उत्तर प्रदेश के बरेली से बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी मिश्रा ने दलित युवक अजितेश कुमार से शादी कर ली है, जिसके बाद से उनके अधिकारों और कानून को लेकर चर्चा की जा रही है. इस बीच सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सामान्य वर्ग में पैदा होने वाली महिला या पुरुष दलित जाति के पार्टनर से शादी करते हैं तो उन्हें क्या उन्हें शादी के बाद आरक्षण का लाभ मिलेगा.
इस संबंध में हमने सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा और कानून मामलों के जानकार असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश दुबे से बातचीत की. इन दोनों का कहना है भले ही सवर्ण युवती दलित युवक से शादी कर ले, लेकिन उनको अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. हालांकि ऐसा करने वाले कपल की संतान को पिता की ओर से आरक्षण का लाभ मिलेगा.ऐसे मामले में सुप्रीम कोर्ट का क्या है फैसला
इसके अलावा साल 2018 में सुनीता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट भी साफ कह चुका है कि दलित युवक से शादी करने के बाद जनरल कटेगरी की महिला को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है. शीर्ष अदालत का कहना था कि किसी महिला या व्यक्ति की जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है और शादी के बाद वो अपनी जाति को बदल नहीं सकता है.
यह स्थिति जिस फैसले से स्पष्ट हुई वह सुनीता सिंह का मामला था. सुनीता का जन्म अग्रवाल परिवार में हुआ था. अग्रवाल जनरल कटेगरी में आते हैं. हालांकि उन्होंने शादी जाटव (अनुसूचित जाति) के युवक डॉ. वीर सिंह से शादी कर ली थी. इसके बाद अनुसूचित जाति का जाति प्रमाण पत्र भी हासिल कर लिया था. इसके बाद सुनीता ने अपनी पढ़ाई की डिग्री और अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र के आधार पर केंद्रीय विद्यालय में पीजीटी की नौकरी हासिल कर ली थी.
इसके बाद उन्होंने 21 साल तक नौकरी की. इस दौरान किसी ने उनकी शिकायत कर दी, जिसके बाद मामले की जांच की गई और उनका जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया गया. उनका जाति प्रमाण पत्र रद्द होने के बाद केंद्रीय विद्यालय संगठन ने उनको नौकरी से बर्खास्त कर दिया था. इसको उन्होंने कोर्ट में चुनौती दी थी. जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया कि जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है. लिहाजा उनको आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रति