प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) ने 2011 के बाद जीडीपी के आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम के दावे को बुधवार को खारिज कर दिया। पीएमईएसी ने कहा कि पूर्व सीईए के विश्लेषण में सेवाओं और कृषि के आंकड़ों की अनदेखी की तथा एक निजी कंपनी सीएमआईई पर आंख मूंदकर भरोसा किया। जीडीपी अनुमान पर पीएमईएसी की तरफ से जारी 12 पृष्ठ की एक रिपोर्ट में कहा कि एक बड़ी और जिम्मेदार अर्थव्यवस्था के रूप में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुमान का तरीका वैश्विक मानकों के अनुरूप है। इस रपट को अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय, रथिन रॉय, सुरजीत भल्ला, चरण सिंह और अरविंद बिरमानी ने मिलकर तैयार किया है। पिछले सप्ताह पीएमईएसी ने कहा था कि वह सुब्रमणियम के शोध-पत्र की बातों को बिंदुवार काटेगी।

सुब्रमणियम ने शोध पत्र में कहा था कि जीडीपी आकलन के तरीकों में बदलाव के कारण 2011-12 और 2016-17 के बीच भारत की आर्थिक वृद्धि दर करीब 2.5 प्रतिशत अधिक दिखने लगा। सुब्रमणियम अक्टूबर 2014 से करीब चार साल वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे। सुब्रमणियम पिछले साल मुख्य आर्थिक सलाहकार पद से हट गये थे। ‘इंडियाज जीडीपी मिस-एस्टीमेशन: लाइकलहहूड, मैग्नीट्यूड्स, मैकेनिज्म्स एंड इम्पलीकेशंस’ (भारत के जीडीपी का गलत आकलन : संभावना, आकार, व्यवस्था और निहितार्थ) शीर्षक से हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रकाशित शोध पत्र ऐसे समय आया जब आर्थिक वृद्धि के आंकड़ों को लेकर विभिन्न तबकों द्वारा चिंता जतायी गयी है।

पीएमईएसी के अनुसार ऐसा लगता है कि पूर्व सीईए ने भारत की जटिल अर्थव्यवस्था और उसके विकास के बारे में जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया। पत्र के अनुसार उन्हेंने 17 तीव्र आवृत्ति वाले संकेतकों (आंकड़ों) का उपयोग किया लेकिन विश्लेषण में सेवा क्षेत्र तथा कृषि क्षेत्र की भूमिका की उपेक्षा की। सेवा क्षेत्र का जहां जीडीपी में 60 प्रतिशत योगदान है वहीं कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है।

रिपोर्ट के अनुसार सुब्रमणियम ने 2011-12 के बाद वृद्धि दर के बारे में संदेह जताने को लेकर जिन 17 संकेतकों का उपयोग किया, उसमें से ज्यादातर सीधे सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन एकोनॉमी (सीएमआईई) से लिये गये। सीएमआईई एक निजी एजेंसी है जो सूचना के स्रोत का प्राथमिक स्रोत नहीं है। वह विभिन्न स्रोतों से सूचना एकत्रित करती है। इसमें कहा गया है, ‘‘जिस किसी ने भी डा. सुब्रमणियम के शोध पत्र को पढ़ा, उसे यह बिल्कुल साफ है कि उन्होंने सीएमआईई पर भरोसा किया लेकिन केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) पर अविश्वास किया…निजी एजेंसी सीएमआईई पर अंध भरोसा और देश की सेवा करने वाले सरकारी संस्थान पर अविश्वास एक तटस्थ शिक्षाविद से अनपेक्षित है।’’ रिपोर्ट में यह भी कहा कि पूर्व सीईए ने कर आंकड़ों की भी अनदेखी की।

पीएमईएसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सुब्रमणियम ने कर आंकड़ों की अनदेखी की। उनकी दलील है, ‘‘2011 के बाद की अवधि में प्रत्यक्ष एवं परेक्षा करों में बड़े बदलाव के कारण हम कर वसूली से जुड़े संकेतकों का उपयोग नहीं करते। यह कर-जीडीपी संबंधों को पहले से भिन्न और अस्थिर बना दिया है। इसीलिए यह जीडीपी वृद्धि के लिये संकेतकों को अवास्तविक बनाता है।’’ पीएमईएसी के अनुसार अन्य संकेतकों के विपरीत कर आंकड़ों का संग्रह सर्वे या एजेंसियां किसी गुप्त तरीके से नहीं करती हैं। ये ठोस आंकड़े होते हैं और ये वृद्धि के लिये महत्वपूर्ण संकेतक होने चाहिए।

इसमें कहा गया है, ‘‘पुन: लेखक के विश्लेषण की अंतिम अवधि (31 मार्च 2017) तक कर कानून में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया था। जीएसटी एक जुलाई 2017 में आया।’’ पीएमईएसी के अनुसार, ‘‘लेखक का कर आंकड़ों के उपयोग नहीं करने का तर्क उनकी सुविधा के मुताबिक दी गयी दलील है। इसका मतलब है कि उन्होंने वास्तविक तथ्यों पर आधार असुविधाजनक निष्कर्षों से बचा।’’

रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि भारत जैसे देश के जीडीपी के किसी भी अनुमान को कभी भी परिपूर्ण होने का दावा नहीं किया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह देखना है कि कवायद , ‘‘क्या यह (नयी पद्धति) पहले से बेहतर है… (जवाब है) हां।’’ ‘‘क्या इसमें और सुधार की प्रक्रिया की व्यवस्था है? …(जवाब है) हां’’ इसमें आगे कहा गया है कि सुब्रमणियम वित्त मंत्रालय में सीईए के रूप में सरकारी अर्थशास्त्रियों तथा सांख्यिकीविदों के अधीक्षक की भूमिका में थे। उन्हें भारत की महाद्वीप आकार की अत्यधिक विविध उभरती अर्थव्यवस्था के जीडीपी आकलन के बड़ी और जटिल गतिविधियों की जानकारी जरूर होगी।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘कुछ सह-संबंधों (को-रिलेशंस) और चार कारकों के आधार पर सरल अर्थमितीय तकनीक के आधार पर ऐसे देश का जीडीपी का अनुमान जताने का प्रयास तथा आंकड़ा संग्रह के मौजूदा तरीके को चुनौती देना न केवल उन लोगों के मनोबल को तोड़ना है जो समर्पण के साथ काम में लगे हैं बल्कि तकनीकी रूप से भी अनुपयुक्त हैं।’’