बचपन से सुनते चले आ रहे हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि ही हमारी अर्थव्यवस्था की धुरी है। किसान को देश का अन्नदाता कहा जाता है। लेकिन यह तथ्य बहुत ही दुखद है कि भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या किसान करते हैं। 2000 के बाद से देश में हर साल 12000 किसान अपनी जान दे देते रहे हैं और इसके पीछे अहम कारण खेती की लगातार बढ़ती लागत और घाटा है। कृषि लागत में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बीजों और कीटनाशकों की है। 1996 में जब जीएम यानी जीन संसाधित बीजों को मंजूरी मिली तो इन्हें बेचने वाली कंपनियां दावा करती थीं कि इनसे उत्पादकता बढ़ती है और कीड़े-मकोड़ोें से फसलों को कोई नुकसान नहीं होता। लेकिन जीएम बीज महंगे होते हैं। इसके अलावा इनके इस्तेमाल का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इनका दोबारा उपयोग करना संभव नहीं है। यानी हर बार नया बीज खरीदिए। जाहिर है, इससे खेती की लागत बढ़ती है।

उधर पर्यावरणविद जीएम फसलों को लेकर आशंकित रहे हैं। उनके अनुसार ये फसलें भविष्य में पर्यावरण और जैव विविधता को हानि पहुंचाएंगी। जीएम फसलों के जीन आसपास की फसलों में स्थानांतरित होकर कहीं जीन प्रदूषण का रूप तो नहीं ले लेंगे, इस बारे में भी पर्यावरणविदों ने अपनी चिंता जताई है। इन फसलों में कीट नियंत्रण के लिए जो जैविक विष डाला जाता है कीटों में उसके विरुद्ध प्रतिरोधकता विकसित होने की भी आशंका है। यदि ऐसा हुआ तो उच्च प्रतिरोधक क्षमता वाले कीटों के विकसित होने से कृषि की दशा अत्यंत चिंताजनक हो जाएगी। जीएम बीजों के बाबत दावा किया गया कि ये देश में कृषि की सूरत बदल देंगे। कहा गया कि इनसे न सिर्फ उपज, बल्कि किसानों का मुनाफा भी कई गुना बढ़ जाएगा। इस बात को 20 साल से ज्यादा गुजर गए हैं मगर इस दौरान किसानों की बदहाली सिर्फ बढ़ी है। उधर जीएम बीज मुहैया कराने वाली कंपनी का मुनाफा कई गुना बढ़ गया है।

जीएम बीजों का फायदा यह भी बताया जाता है कि इनसे खाद्य सुरक्षा बढ़ेगी। बीटी कपास से किसकी खाद्य सुरक्षा बढ़ती है? दूसरी बात यह है कि खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए पैदावार भी बढ़ानी होगी और इसके लिए जमीन में उपजाऊपन और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी होना चाहिए। देशी किस्म की बीज प्रजातियों के तकरीबन खात्मे के बाद बीज कारोबार पर एकाधिकार जमा चुकीविदेशी कंपनियों का लालच अभी थम नहीं रहा है। 2002 में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी मॉनसेंटो और महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड की साझेदारी में जीएम बीजों का उत्पादन और वितरण शुरू किया गया। तब दावा किया गया था कि इनमें अधिक कीटनाशकों की जरूरत नहीं होती; साथ ही ये सूखा रोधी और बाढ़ रोधी भी हैं। कुछ ही साल बाद बीटी कपास की फसलों में कीड़े लगने शुरू हो गए। महंगे बीज और कीटनाशकों की बढ़ती लागत किसानों पर भारी पड़ गई।
’दीपिका शर्मा, सूरजकुंड, गोरखपुर