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महेंद्र सिंह धोनी की सबसे बड़ी खूबी जो बन गई खामी

भारतीय पारी संभालने के चक्कर में धोनी की बल्लेबाजी का स्ट्राइक रेट बेहद स्लो हो गया. हालांकि जडेजा ने जोरदार पारी खेलते हुए स्कोरकार्ड को आगे बढ़ाए रखा. बीच-बीच में बड़े शॉट खेलकर उन्होंने जीत की उम्मीदें भी बनाए रखी, लेकिन धोनी के एक रन लेने और स्ट्राइक बदलते रहने की रणनीति ने जडेजा पर दबाव बढ़ा दिया.

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महेंद्र सिंह धोनी का बेस्ट फिनिशर वाला रुतबा कम होता जा रहा है (फोटो-IANS)
महेंद्र सिंह धोनी का बेस्ट फिनिशर वाला रुतबा कम होता जा रहा है (फोटो-IANS)

महेंद्र सिंह धोनी नाजुक मौकों पर बड़ी बल्लेबाजी के लिए जाने जाते हैं और कई मौकों पर लाजवाब बल्लेबाजी कर उन्होंने टीम इंडिया की झोली में जीत भी डाली है. वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में टीम इंडिया के शीर्ष क्रम के नाकाम होने के बाद एक बार फिर से उन पर दारोमदार आ गया था, लेकिन इस बार वो जीत दिलाने में नाकाम रहे.

सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड के खिलाफ मुकाबले में महेंद्र सिंह धोनी जब बल्लेबाजी करने के लिए उतरे उस समय टीम इंडिया की हालत बेहद खराब थी और 71 रन पर उसके 5 विकेट गिर चुके थे. टीम पर हार का संकट मंडरा रहा था. क्रीज पर मौजूद हार्दिक पांड्या (32 रन, 62 गेंद) का साथ देने धोनी क्रीज पर आए, लेकिन 21 रनों की साझेदारी के बाद पांड्या के आउट होने से यह जोड़ी टूट गई. पांड्या की जगह रवींद्र जडेजा आए और उन्होंने धोनी के साथ पारी को आगे बढ़ाया.

बेहद धीमी बल्लेबाजी

भारतीय पारी संभालने के चक्कर में धोनी की बल्लेबाजी का स्ट्राइक रेट बेहद स्लो हो गया. हालांकि जडेजा ने जोरदार पारी खेलते हुए स्कोरकार्ड को आगे बढ़ाए रखा. बीच-बीच में बड़े शॉट खेलकर उन्होंने जीत की उम्मीदें भी बनाए रखी, लेकिन धोनी के एक रन लेने और स्ट्राइक बदलते रहने की रणनीति ने जडेजा पर दबाव बढ़ा दिया.

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इस बीच रवींद्र जडेजा ने 39 गेंदों में अपनी फिफ्टी पूरी की. 54वां रन बनाने के साथ ही जडेजा वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज भी बन गए. यह उनकी ही आतिशी पारी का कमाल है कि 97 गेंदों में सातवें विकेट के लिए दोनों के बीच शतकीय साझेदारी हो गई.

स्लॉग ओवरों में भी धीमी बल्लेबाजी

रवींद्र जडेजा तेजी से बल्लेबाजी कर रहे थे तो धोनी बड़े शॉट खेलने से बच रहे थे. पूर्व कप्तान धोनी पूरे वर्ल्ड कप में अपनी धीमी बल्लेबाजी के लिए आलोचना का केंद्र रहे. पिछले कई मैचों में भी उन्होंने बड़े शॉट खेलने की जगह 1 या 2 रन ले रहे थे. इस बार भी यही हुआ भारत को अंतिम 5 ओवर में जीत के लिए 10 रन से ज्यादा रन (52 रन) बनाने की दरकार थी लेकिन अभी भी उनकी चाल सुस्त रही.

अंतिम 30 गेंदों में धोनी ने कुल 12 गेंदें खेली, लेकिन 50वें ओवर की पहली गेंद पर लगाए छक्के को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने अन्य गेंदों पर कोई बड़ा शॉट नहीं खेला. अंतिम 2 ओवर में भारत को जीत के लिए 31 रन चाहिए थे और धोनी ने 49वें ओवर की पहली गेंद पर छक्का जड़ दिया, लेकिन तीसरी गेंद पर 2 रन लेने के चक्कर में वह रन आउट हो गए. उनके रन आउट होने के साथ ही टीम की जीत की उम्मीदों पर पानी फिर गया.

धोनी जिस 2 रन को लेने के चक्कर में रन आउट हो गए उसके पहले पहला रन लेते ही उन्होंने फिफ्टी ठोक दी. लेकिन मार्टिन गप्टिल के सीधे थ्रो से धोनी रन आउट हो गए. धोनी ने 72 गेंदों में 50 रन बनाकर चलते बने. अंतिम 9 गेंदों में भारत को 24 रन बनाने थे लेकिन पूरी टीम 49.3 ओवर में ही आउट हो गई.

बेस्ट फिनिशर की छवि

महेंद्र सिंह धोनी एक बेहतरीन फिनिशर माने जाते हैं, लेकिन अपने 350वें मैच में टीम की फिनिशिंग जीत के साथ नहीं कर सके. इस मैच से पहले धोनी ने लक्ष्य का पीछा करते हुए 35 बार 50 या उससे ज्यादा की पारी खेली है. लक्ष्य का पीछा करते हए उन्होंने अपने करियर की सबसे बड़ी वनडे पारी भी खेली थी.

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करियर की शुरुआत में ही 2005 में अपने 22वें वनडे मैच में जयपुर में श्रीलंका के खिलाफ 299 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए तीसरे नंबर आकर नाबाद 183 रनों की पारी खेली. इस पारी में 15 चौके और 10 छक्के भी जड़े. भारत यह मैच 6 विकेट से जीत गया. इसके अलावा 10 मई 2007 में ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ मुकाबले में 251 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए धोनी ने नाबाद 91 रनों की पारी खेलकर 6 गेंद शेष रहते 5 विकेट से भारत को जीत दिला दिया. यह 2 तो महज उदाहरण है लेकिन उनके खाते में ऐसी बेशुमार पारियां दर्ज हैं जो टीम इंडिया के काम आई.

पूर्व कप्तान धोनी ने इसके अलावा कई अन्य पारियों में भी लाजवाब बल्लेबाजी करते हुए टीम को जीत दिलाई. कई मैचों में वह बड़ी पारियां न खेल पाएं हों, लेकिन छोटी सी लेकिन धमाकेदार पारी खेलकर जीत जरूर दिलाई. धोनी की पहचान बेस्ट फिनिशर के रूप में होती रही है, लेकिन पिछले कुछ मैचों में उन्होंने जिस तरह की धीमी बल्लेबाजी की है उससे उनकी बड़ी खूबी अब बड़ी खामी बन गई है.

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