मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली ने कई ऐसे फैसले लिए, जिनको आम आदमी हमेशा याद रखेगा। एम्स में 12 बजकर सात मिनट पर उन्होंने आखिरी सांस ली है। वित्तीय तौर पर देश में कालेधन, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए यह जेटली की पहल थी, कि सरकार इतने कठिन फैसले ले सकी।
फिलहाल जेटली स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से दूर थे, लेकिन तब भी वो गाहे बगाहे किसी प्रमुख मुद्दे पर अपनी राय को सोशल मीडिया के द्वारा रखने से पीछे नहीं हटते थे। फिलहाल वो राज्यसभा से सांसद थे।
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने चलन में मौजूद 500 और एक हजार रुपये के नोट को बंद कर दिया था। सरकार के इस अभूतपूर्व कदम की जानकारी पीएम के अलावा केवल जेटली और कुछ चुनिंदा लोगों को ही थी। नोटबंदी करने का फैसला लेने में जेटली की अहम भूमिका रही थी।
जेटली ने तब कहा था कि बगैर किसी सामाजिक अशांति और आर्थिक व्यवधान के 86 फीसदी करेंसी को बदलना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा था कि जब चलन में रहने वाले नोटों को अमान्य कर नए नोट चलन में लाए जाते हैं तो शुरुआत में थोड़ी असुविधा होती है। उन्होंने कहा कि सरकार के फैसले के बाद से देश में कहीं कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी।
नोटबंदी के बाद देश भर में डिजिटल बैंकिंग को बढ़ाने का श्रेय भी जेटली को जाता है। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, मोबाइल वॉलेट, पीओएस मशीन, यूपीआई भीम ऐप जैसी सेवाओं को पूरे देश में शुरू करवाया गया था। इसके चलते नगद ट्रांजेक्शन में काफी कमी देखने को मिली और अब लोग इनका अधिक संख्या में प्रयोग करने लगे हैं।
एक जुलाई 2017 को आधी रात से देश भर में जीएसटी लागू हो गया था। इस दिन से देश भर में चल रहे 17 टैक्स और 26 सेस खत्म हो गए थे। जीएसटी काउंसिल ने देश भर में पांच स्लैब लगाए थे, जिनके हिसाब से ही लोगों को टैक्स देना शुरू किया था। केवल पेट्रोल-डीजल, तंबाकू उत्पाद, शराब, रसोई गैस सिलेंडर जैसी वस्तुओं को छोड़कर के बाकी सभी को इसके दायरे में लाया गया था।
वहीं वस्तुओं के एक राज्य से दूसरे राज्य में लाने-जाने के लिए ई-वे बिल एक अप्रैल 2018 से लागू किया गया था। इससे कारोबारियों को सामान ले जाने पर राज्यों के नाके पर चेकिंग कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
जेटली की अध्यक्षता में ही एसबीआई में सहयोगी बैंकों व भारतीय महिला बैंक का विलय हुआ था। इसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा में देना बैंक और विजया बैंक का विलय किया गया था।
कर्ज न चुकाने वाले बकाएदारों से निर्धारित समय के अंदर बकाए की वसूली के लिए अरुण जेटली इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी कोड लेकर आए। सर्वप्रथम यह बिल 21 दिसंबर 2015 को प्रकाशित हुआ था। लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद 28 मई 2016 को यह बिल लागू हुआ था। इस बिल के लागू होने के बाद बैंकों और अन्य लेनदारों को दिवालिया कंपनियों से वसूली में मदद मिल रही है। 28 फरवरी 2019 तक इस बिल के तहत दिवालिया कंपनियों से 1.42 लाख करोड़ रुपये की वसूली हो चुकी है।
देश के सभी परिवारों खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र के परिवारों तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के उद्देश्य से अरुण जेटली के कार्यकाल में 28 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू हुई थी। इस योजना तहत लोगों के घर-घर जाकर बैंक खाते खोले गए थे। आंकड़ों के अनुसार, जनधन योजना के तहत अब तक करीब 33 करोड़ जनधन खाते खोले जा चुके हैं। इसमें 50 फीसदी से ज्यादा खाते महिलाओं के हैं।
देश में गरीबों को फायदा पहुंचाने के लिए कई योजनाओं के तहत सब्सिडी दी जा रही थी। इसमें भ्रष्टाचार की बड़ी शिकायतें थीं। तत्कालीन मनमोहन सरकार ने सब्सिडी में हो रहे भ्रष्टाचार को रोकने के लिए लाभार्थियों को सीधे बैंक खाते में सब्सिडी का पैसा देने की योजना बनाई थी। इस योजना को लागू भी किया गया, लेकिन इसके मनमाफिक परिणाम नहीं मिले। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद अरुण जेटली के नेतृत्व में इस योजना को कड़ाई से लागू किया गया। आज सभी योजना की सब्सिडी सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में ट्रांसफर की जाती है।
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