में हैं. वो अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित है. उसका सिलेबस पूरा नहीं हुआ है और स्कूल बंद हैं. वो स्कूल, अपने दोस्तों और अपनी पढ़ाई को बेहद मिस कर रही है. सबसे अहम ये है कि वो स्कूल नहीं जा पा रही है."

हिबा कहती हैं, "मैं दस साल से लंदन में रह रही हूं. ये पहली बार है जब इंडिया के बाहर कश्मीर को इतनी अटेंशन मिल रही है. भारत के दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के दावे पर सवाल उठ रहा है."

चिट्ठी

इमेज स्रोत, Poonam Kaushal

प्रेमियों का मिलना मुश्किल

संचार सेवाएं ठप होने का असर प्रेमी जोड़ों पर भी हुआ है.

श्रीनगर एयरपोर्ट के पास काम करने वाले कुछ नौजवानों का कहना था कि वो चिट्ठियां लिखकर अपनी ख़ैर-ख़बर प्रेमिकाओं को दे रहे हैं.

अपनी प्रेमिका को लिखे पत्र में एक युवा ने लिखा है, "मैं जानता हूं कि तकनीकी रूप से हम दोनों का संपर्क नहीं हो रहा है. जिस तरह तुम मुझे छोड़ कर गईं वो अच्छा नहीं था. मैं तुम्हारी समस्या समझता हूं. मैं ये पत्र ये बताने के लिए लिख रहा हूं कि अब मैं मैनेजर बन गया हूं और अब मैं तुम्हारा खयाल रख सकता हूं. मैं पूरी स्पष्टता से कह रहा हूं कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं."

वहीं एक अन्य नौजवान ने बताया कि मोबाइल बंद होने के बाद से ही वो अपनी प्रेमिका से बात नहीं कर सका है. उसे नहीं मालूम कि वो आगे कब उससे बात कर पाएगा.

वो बस इतना ही कह पाता है, "सरकार के इस फ़ैसले ने मेरी प्रेम कहानी ख़त्म कर दी है. मैं नहीं जानता कि वो कैसी है, क्या कर रही है."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)