Economic Slowdown: भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर भीषण मंदी की चपेट में है। घटती डिमांड की वजह से कार कंपनियों को न केवल प्रोडक्शन घटाना पड़ा है, बल्कि काफी लोगों की नौकरियां भी गई हैं। कारों की सेल्स बढ़ाने के लिए इंडस्ट्री की ओर से जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) में राहत देने की मांग की गई है। ऐसे में सभी की निगाहें 20 सितंबर को गोवा मे होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक पर टिक गई है। हालांकि, केंद्र और राज्य सरकारों के रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों का मानना है कि अगर सरकार ऐसा कोई कदम उठाती है तो उसे काफी राजस्व का नुकसान होगा।

टैक्स विभाग के आकलन के मुताबिक, अगर 28 पर्सेंट जीएसटी को घटाकर 18 पर्सेंट करने के ऑटोमोबाइल सेक्टर की डिमांड को मान लिया गया तो सरकार को जीएसटी रेवेन्यू में कम से कम 30 हजार करोड़ रुपये की चपत लग सकती है। इस रकम में वो फायदा भी शामिल है, जो टैक्स छूट के बाद बिक्री में आई उछाल की वजह से होगा। बता दें कि इससे पहले कोटक इंस्टिट्यूशनल इक्वीटिज की एक रिपोर्ट का आकलन था कि अगर पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर में 10 प्रतिशत जीएसटी की छूट दी गई तो सरकार पर सालाना 45 हजार करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। बता दें कि दोपहिया समेत सभी वाहनों पर 28 प्रतिशत जीएसटी का दर लागू होता है। इसके अलावा, गाड़ियों के मॉडल के आधार पर 1 से लेकर 22 प्रतिशत का सेस (उपकर) भी लगाया जाता है।

एक राज्य सरकार के टैक्स अधिकारी के मुताबिक, जीएसटी काउंसिल की फिटमेंट कमेटी दरों में कटौती के असर पर विचार कर रही है। उधर, कई राज्य सरकार आगामी मीटिंग में जीएसटी कटौती के कदम का विरोध कर सकती हैं। 18 प्रतिशत जीएसटी का मतलब है कि टैक्स में 10 पर्सेंटेज पॉइंट की छूट देना। दूसरा नुकसान यह है कि जीएसटी कंपनसेशन एक्ट के तहत, उच्चतम स्लैब यानी 28 प्रतिशत के अलावा किसी अन्य श्रेणी में आने वाले उत्पादों पर सेस नहीं वसूला जा सकता। राज्य सरकार के नजरिए से टैक्स आय में होने वाला यह नुकसान बेहद अहम है क्योंकि उन्हें 2022 तक हर साल 14 प्रतिशत जीएसटी रेवेन्यू में इजाफे के दर से टैक्स वसूलना है।