बंगाल की सियासी पिच पर बीजेपी और टीएमसी के बीच सीधा मुकाबला बनने की स्थिति बनने के बाद लेफ्ट कहीं पीछे छूट गया है. लोकसभा में एक भी सीट नहीं होने और महज 6.28% वोट शेयर के साथ लेफ्ट पार्टियां अपना वजूद बचाए रखने के लिए जूझ रही हैं और वो भी और कहीं नहीं, उस बंगाल में जो उनका कभी सबसे मजबूत किला रह चुका है.
बीजेपी ने आधार बढ़ाने के लिए बंगाल में अपने शक्तिशाली आईटी सेल का जमकर इस्तेमाल किया. इसके माध्यम से पार्टी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने में कामयाब रही. टीएमसी ने इस मोर्चे पर बीजेपी को टक्कर देने के लिए चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ करोड़ों की डील की. डील का मकसद यही है कि ममता बनर्जी की छवि को चमकाया जा सके.
बीजेपी बनाम टीएमसी की सीधी बन चुकी जंग में अब अलीमुद्दीन स्ट्रीट पर लेफ्ट के योद्धा भी नींद से जागे लगते हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने हाल में 'डिजिटल सीपीआईएम' अभियान शुरू किया है. इसके लिए पार्टी को ऐसे वॉलन्टियर्स की तलाश है जो सोशल मीडिया टीम में काम कर सकें और पार्टी के सियासी नजरिए को अधिक से अधिक फैला सकें.
सीपीआईएम पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने पार्टी से जुड़े इस नए घटनाक्रम पर कहा, 'हम प्रतिस्पर्धा या जंग में नहीं हैं. कम्युनिस्ट पार्टी बीजेपी की बराबरी नहीं कर सकती, जिसे अकेले ही पिछले साल कॉरपोरेट फंडिंग का 95% हिस्सा मिला और हम कॉरपोरेट फंडिंग स्वीकार नहीं करते. हम अपने काडर को विकसित करने और मौजूद संसाधनों से ही अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं.'
सेंट्रल कोलकाता में पार्टी मुख्यालय के पास एक 'स्टेट ऑफ द आर्ट' सोशल मीडिया सेंटर बनाया गया है. यहां वीडियो कंटेंट के लिए बिल्ट-इन स्टूडियो भी मौजूद है. सेंटर में समर्पित काडर का कोर ग्रुप पार्टी के मौजूदा बुनियादी ढांचे को नई शक्ल दे रहा है. सीपीआईएम की डिजिटल पहुंच बढ़ाने के लिए पार्टी के 20 से अधिक काडर दिन-रात जुटे हैं. इनमें ग्राफिक्स डिजाइनर, कंटेंट क्यूरेटर्स और सॉफ्टवेयर इंजीनियर शामिल हैं.
सीपीआईएम डिजिटल टीम के सदस्य अबिन मित्रा कहते हैं, 'अभियान के पीछे मकसद राज्य भर में डिजिटल वॉलन्टियर्स को बड़ी संख्या में जुटाना है. हमें लोगों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली. हमें पीक ट्रैफिक के दौरान प्रति घंटा 700 से 1000 रजिस्ट्रेशन मिले.'
पार्टी ने 31 जुलाई से 15 अगस्त के बीच अभियान चलाया. पार्टी का दावा है कि उसने जो लक्ष्य रखा था, उससे 30 फीसदी ज्यादा अभियान को प्रतिक्रिया मिली. अबिन मित्रा कहते हैं, 'हमें हर उस व्यक्ति की जरूरत है जो सक्रिय कार्यकर्ता की तरह पार्टी से नहीं जुड़ते, फिर भी सीपीआईएम से लगाव रखते हैं और समर्थन करते हैं. ये पार्टी के प्रभाव को कई गुणा बनाने में सहायक हो सकते हैं.'
बता दें कि भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के दौरान राजनीतिक संचार के लिए दीवारों पर पेंटिंग, पोस्टर और नुक्कड़ नाटकों को ही तरजीह दी जाती रही. सीपीआईएम के लिए सामाजिक संगठनों के जरिए जनमानस को साथ लेना हमेशा मजबूत हथियार माना जाता रहा. लेकिन अब पार्टी नए जमाने से ताल मिलाने के लिए तकनीक में भी पीछे नहीं रहना चाहती. सलिल चौधरी और उत्पल दत्त जैसी हस्तियां और IPTA जैसे संगठन लोगों से संवाद को लेकर अपनी अलग छाप छोड़ा करते थे, तब से अब तक हुगली में बहुत सारा पानी बह चुका है.
अभियान से जुड़े सीपीआईएम नेताओं ने कहा कि वे अपना काम कर रहे हैं. उन्होंने डेटा सस्ता होने, इंटरनेट की पैठ गहरी होने और स्मार्टफोन्स के आसानी से उपलब्ध होने का हवाला भी दिया.
मोहम्मद सलीम ने कहा, 'बीजेपी ने व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर का 2014 से ही लाभ उठाया और अब वो उसे दबाना चाहते हैं. देखिए कश्मीर में क्या हो रहा है. वहां पूरी तरह ब्लैक आउट है. आप लोगों को सूचना से दूर रख रहे हैं. इसलिए हमारा संदेश ऊंचा और साफ है. हम लोगों के मुद्दे जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भूख और आर्थिक दमन जैसे मुद्दे उठाएंगे, जिन पर मेनस्ट्रीम मीडिया बात नहीं करना चाहता.' सलीम ने दावा किया कि ये पार्टी के लिए विचारों की लड़ाई है.
सीपीआईएम को लगातार चुनावी नाकामियों ने आखिर उन्हीं तरीकों को गले लगाने को मजबूर किया है, जिसे कभी वो पूंजीवाद का एजेंट बताकर खारिज करती थी. क्या इस पहल से पार्टी अपने खोए जनाधार को पाने में सफल होगी या इसके लिए अब काफी देर हो चुकी है, ये आने वाला समय ही बताएगा.