नई दिल्ली
जब भी यमुना खतरे के निशान के पार होती है, इस पुल को बंद करना पड़ता है। इसे रिप्लेस करने के लिए इसके ठीक बगल में एक नया पुल बनाने का काम चल रहा है, लेकिन 15 साल बाद भी ब्रिज तैयार नहीं हो पाया है। हालांकि रेलवे के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि अगले साल दिसंबर तक पुल तैयार हो जाएगा। लोहे के पुल की ढलती उम्र और रेल यातायात के बढ़ते दबाव को देखते हुए 1997-98 में लोहे के पुल के पास यमुना पर एक नए ब्रिज के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। तब इसकी अनुमानित लागत 136 करोड़ आंकी गई थी, लेकिन काम में देरी की वजह से अब लागत बढ़कर 650 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है। नए पुल का काम 2004 में शुरू हुआ था, मगर 2008 में एएसआई की आपत्ति के चलते काम रोकना पड़ा।
दरअसल, नए ब्रिज से जुड़ने वाली रेलवे लाइन का अलाइनमेंट भी पुराने ब्रिज की तरह सलीमगढ़ फोर्ट से होते हुए ही निकाला गया था। ऐसे में ब्रिज के निर्माण और उसके आसपास नई रेलवे लाइन बिछाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की मंजूरी लेनी जरूरी थी, लेकिन एएसआई ने अलाइनमेंट पर आपत्ति जताते हुए मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इसके चलते करीब 5 साल तक नए पुल का काम रुका रहा।
एएसआई की आपत्तियों को देखते हुए अलाइनमेंट में बदलाव किया गया, ताकि किले की दीवार पर किसी तरह का कोई असर ना पड़े। आखिरकार 2013 में नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी से ब्रिज के निर्माण के लिए मंजूरी मिलने के बाद काम फिर शुरू हो पाया। पहले इसकी डेडलाइन 2016 में और उसके बाद 2018 में रखी गई और अब दिसंबर 2020 की डेडलाइन तय की गई है, लेकिन अभी ब्रिज का 50 प्रतिशत काम ही पूरा हो पाया है।
इस वजह से काम की रफ्तार हुई स्लो
रेलवे के अधिकारियों के मुताबिक, यहां काम की रफ्तार स्लो रहने के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि पुल के पिलर्स बनाने के दौरान नदी के निचले हिस्से में अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरह की चट्टानें पाई गईं हैं, जो आमतौर पर नदी के तलहटी में नहीं पाई जाती हैं। इसकी वजह से नींव ढालने के काम में काफी वक्त लगा। इसके अलावा बरसात के सीजन में हर साल कम से कम चार महीने के लिए काम रोकना पड़ता है।
दिल्ली डिविजन के डीआरएम एस.सी. जैन के मुताबिक, नए ब्रिज के निर्माण का 50 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। नींव ढालने का भी 65 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। ब्रिज में लगने वाली 6000 मैट्रिक टन वजन वाली 26 स्टील गर्डर्स के निर्माण के लिए प्रगति मैदान में एक अत्याधुनिक वर्कशॉप बनाई गई है। अभी तक 3000 मैट्रिकट टन गर्डर्स का निर्माण किया जा चुका है। साइट पर कुछ गर्डर लगाए भी जा चुके हैं और टेस्टिंग में उनका रिजल्ट संतोषजनक पाया गया है। गर्डर की लॉन्चिंग में कैंटीलिवर मेथड का इस्तेमाल किया जा रहा है। नया ब्रिज खुलने के बाद ट्रेनें उसी से निकलेंगी, जिससे ट्रेनों की स्पीड बढ़ाई जा सकेगी और उनके आवगमन के शेड्यूल में सुधार होगा। वहीं लोहे के पुराने पुल से रोड ट्रैफिक का आवागमन जारी रहेगा।
जब भी यमुना खतरे के निशान के पार होती है, इस पुल को बंद करना पड़ता है। इसे रिप्लेस करने के लिए इसके ठीक बगल में एक नया पुल बनाने का काम चल रहा है, लेकिन 15 साल बाद भी ब्रिज तैयार नहीं हो पाया है। हालांकि रेलवे के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि अगले साल दिसंबर तक पुल तैयार हो जाएगा। लोहे के पुल की ढलती उम्र और रेल यातायात के बढ़ते दबाव को देखते हुए 1997-98 में लोहे के पुल के पास यमुना पर एक नए ब्रिज के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। तब इसकी अनुमानित लागत 136 करोड़ आंकी गई थी, लेकिन काम में देरी की वजह से अब लागत बढ़कर 650 करोड़ के आसपास पहुंच चुकी है। नए पुल का काम 2004 में शुरू हुआ था, मगर 2008 में एएसआई की आपत्ति के चलते काम रोकना पड़ा।
दरअसल, नए ब्रिज से जुड़ने वाली रेलवे लाइन का अलाइनमेंट भी पुराने ब्रिज की तरह सलीमगढ़ फोर्ट से होते हुए ही निकाला गया था। ऐसे में ब्रिज के निर्माण और उसके आसपास नई रेलवे लाइन बिछाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की मंजूरी लेनी जरूरी थी, लेकिन एएसआई ने अलाइनमेंट पर आपत्ति जताते हुए मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इसके चलते करीब 5 साल तक नए पुल का काम रुका रहा।
एएसआई की आपत्तियों को देखते हुए अलाइनमेंट में बदलाव किया गया, ताकि किले की दीवार पर किसी तरह का कोई असर ना पड़े। आखिरकार 2013 में नैशनल मॉन्यूमेंट अथॉरिटी से ब्रिज के निर्माण के लिए मंजूरी मिलने के बाद काम फिर शुरू हो पाया। पहले इसकी डेडलाइन 2016 में और उसके बाद 2018 में रखी गई और अब दिसंबर 2020 की डेडलाइन तय की गई है, लेकिन अभी ब्रिज का 50 प्रतिशत काम ही पूरा हो पाया है।
इस वजह से काम की रफ्तार हुई स्लो
रेलवे के अधिकारियों के मुताबिक, यहां काम की रफ्तार स्लो रहने के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि पुल के पिलर्स बनाने के दौरान नदी के निचले हिस्से में अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरह की चट्टानें पाई गईं हैं, जो आमतौर पर नदी के तलहटी में नहीं पाई जाती हैं। इसकी वजह से नींव ढालने के काम में काफी वक्त लगा। इसके अलावा बरसात के सीजन में हर साल कम से कम चार महीने के लिए काम रोकना पड़ता है।
दिल्ली डिविजन के डीआरएम एस.सी. जैन के मुताबिक, नए ब्रिज के निर्माण का 50 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। नींव ढालने का भी 65 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। ब्रिज में लगने वाली 6000 मैट्रिक टन वजन वाली 26 स्टील गर्डर्स के निर्माण के लिए प्रगति मैदान में एक अत्याधुनिक वर्कशॉप बनाई गई है। अभी तक 3000 मैट्रिकट टन गर्डर्स का निर्माण किया जा चुका है। साइट पर कुछ गर्डर लगाए भी जा चुके हैं और टेस्टिंग में उनका रिजल्ट संतोषजनक पाया गया है। गर्डर की लॉन्चिंग में कैंटीलिवर मेथड का इस्तेमाल किया जा रहा है। नया ब्रिज खुलने के बाद ट्रेनें उसी से निकलेंगी, जिससे ट्रेनों की स्पीड बढ़ाई जा सकेगी और उनके आवगमन के शेड्यूल में सुधार होगा। वहीं लोहे के पुराने पुल से रोड ट्रैफिक का आवागमन जारी रहेगा।