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मुजफ्फरपुर में बच्चों की जान लेने वाला चमकी बुखार क्या है

ऋषभ कुमार शर्मा
१९ जून २०१९

मुजफ्फरपुर में 2014 में चमकी बुखार से 100 से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई थी. 2017 में गोरखपुर में जापानी बुखार से कई बच्चों की मौत हो गई थी. और 2019 में फिर से मुजफ्फरपुर में मौत ने 100 का आंकड़ा पार कर लिया है.

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Indien Uttar Pradesh Krankenhaus Kind mit Sauerstoffmaske
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/D. Gupta

बिहार के मुजफ्फरपुर में अब तक सौ से ज्यादा बच्चों की मौत हो गई है. इन मौतों की वजह एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को बताया जा रहा है. आम भाषा में इस बीमारी को चमकी बुखार भी कहा जाता है. इंसेफेलाइटिस शब्द 2017 में भी बहुत चर्चा में रहा था जब गोरखपुर के बाबा राघवदास अस्पताल में 40 से ज्यादा बच्चों की मौत इस बीमारी से हो गई थी. हालांकि वहां फैले इंसेफेलाइटिस और मुजफ्फरपुर में फैले इंसेफेलाइटिस में अंतर है.

क्या है एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस)

इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को आम भाषा में दिमागी बुखार कहा जाता है. इस बीमारी का असली कारण अभी भी डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के पास नहीं है. इसकी वजह वायरस को माना जाता है. इस वायरस का नाम इंसेफेलाइटिस वाइरस (EV) है. इस बीमारी का असर बेहद घातक होता है. बीमारी के चलते शरीर में दूसरे कई संक्रमण हो जाते हैं. वायरस के अलावा फंगस और बैक्टीरिया, परजीवी, स्पाइरोकेट्स, रसायन, विषाक्त पदार्थ और गैर-संक्रामक एजेंट से भी यह सिंड्रोम हो सकता है. यह सिंड्रोम टाइफस, डेंगी, गलसुआ, खसरा, निपाह और जीका वायरस के कारण भी हो सकता है. गर्मी और आद्रता बढ़ने पर यह बीमारी तेजी से फैलती है.

एईएस मच्छरों द्वारा भी फैलाई जाती है. एईएस होने पर तेज बुखार के साथ मस्तिष्क में सूजन आ जाती है. इसके चलते शरीर का तंत्रिका तंत्र निष्क्रिय हो जाता है और रोगी की मौत तक हो जाती है. मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत का कारण लीची खाने को भी बताया जा रहा है. भारत के नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और अमेरिका के डिजीज कंट्रोल संस्थान की रिसर्च के मुताबिक आधी पकी हुई लीची में टॉक्सिन्स हाइपोग्लाइसीन ए और मिथाइलीनसाइक्लोप्रोपाइल-ग्लाइसिन होते हैं. ये एमीनो एसिड होते हैं. जब बच्चे ऐसी लीचियों का सेवन करते हैं तो उन्हें उल्टियां होने लगती हैं. बिहार के इन हिस्सों में बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. ऐसे में इन पर इस बीमारी का तेजी से असर होने लगता है. उनका ब्लड शुगर लेवल तेजी से कम होने लगता है और बच्चे बेहोश हो जाते हैं. इसे हाइपोग्लाइसीमिया या रक्तशर्कराल्पता कहा जाता है. मुजफ्फरपुर में जिन बच्चों को एईएस होता है उनमें 98 प्रतिशत लोगों को रक्तशर्कराल्पता पाया जाता है. शुगर लेवल के अलावा शरीर में सोडियम की भी कमी हो जाती है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

इस बीमारी के वायरस खून में मिलने पर प्रजनन शुरू कर तेजी से बढ़ने लगते हैं. खून के साथ ये वायरस मरीज के मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं. मस्तिष्क में पहुंचने पर ये वायरस वहां की कोशिकाओं में सूजन कर देते हैं. दिमाग में सूजन आने पर शरीर का तंत्रिका तंत्र काम करना बंद कर देता है जो मरीज की मौत का कारण बनता है.

लक्षण और उपचार क्या

एईएस होने पर तेज बुखार के साथ शरीर में ऐंठन शुरू होती है. ब्लड शुगर लेवल कम हो जाने से मरीज बेहोश हो जाता है. कई बार मिर्गी जैसे दौरे पड़ने लगते हैं. मरीज के जबड़े और दांत अकड़ जाते हैं. कई बार मरीज के कोमा में जाने की स्थिति बन जाती है. ऐसी परिस्थिति में डिहाइड्रेशन भी होने लगता है. डॉक्टरों के मुताबिक, एईएस के लक्षण दिखने पर मरीज को ज्यादा से ज्यादा पानी पिलाना चाहिए. मरीज को ठंडी जगह में आराम करने देना चाहिए और गर्मी या धूप में जाने से बचाना चाहिए. मरीज का ओआरएस का घोल पिलाते रहें. एईएस के बढ़ने पर सांस लेने में भी समस्या आने लगती है. शुरुआती लक्षण दिखने पर ठंडी चीजों का सेवन करवाते रहें. लक्षण अगर बढ़ते दिखें तो मरीज को अस्पताल में भर्ती करवा दें.

यह बीमारी संक्रामक भी है. ये एक मरीज से दूसरे मरीज को लग सकती है. पीड़ित व्यक्ति के थूक, छींक और मल-मूत्र से भी फैल सकती है. इंसेफेलाइटिस का एक प्रकार जापानी बुखार भी है. यह बुखार मच्छरों के द्वारा भी फैलता है. धान के खेतों में पनपने वाले क्यूलेक्स मच्छरों से यह जापानी इंसेफलाइटिस वायरस फैलता है. यह वायरस सुअरों और जंगली पक्षियों में पाया जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके में मच्छरों से जापानी बुखार फैलता है. इसी के चलते गोरखपुर में 2017 में बड़ी संख्या में बच्चों का जान चली गई थी. इसकी रोकथाम के लिए टीकाकरण योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जाती हैं. गोरखपुर में जापानी बुखार की रोकथाम के लिए सुअरों का भी टीकाकरण किया गया था.

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