येदियुरप्पा ने ली शपथ, चौथी बार बने कर्नाटक के मुख्यमंत्री
- इमरान क़ुरैशी
- बीबीसी हिंदी के लिए
कर्नाटक के राजभवन में शाम साढ़े छह बजे के क़रीब बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बी.एस. येदियुरप्पा ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
कर्नाटक के राज्यपाल वाजूभाई वाला ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. उनके साथ उनके मंत्रिमंडल के किसी और सदस्य ने शपथ नहीं ली है. येदियुरप्पा सोमवार 29 जुलाई को विश्वास मत पेश करेंगे.
जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिरने से पहले वह विधानसभा में विपक्ष के नेता थे.
वहीं, गुरुवार को कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस के दो और एक निर्दलीय बाग़ी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था.
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उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए थे कि बाकी बाग़ी विधायकों को लेकर भी वो अपना फ़ैसला जल्दी ही देंगे. कहा जा रहा है कि इसी वजह से बीजेपी सरकार के गठन में कोई देरी नहीं करना चाहती है.
येदियुरप्पा चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभालने जा रहे हैं. इससे पहले जब भी उन्होंने सीएम का पद संभाला, कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
शुक्रवार की सुबह वो मंदिर गए थे और मंदिर से ही उन्होंने इस बात की घोषणा की थी.
एक ट्वीट में येदियुरप्पा ने लिखा, "पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के निर्देश का पालन करते हुए मैं कर्नाटक के महामहिम राज्यपाल से मुलाक़ात करके सरकार बनाने का दावा पेश कर रहा हूं."
उन्होंने कहा कि अभी वो कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं इसलिए विधायक दल की बैठक बुलाने की ज़रूरत नहीं है.
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राज्यपाल वजुभाई वाला को लिखे पत्र में उन्होंने सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायकों के समर्थन होने का दावा किया है. अभी बीजेपी के पास कुल 105 विधायक हैं और वो विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है.
वहीं कांग्रेस की ओर से भी इस संबंध में ट्वीट किया गया है.
कांग्रेस ने लिखा है, "कर्नाटक बीजेपी की जैसी स्थिति है उसे देखते हुए सरकार बनाने के दावे का कोई आधार नहीं दिखता."
बीजेपी के पास इस समय 105 विधायक हैं और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है. इस तरह कुल संख्या 106 हो जाती है.
वहीं कांग्रेस के खेमे में 76 विधायक हैं. गुरुवार को स्पीकर ने कांग्रेस के तीन विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया. राज्य में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी जेडीएस के पास 37 विधायक हैं. तीन विधायकों के अयोग्य घोषित होने के बाद विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 224 से घटकर 221 रह गई है.
कांग्रेस के 76 विधायकों में से 13 अब भी ऐसे विधायक हैं जिनकी सदस्यता को लेकर स्पीकर को फ़ैसला देना है.
वहीं जेडीएस के 37 विधायकों में से तीन के त्यागपत्र पर भी स्पीकर को फ़ैसला देना है. इन सभी के साथ ही दो विधायक (कांग्रेस के श्रीमंत पाटिल और बीएसपी के एन महेश) ऐसे हैं जिन्होंने त्यागपत्र तो नहीं दिया है लेकिन विश्वासमत की कार्यवाही से ख़ुद को अनुपस्थित रखा है.
एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा, ''यह एक ऐसा फ़ैसला था जिसे केंद्र के नेतृत्व को लेना था. जैसा की हमने राज्य में एचडी कुमारस्वामी की सरकार को गिरा दिया तो ऐसे में यह बड़ा ही अजीब होता अगर हम सरकार बनाने का दावा पेश नहीं करते. हां, ये हमें पता है कि बाग़ी विधायकों के बीच में कुछ तनाव की स्थिति ज़रूर है.''
स्पीकर रमेश कुमार ने गुरुवार को रमेश जारकिहोली और महेश कुमताहल्ली को अयोग्य घोषित कर दिया था. इन्हें ऑपरेशन कमल 4.0 में मुख्य भूमिका निभाने वाला माना जाता है.
माना जाता है कि बीजेपी ने कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार को गिराने के लिए इन दो कांग्रेसी नेताओ को आधार बनाया.
बीजेपी के एक नेता ने नाम नहीं ज़ाहिर करने की शर्त पर बताया कि गुरुवार को जब स्पीकर ने तीन बाग़ी विधायको को अयोग्य घोषित कर दिया और देर शाम मीडिया के सामने उसकी घोषणा भी कर दी तभी हमें लगा कि हमें अब आगे बढ़ना ही पड़ेगा. आज की इस घोषणा को उसी संदर्भ से जोड़कर देखा जाना चाहिए.
स्पीकर की ओर से तीन बाग़ी विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने को राजनीतिक विश्लेषक दूसरे बाग़ी विधायकों के बीच हलचल पैदा करने वाला फ़ैसला बता रहे हैं.
मीडिया से बातचीत के दौरान स्पीकर रमेश कुमार से पूछा गया कि क्या बाग़ी विधायकों के पास अब भी वक़्त है कि वो अपना इस्तीफ़ा वापस ले सकते हैं?
इस सवाल के जवाब में रमेश कुमार ने कहा, "मैं जानता हूं कि आप ये सवाल क्यों पूछ रहे हैं और इससे किसे फ़ायदा होगा. मैं भी उस बात को लेकर परेशान हूं कि ये एक काल्पनिक सवाल है जिसका मैं जवाब नहीं दे सकता."
धारवाड यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफ़ेसर हरीश रामास्वामी का कहना है कि गठबंधन सरकार के गिरने के बाद कांग्रेस को फ़ायदा लेने में कोई दिलचस्पी नहीं है. यह सिर्फ़ बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने की कोशिश है.
वो कहते हैं "यह सारा कुछ एक संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है, जैसे राष्ट्रपति शासन लगाना." प्रोफेसर रामास्वामी कहते हैं कि संभव है कि हम दिसंबर में मध्यावधि चुनाव होते देखें.
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