यूं खुला चिदंबरम के एफआइपीबी क्लीयरेंस का खेल, विदेशी निवेश की आड़ में चल रहा था गोरखधंधा
एफआइपीबी क्लीयरेंस की आड़ में रिश्वतखोरी की परतें खुलती चली गईं आइएनएक्स मीडिया मामले में इंद्राणी मुखर्जी ने सरकारी गवाह बनकर पूरे खेल का भंडाफोड़ कर दिया।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। विदेशी निवेश की आड़ में एफआइपीबी में चल रहे गोरखधंधे का खुलासा शायद कभी नहीं हो पाता यदि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के सिलसिले में एयरसेल मैक्सिस डील की जांच शुरू नहीं होती। एयरसेल मैक्सिस डील में मनी लांड्रिंग की जांच कर रही ईडी की टीम का ध्यान मैक्सिस से जुड़ी कंपनियों से तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम से जुड़ी कंपनियों में पैसे आने पर गया।
रिश्वतखोरी की परतें खुलती चली गईं
गहराई से जांच के बाद एफआइपीबी क्लीयरेंस की आड़ में रिश्वतखोरी की परतें एक के बाद एक खुलती चली गईं, आइएनएक्स मीडिया मामले में इंद्राणी मुखर्जी ने सरकारी गवाह बनकर पूरे खेल का भंडाफोड़ कर दिया। तभी से पी चिदंबरम की गिरफ्तारी तय मानी जा रही थी।
एफआइपीबी क्लीयरेंस से जुड़ी 3500 फाइलों की पड़ताल
ईडी के जांच अधिकारियों ने पाया कि एफआइपीबी ने एयरसेल मैक्सिस में महज 180 करोड़ रुपये के निवेश की अनुमति दी थी, लेकिन असल में मैक्सिस ने कुल 3500 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश किया गया था। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले और एयरसेल मैक्सिस डील की जांच कर रहे ईडी के जांच अधिकारी राजेश्वर सिंह इसके बाद सतर्क हो गए। उन्होंने एफआइपीबी से पी चिदंबरम के वित्तमंत्री रहने के दौरान दी गई सभी क्लीयरेंस से जुड़ी फाइलें तलब की। एफआइपीबी क्लीयरेंस से जुड़ी लगभग 3500 फाइलों की पड़ताल के बाद कुल आठ मामलों में गड़बड़ी के पुख्ता सबूत मिले।
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सीबीआइ जांच
जांच अधिकारी के रूप में राजेश्वर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में इसे पेश किया और बाद में सीबीआइ को इन मामलों की जांच के लिए भेजा। इनमें से दो मामलों एयरसेल मैक्सिस डील और आइएनएक्स मीडिया में सीबीआइ ने एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू की। छह अन्य मामले अब भी सीबीआइ के पास पड़े हुए हैं।
180 करोड़ का निवेश दिखाकर 3500 करोड़ का हुआ निवेश
एयरसेल मैक्सिस मामले की जांच के दौरान पता चला कि केवल 180 करोड़ का निवेश दिखाकर 3500 करोड़ रुपये का निवेश इसीलिए कर दिया गया ताकि मामला निवेश से संबंधित कैबिनेट कमेटी के पास नहीं जाए।
चिदंबरम ने किया पद का दुरुपयोग
असल में एफआइपीबी नियमों के अनुसार वित्तमंत्री को 600 करोड़ रुपये तक विदेश निवेश की मंजूरी देने का अधिकार था। इससे अधिक के विदेश निवेश पर कैबिनेट की मुहर जरूरी थी। जाहिर है 180 करोड़ का निवेश दिखाकर चिदंबरम ने खुद ही मंजूरी दे दी और चोर दरवाजे से 3500 करोड़ रुपए का निवेश आने दिया गया।
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ईडी को मिले पुख्ता सबूत
जांच के दौरान ईडी को मैक्सिस की सहयोगी कंपनियों से कार्ति चिदंबरम से जुड़ी कंपनियों में धन आने के पुख्ता सबूत मिले। मनी लांड्रिंग से बनाई गई कुछ संपत्तियों को ईडी ने जब्त भी किया। यही नहीं मनी लांड्रिंग एडजुकेटिंग अथारिटी ने इन संपत्तियों की जब्ती को सही ठहराते हुए ईडी के सबूतों पर मुहर भी लगा दी थी।
इंद्राणी मुखर्जी की कार्ति चिदंबरम से मुलाकात
इसी तरह आइएनएक्स मीडिया मामले में भी केवल चार करोड़ रुपये की निवेश की एफआइपीबी क्लीयरेंस मिलने के बाद इंद्राणी मुखर्जी और पीटर मुखर्जी 305 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश ले आए। एफआइपीबी और आयकर विभाग के अधिकारियों ने इस गड़बड़ी को पकड़ भी लिया और कार्रवाई शुरू कर दी। लेकिन इस बीच इंद्राणी मुखर्जी ने कार्ति चिदंबरम से मार्फत पी चिदंबरम से दिल्ली के हयात रेजेंसी में मुलाकात की।
सरकारी गवाह बनी इंद्राणी मुखर्जी
सरकारी गवाह बनी इंद्राणी मुखर्जी ने मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज अपने बयान में बताया कि पी चिंदबरम ने उनसे कार्ति के संपर्क में रहने का निर्देश दिया। इसके बाद कार्ति चिदंबरम से जुड़ी कंपनियों में पैसे दिये गए और पी चिदंबरम ने आइएनएक्स मीडिया में एफआइपीबी क्लीयरेंस पर मुहर लगवा दी। अपनी बेटी की हत्या के आरोप में मुंबई की जेल में बंद इंद्राणी मुखर्जी ने खुद इस मामले में सरकारी गवाह बनने की इच्छा जताई और अदालत ने इसे स्वीकार भी कर लिया।