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आरोप लगाने के बजाय इतिहास में झांकें पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम और कांग्रेस

हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से साफ मना कर दिया और सुप्रीम कोर्ट को नहीं लगता है भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम साहब का केस इतना जरूरी है कि तत्काल सुन लिया जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 21 Aug 2019 10:19 PM (IST)Updated: Thu, 22 Aug 2019 12:05 AM (IST)
आरोप लगाने के बजाय इतिहास में झांकें पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम और कांग्रेस
आरोप लगाने के बजाय इतिहास में झांकें पूर्व केंद्रीय मंत्री चिदंबरम और कांग्रेस

प्रशांत मिश्र [ त्वरित टिप्पणी ]। चौबीस घंटे से अधिक वक्त तक सीबीआइ और ईडी की टीम की पहुंच से बाहर रहे चिदंबरम साहब अब अवतरित हुए। प्रेस कांफ्रेंस की और फिर से यही जताया कि वह निर्दोष हैं और उन्हें बेवजह प्रताडि़त किया जा रहा है। न्याय का तकाजा भी याद दिलाया।

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ध्यान रहे कि हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत देने से साफ मना कर दिया और सुप्रीम कोर्ट को नहीं लगता है भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम साहब का केस इतना जरूरी है कि तत्काल सुन लिया जाए। यानी पूरा मामला कानून का है और सवाल राजनीति का उठाया जा रहा है।

कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि राजनीतिक दबाव में चिदंबरम को गलत फंसाया जा रहा है। राजनीति में इस तरह के आरोप प्रत्यारोप चलते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस को और खासकर चिदंबरम को इतिहास में झांककर याद कर लेना चाहिए कि उस समय कैसी राजनीति हुई थी जब गुजरात दंगे और इशरत जहां मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को फंसाया गया था। घंटों तक उन्हें एसआइटी और सीबीआइ के दफ्तर में बिठाया गया था। हर पहलू पर कोर्ट ने दोनों को क्लीन चिट दिया था। यहां कोर्ट से भी चिदंबरम को राहत नहीं मिली है।

गुजरात दंगा मामला

गुजरात दंगे को लेकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ राष्ट्रव्यापी राजनीतिक अभियान चला था। चौतरफा घेरने की कोशिश हुई थी। उन्हें एसआइटी में जाकर अपनी सफाई देनी पड़ी थी। और आखिरकार कोर्ट ने उन्हें बरी किया। अमित शाह के मामले में तो सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय और तत्कालीन गृह मंत्री चिदंबरम का हस्तक्षेप साबित हुआ था।

इशरत जहां मामला

जब आतंकी इशरत जहां का मामला आया तो चिदंबरम के अंडर सेक्रेटरी आरबीएस मणी ने एफीडेविट देकर कहा कि खुफिया विभाग की रिपोर्ट पुख्ता नहीं है और इसीलिए सीबीआइ से जांच कराई जानी चाहिए। दरअसल खुफिया विभाग का मानना था कि इशरत जहां आतंकी है, लेकिन तत्कालीन सरकार चाहती थी कि उसे निर्दोष साबित कर हत्या का दोष शाह पर मढ़ा जाए।

ध्यान रहे कि पहले इसी आरबीएस मणी ने कोर्ट से खुफिया विभाग की रिपोर्ट पर अपनी मुहर लगाई थी। पूरी बात का खुलासा तो तब हुआ जब मणी ने ही बताया कि चिदंबरम के कहने पर उन्होंने खुफिया विभाग की रिपोर्ट को गलत बताते हुए सीबीआइ जांच की मांग की थी। साफ था कि वह मामला राजनीति से प्रेरित था। बाद में क्या हुआ यह सभी जानते हैं। अमित शाह को कई-कई बार सीबीआइ ने बिठाया, पूछताछ की, चार्जशीट दाखिल किया और फिर गिरफ्तार किया। उन्हें ढूंढने के लिए सीबीआइ को दौड़ नहीं लगानी पड़ी। चिदंबरम साहब सीबीआइ और ईडी को दौड़ा रहे हैं।

बताया जाता है कि 2018 में जब इडी ने चिदंबरम और उनके पुत्र कार्ति को बुलाया था तो वह पहले ही बेल लेकर वहां गए थे। आखिर वह इतने डरे हुए क्यों थे। वह तो खुद बहुत ही तेज तर्रार वकील हैं, पूछताछ का सही जवाब दे सकते हैं, लेकिन नहीं..।

पूछताछ में सहयोग नहीं किया

इडी का कहना है कि पूछताछ में भी उन्होंने कभी सही जवाब नहीं दिया। हर बात को झुठलाते रहे जबकि दस्तावेजी सबूत कुछ और कहते हैं। अब राहुल गांधी, प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता आरोप लगा रहे हैं कि राजनीति के कारण चिदंबरम को फंसाया गया है। उन्हें भी पहले यह बताना चाहिए कि आरबीएस मणी के बारे में वह क्या कहेंगे।

आईएनएक्स मीडिया मामला

आईएनएक्स मीडिया मामले में हाई कोर्ट को वह अपनी दलीलों से संतुष्ट नहीं कर पाए और सुप्रीम कोर्ट उनकी बेचैनी से प्रभावित नहीं है। कोर्ट में तो उन्हें यह बताना होगा कि भ्रष्टाचार के ईडी के दस्तावेजी सबूत के खिलाफ उनके पास ऐसा क्या है जो चिदंबरम साहब का निर्दोष साबित करता है।


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