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जन्मदिन विशेष: इंडियन आर्मी के इस अफसर का पाकिस्तान में था खौफ, कोड नेम था ‘शेरशाह’

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जन्मदिन विशेष: इंडियन आर्मी के इस अफसर का पाकिस्तान में था खौफ, कोड नेम था ‘शेरशाह’

फाइल फोटो- कैप्टन शहीद विक्रम बत्रा को शेरशाह नाम का कोड दिया गया था. इस नाम का खौफ पाकिस्तान तक था.
फाइल फोटो- कैप्टन शहीद विक्रम बत्रा को शेरशाह नाम का कोड दिया गया था. इस नाम का खौफ पाकिस्तान तक था.

कारगिल की लड़ाई खत्म होने के बाद इस जांबाज़ अफसर को बहादुरी के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र (paramveer chakra) से भी नव ...अधिक पढ़ें

    शिमला. कारगिल (Kargil) की लड़ाई बॉर्डर पर लड़ी जा रही थी, लेकिन इंडियन आर्मी (Indian Army) के इस अफसर का खौफ पाकिस्तान (Pakistan) के अंदर तक था. इसका जीता-जागता सबूत था, लड़ाई के दौरान वायरलैस पर पकड़ी गई पाक सेना की बातचीत. कारगिल की लड़ाई खत्म होने के बाद इस जांबाज अफसर को बहादुरी के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र (Paramveer chakra) से भी नवाज़ा गया था. यह अफसर थे 'यह दिल मांगे मोर' के नाम से युवाओं के दिल-दिमाग में जगह बनाने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा (Vikram Batra).

    हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे विक्रम बत्रा पढ़ाई खत्म करने के बाद ही सेना में आ गए थे. ट्रेनिंग पूरी करने के 2 साल बाद ही उन्हें लड़ाई के मैदान में जाने का मौका मिला था. उनके हौसले और कद-काठी को देखते हुए उन्हें कोड नाम 'शेरशाह' दिया गया था.

    ये ही वो शेरशाह थे, जिसके मुंह से 'ये दिल मांगे मोर' सुनकर ही दुश्मन समझ जाया करते थे कि ये शांत बैठने वाला नहीं है. उनके पिता जीएल बत्रा बताते हैं कि आज भी पाकिस्तान में विक्रम बत्रा को शेरशाह के नाम से याद किया जाता है. आइए जानते हैं विक्रम बत्रा की उसी दिलेरी को उनके पिता और मां जयकमल बत्रा की जुबानी.

    फाइल फोटो- परमवीर चक्र विजेता कैप्टन शहीद विक्रम बत्रा के माता-पिता.


    ट्रेनिंग के दो साल बाद ही पहुंच गया था लड़ाई के मैदान में
    उनकी मां जयकमल बत्रा ने बताया, ‘1996 में विक्रम ने इंडियन मिलिट्री अकादमी में दाखिला लिया. 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में 6 दिसम्बर 1997 को लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर विक्रम की जॉइनिंग हुई. 1 जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध के लिए भेजा गया. हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया. इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया. बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया.'



    5140 चोटी पर खड़े होकर कहा था ‘ये दिल मांगे मोर’
    'विक्रम बत्रा ने इस चोटी के शिखर पर खड़े होकर रेडियो के माध्यम से ‘ये दिल मांगे मोर’ को उद्घोष के रूप में कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया. अब हर तरफ बस ‘ये दिल मांगे मोर’ ही सुनाई देता था. इसके बाद सेना ने चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया. इसकी बागडोर भी कैप्टन विक्रम को ही सौंपी गई. उन्होंने जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा. मिशन लगभग सफलता हासिल करने की कगार पर था लेकिन तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए. कैप्टन बत्रा नवीन को बचाने के लिए पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ये शेर शहीद हो गया.’

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    Tags: Indian army, Kargil war, Pakistan army