चंदन कुमार चौधरी

सोशल मीडिया पर हाल में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक बहू अपनी बुजुर्ग सास को पीटती दिख रही थी। यह घटना हमारे जेहन में कई सवाल पैदा करती है कि क्या हमारे समाज का युवा अपने बुजुर्गों को लेकर इतना संवदेनहीन होता जा रहा है कि उनकी पिटाई भी करने में नहीं हिचकता है! इस तरह की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। हाल ही में एक और खबर सामने आई थी, जिसमें लखनऊ के एक बुजुर्ग दंपति ने अपनी बहू के अत्याचार से परेशान होकर आशा ज्योति केंद्र में न्याय की गुहार लगाई थी। दंपति ने बहू पर चप्पल से मारने का आरोप लगाया था। ऐसी घटनाओं को देखने और सुनने के बाद रूह कांप जाती है।

गाहे-बगाहे मीडिया और सोशल मीडिया के बहाने सामने आने वाली ये खबरें लोगों के लिए अब सामान्य-सी घटना बन गई हैं। हालांकि ये घटनाएं सामान्य नहीं हैं, बल्कि चिंता का विषय हैं। ये दर्शाती हैं कि हमारा समाज किस तरह से बुजुर्गों के प्रति इतना असंतुष्ट और असहिष्णु होता जा रहा है कि अपने माता-पिता तक को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है और उसे प्रताड़ित करने के अलावा कई बार पिटाई भी करने से संकोच नहीं करता। सवाल है कि इस तरह की संवेदनहीनता आज के बच्चों के भीतर कहां से आई? जबकि यह जगजाहिर है कि सभी माता-पिता अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं, उनका हमेशा खयाल रखते हैं। वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में उनके समक्ष आने वाली चुनौतियों और परेशानियों से बचाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। लेकिन अगर कोई बच्चा बड़ा होकर अपने मां-बाप के साथ अमानवीय व्यवहार करे तो यह हमारे समूचे सामाजिक विकास पर एक सवालिया निशान है।

ग्रामीण इलाकों के समाज में हमने अक्सर देखा है कि माता-पिता आम, कटहल, लीची, जामुन और अमरूद जैसे फलदार पेड़ अपनी भावी पीढ़ी, यानी बच्चों को ध्यान में रख कर ही लगाते हैं। उन्हें लगता है कि जब हमारे बच्चे बड़े होंगे, तब तक ये पेड़ भी बड़े हो जाएंगे और फल देने लगेंगे। यों शहरों में रहने वाले माता-पिता भी अपने बच्चों का उतना ही खयाल रखते हैं। उन्हें अच्छी शिक्षा देने से लेकर आमतौर पर उनकी हर मांग को पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसके बावजूद अगर बच्चे अपने माता-पिता के ऐसे समय में कृतघ्नता करते हैं, संवेदनहीन बर्ताव करते हैं तो इस पर हैरानी होगी।

सच यह है कि माता-पिता अपने बच्चे को पेट काट कर यानी भूखे रह कर भी पढ़ाते-लिखाते हैं और एक अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे हर संभव त्याग करते हैं। हालांकि इस क्रम में वे कई बार बच्चों को विदेश भेज देते हैं, जहां जाने के बाद उन्होंने मां-बाप की सुध तक नहीं ली। कई बार तो मां-बाप के मरने के कई दिनों बाद विदेश में रह रहे बच्चों को इसकी खबर मिलती है। आखिर ऐसी शिक्षा और शिक्षित होने का क्या फायदा जब हम मानवता का पहला पाठ ही भूल जाएं और अपने माता-पिता तक को याद न रखें।

जब माता-पिता वृद्ध हो जाते हैं और वे खुद से अपनी देखभाल करने में सक्षम नहीं होते, तब हम उन्हें बोझ मानने लगें या उनकी अनदेखी या पिटाई करें, यह अमानवीय तो है ही, कानूनन भी अपराध है। ऐसी घटनाएं सिर्फ अक्षम या लाचार माता-पिता के साथ ही देखने को नहीं मिलतीं, बल्कि पेंशनभोगी अभिभावकों के साथ भी इस तरह की घटनाएं सामने आती रहती हैं। कई मामले ऐसे देखने में आते हैं, जिनमें अभिभावक अपने बच्चों को अपनी पूरी पेंशन दे देते हैं, लेकिन संतान उन्हें दो वक्त की खुराक तक के लिए तरसाती है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि माता-पिता वटवृक्ष की तरह होते हैं, जिनकी छाया में बच्चे फलते-फूलते हैं और उनके पास आकर सुकून का अनुभव करते हैं। इन बातों को भूल कर अगर कोई अपने माता-पिता के प्रति ही दुर्व्यवहार करने लगे तो ऐसी संतान निश्चित रूप से इंसानियत के लिए बोझ है। जवानी के नशे में संतान को यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चीज का हिसाब होता है। कभी वे भी वृद्धावस्था में पहुंचेंगे और उनसे ही सीखा हुआ व्यवहार अगर उनके बच्चे भी करने लगें तो पता नहीं उन पर गुजरेगी!

आखिर हम कैसे समाज में जी रहे हैं, किस तरह के समाज का निर्माण कर रहे हैं! हमारे देश में बुजुर्गों का हमेशा से सम्मान रहा है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी घटनाओं का प्रभाव तेजी से फैलता है। ऐसे में अगर समाज में कोई अपने बुजुर्ग अभिभावकों के साथ कोई दुर्व्यवहार करता है तो निश्चित रूप से उसे रोका जाना चाहिए। अपने माता-पिता के खिलाफ बेबात ऐसा व्यवहार करने वाले लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए, ताकि वे रिश्तों की गरिमा और अहमियत को समझ सकें।