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बीमार सोनिया गांधी के लिए मुश्किलें हैं अपार, अंदर और बाहर से मिल रही हैं चुनौतियां

शशिधर पाठक, नई दिल्ली Published by: Harendra Chaudhary Updated Mon, 12 Aug 2019 08:49 PM IST
सार

  • पार्टी के पास चेहरा न होने के चलते सोनिया को चुना अंतरिम अध्यक्ष
  • निराशा, हताशा, राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिखराव पर खड़ी पार्टी को संभालने की चुनौती
  • युवा और वरिष्ठ नेताओं में जगानी है आशा की किरण
  • साल के अंत तक होने वाले राज्यों के चुनाव भी हैं अहम

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sicked Sonia Gandhi has immense problems, getting challenges from inside and outside
सोनिया-राहुल गांधी - फोटो : PTI
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विस्तार
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जिस दिन राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पेश हुआ, तब कांग्रेस के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने इस्तीफा दे दिया। वहीं जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 पेश किया, तब पार्टी के चीफ व्हिप भुबनेश्वर कलिता ने इस्तीफा दे दिया। पार्टी के तमाम विरोध के बावजूद न केवल सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया, बल्कि तीन तलाक, यूएपीए संशोधन विधेयक, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 को सत्तापक्ष के अल्पमत में रहने के बाद भी राज्यसभा में बड़े अंतर से मंजूरी मिल गई। इतना ही नहीं 25 मई से पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर बैठे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के ऊपर कांग्रेस के नेताओं ने ही अंगुली उठानी शुरू कर दी।

कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 ने खोल दी पोल

जब जम्मू-कश्मीर पुनर्गटन विधेयक-2019 ने कांग्रेस पार्टी के भीतर बिखराव की पोल खोल दी है। हरियाणा में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पार्टी लाइन से अलग जाकर 18 अगस्त को जनसभा करने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने अपना विरोध जताने का तरीका निकाल लिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, अदिति सिंह, रंजीता रंजन, दीपेन्द्र हुड्डा ने अनुच्छेद-370 को हटाने का स्वागत कर दिया। सभी जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 के पक्ष में नजर आए।


जबकि राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद पार्टी लाइन को लेकर इसके विरोध में थे। माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी के इतिहास में यह उसका अब तक का सबसे बड़ा संक्रमण काल है। यह एक ऐसा दौर है, जहां पार्टी खुद को एकजुट नहीं रख पा रही है। इस बिखराव के चलते विपक्ष की एकता और ताकत भी भोथरी दिखाई दी।

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कांग्रेस पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुनौती

कांग्रेस पार्टी का दिल्ली, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष नहीं है। लोकसभा चुनाव-2019 के बाद से ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई नेता अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। केंद्रीय संगठन में सुधार और विस्तार देना है। संगठन के चुनाव कराकर पार्टी को पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष देना है। हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान समेत कई राज्यों में पार्टी के नेताओं के भीतर भारी अंतर्विरोध है, साथ ही पार्टी के भीतर आंतरिक चुनौतियां भी हैं।

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पीएम मोदी से है चुनौती

बतौर अंतरिम कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को भारतीय लोकतंत्र के इस समय सबसे लोकप्रिय नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर बने विश्वास के सामानांतर कांग्रेस को खड़ा करना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी केन्द्रीय गृहमंत्रालय का प्रभार संभालने के साथ अपनी छवि में बहुत व्यापक विस्तार किया है। भाजपा ने खुद को न केवल देश की राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी में स्थापित किया है, बल्कि प्रभावी तरीके से राजनीति को आगे बढ़ाते हुए सशक्त छवि भी बनाई है।

डाक्टरों की सर्दी, गर्मी और धूल से दूर रहने की सलाह

सोनिया गांधी की तबियत पिछले कई सालों से नासाज है। वह अपना इलाज विदेश में कराती हैं। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष ने स्वास्थ्य वजहों के चलते लंबे समय से सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका को काफी कम कर रखा है। चिकित्सकों ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष को सर्दी, गर्मी, धूल, धूप जैसी परिस्थितियों से बचकर रहने की सलाह दी है। यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने पिछले छह-सात साल से जनसभा, रैली, जमीनी राजनीतिक अभियान, विरोध प्रदर्शन आदि से खुद को करीब-करीब दूर रखा है। लोकसभा चुनाव-2019 से लेकर पिछले कई विधानसभा चुनावों में उन्होंने पहले से निर्धारित अपनी कई जनसभाओं में ऐन वक्त पर जाने का फैसला टाला है।

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