देश में प्रोफेसरों की भारी कमी, छात्र-अध्यापक अनुपात में ब्राजील व चीन से भी पीछे
छात्रों और अध्यापक के बीच का भारी अनुपात बताता है कि एक अध्यापक को नासिर्फ बहुत से छात्रों को पढ़ाना पड़ता है बल्कि वह उन्हें बहुत कम समय भी दे पाते हैं।
नई दिल्ली, आइएएनएस। भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रोफेसरों, लेक्चरर और छात्रों के बीच अनुपात बेहद अधिक है। देश के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों आदि के पद बड़ी तादाद में खाली पड़े हैं। लेकिन हाल के शोध में पता चला है कि भारत इस मामले में ब्राजील और चीन जैसे देशों से भी पीछे है।
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत का 24:1 अनुपात (24 छात्रों पर एक अध्यापक) दरअसल ब्राजील के 19:1 अनुपात और चीन से भी पीछे है। आठ देशों से की गई तुलना में भारत की स्थिति सबसे खराब पाई गई। चूंकि स्वीडन में छात्र और अध्यापक का अनुपात 12:1, ब्रिटेन में 16:1, रूस 10:1 और कनाडा 9:1 है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार यह आंकड़े सिर्फ यही नहीं बताते कि हमारे अध्यापकों पर काम का कितना बोझ है, बल्कि यह भी साफ हो गया है कि चंद अध्यापकों की ओर से कराए जाने वालों शोधों की गुणवत्ता पर भी विपरीत असर पड़ता है। छात्रों और अध्यापक के बीच का भारी अनुपात बताता है कि एक अध्यापक को नासिर्फ बहुत से छात्रों को पढ़ाना पड़ता है, बल्कि वह उन्हें बहुत कम समय भी दे पाते हैं।
मंत्रालय के उच्च शिक्षा की सांख्यिकीय सर्वे में पाया गया कि विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों की तादाद बढ़ी है लेकिन अध्यपकों की संख्या घटती जा रही है। वर्ष 2013-14 में 3.23 करोड़ छात्रों ने एडमिशन लिया था जिनकी तादाद वर्ष 2017-18 में बढ़कर 3.66 करोड़ हो गई। लेकिन उन्हें पढ़ाने वाले अध्यापक 13,67,535 से घटकर 12,84,755 ही रह गए हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, देश के केंद्रीय, राज्य और निजी विश्वविद्यालयों में पांच लाख से अधिक अध्यापकों की कमी है। भारत में प्रोफेसरों की कमी बढ़ती ही जा रही है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6600 पद खाली पड़े होने से प्रोफेसरों की 33 फीसद की कमी है। आइआइटी और राज्य विश्वविद्यालयों में क्रमश: 35 फीसद और 38 फीसद पद खाली पड़े हैं।