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छिछोरे : फिल्म समीक्षा

छिछोरे : फिल्म समीक्षा - Chhichhore, Movie Review, Sushant Singh Rajput, Nitesh Tiwari, Shraddha Kapoor, Samay Tamrakar, Chhichhore movie review in hindi
कॉलेज लाइफ पर बनी हुई फिल्में अधिकतर सफल रहती हैं क्योंकि यह जीवन का सुनहरा दौर माना जाता है। जो उससे गुजर चुके हैं उन्हें अपने पुराने दिन याद आ जाते हैं और जो गुजर रहे हैं वो अपने वर्तमान को स्क्रीन पर देख खुश होते हैं। इसी कॉलेज और होस्टल लाइफ को फिल्म निर्देशक नितेश तिवारी ने 'छिछोरे' के जरिये परदे पर उतारा है। 
 
छिछोरे कहानी है अनिरुद्ध (सुशांत सिंह राजपूत) और उसकी एक्स वाइफ माया (श्रद्धा कपूर) की। उनका बेटा राघव जेईई की प्रवेश परीक्षा में असफल हो जाता है। अपने आपको 'लूज़र' मानते हुए वह बिल्डिंग से कूद जाता है। गंभीर अवस्था में उसे अस्पताल में भर्ती किया जाता है। डॉक्टर बताते हैं कि दवाई इसलिए ज्यादा असर नहीं कर पा रही हैं क्योंकि वह जीना ही नहीं चाहता। 
 
राघव को अनिरुद्ध अपनी होस्टल लाइफ के किस्से सुनाने का फैसला करता है। वह अपने पुराने दोस्तों सेक्सा (वरुण शर्मा), एसिड (नवीन पोलिशेट्टी), मम्मी (तुषार पांडे), बेवड़ा (सहर्ष कुमार शुक्ला) और डेरेक (ताहिर राज भसीन) को बुलाता है। 
 
सभी मिल कर राघव को अस्पताल में किस्से सुनाते हैं कि किस तरह से उनके होस्टल एच 4 में रहने वाले स्टूडेंट्स को एच 3 में रहने वाले स्टूडेंट्स 'लूज़र' कह कर चिढ़ाया करते थे क्योंकि खेल पर आधारित जनरल चैम्पियनशिप में उनका होस्टल कभी भी जीता नहीं था। 
 
इन किस्सों को सुनाने का उद्देश्य यह रहता है राघव असफलता से भी जूझना सीखे और जिंदगी से प्यार करे। एक परीक्षा में पीछे रहने का यह मतलब नहीं है कि उसके जीने का मकसद खत्म हो गया है। 
 
नितेश तिवारी, पियूष गुप्ता और निखिल मेहरोत्रा ने मिलकर इस फिल्म को लिखा है। कहानी में होस्टल लाइफ की मस्ती है, पढ़ाई के क्षेत्र में बच्चों पर दबाव का जिक्र है, स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन है, जिंदगी में दोस्तों का महत्व है और अनिरुद्ध-माया की प्रेम कहानी और तलाक का ट्रैक भी है। 
 
फिल्म देखते समय थ्री इडियट्स, स्टूडेंट्स ऑफ द ईयर और हिचकी जैसी फिल्में दिमाग में आने लगती हैं। इन फिल्मों में अलग-अलग मुद्दों को दर्शाया गया था और छिछोरे में भी यही सब बातें नजर आती हैं। 
 
फिल्म अनिरुद्ध और उसकी टीम के वर्तमान और अतीत में झूलती रहती है। जब-जब होस्टल लाइफ के सीन दिखाई देते हैं फिल्म मनोरंजक लगती है, लेकिन वर्तमान वाले सीन बोर करते हैं। 
 
स्पोर्ट्स कॉम्पिटिशन शुरू होते ही फिल्म रूटीन बन जाती है और उसकी ताजगी खत्म हो जाती है। स्टूडेंट ऑफ द ईयर के ट्रैक पर फिल्म चलने लगती है और फिल्म का बहुत बड़ा हिस्सा इसी पर खर्च किया गया है। 
 
अनिरुद्ध और उसकी टीम अपने होस्टल को जिताने के लिए तरकीब लगाते हैं वो फिल्म की गंभीरता को प्रभावित करती है। केवल सामने वाले की हूटिंग करने से ये उसे रात में जगाने से ही आप मैच नहीं जीत जाते। नि:संदेह ये दृश्य मनोरंजक हैं, लेकिन फिल्म जिस बात को पेश करने के लिए बनाई गई है उसमें ये फिट नहीं बैठती हैं। 
 
छिछोरे दोहराव का भी शिकार है। डॉक्टर द्वारा अनिरुद्ध और माया को उनके बेटे की हालत बताने वाले दृश्यों में वहीं की वहीं बातें दोहराई गई हैं। 
 
श्रद्धा और अनिरुद्ध के बीच तलाक क्यों हुआ? इस मामले को ठीक से पेश नहीं किया गया है, जबकि इसको लेकर कई बातें फिल्म में हुई हैं। कहने का मतलब ये कि फिल्म कई ट्रैक्स पर चलती हैं, लेकिन होस्टल लाइफ को छोड़ अन्य ट्रैक अपील नहीं करते हैं। 
 
दंगल जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म देने के बाद नितेश तिवारी चाहते तो बड़े स्टार के साथ फिल्म बना सकते थे, लेकिन उनकी इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उन्होंने उन सितारों के साथ फिल्म बनाई जिनका बॉक्स ऑफिस मूल्य ज्यादा नहीं है और कहानी के हिसाब से कलाकारों का चयन किया। 
 
नि‍तेश तिवारी लेखन के बजाय अपने निर्देशन से प्रभावित करते हैं और कुछ हद तक उन्होंने फिल्म को देखने लायक बनाया है। कुछ दृश्य हंसाते हैं और कुछ इमोशनल करते हैं, लेकिन सिर्फ इतने की अपेक्षा नितेश से नहीं की जा सकती। माना कि उनकी फिल्म मैसेज देती है, लेकिन इसके लिए जो उन्होंने कहानी चुनी उसमें नयापन नहीं झलकता। 
 
यदि मनोरंजन की भी बात करें तो फिल्म अच्छे और बोरिंग दृश्यों के बीच हिचकोले खाती रहती है और मनोरंजन का बहाव एक जैसा नहीं है। 
 
सुशांत सिंह राजपूत अपने अभिनय से प्रभावित नहीं कर पाए। खासतौर पर उम्रदराज वाले किरदार में उनका अभिनय कच्चा है। श्रद्धा कपूर भी एक जैसा एक्सप्रेशन लिए पूरी फिल्म में नजर आईं। 
 
प्रतीक बब्बर, नवीन पोलिशेट्टी, तुषार पांडे, सहर्ष कुमार शुक्ला और डेरेक ताहिर राज भसीन का अभिनय ठीक है। पूरी फिल्म में वरुण शर्मा का अभिनय देखने लायक है। उनका हर एक्सप्रेशन लाजवाब है और फिल्म का भार उन्होंने ही अपने कंधों पर उठाया है। 
 
फिल्म के मिजाज के मुताबिक गीत-संगीत है जो फिल्म देखते समय अच्छा लगता है। 
 
कुल मिलाकर 'छिछोरे' ऐसी फिल्म है जो तभी पसंद आती है जब बहुत कम उम्मीद के साथ देखी जाए। 
 
निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : नितेश तिवारी
संगीत : प्रीतम
कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, श्रद्धा कपूर, वरुण शर्मा, प्रतीक बब्बर, ताहिर राज भसीन
2 घंटे 25 मिनट 38 सेकंड 
रेटिंग : 2.5/5 
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