मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने कहा कि यदि ऐसा लगता है कि इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाईक को भारत में न्याय नहीं मिलने की संभावना है, ऐसी स्थिति में मलेशिया के पास नाईक का प्रत्यर्पण नहीं करने का अधिकार है। उन्होंने कहा, “सामान्य तौर पर, जाकिर को लगता है कि उसके खिलाफ निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती है।” यह बात दक्षिण एशियाई देशों के अंग्रेजी दैनिक ‘द स्टार’ ने अपनी रिपोर्ट में लिखी है। प्रधानमंत्री ने एक ऐसी स्थिति का भी जिक्र किया जिसमें ऑस्ट्रेलिया ने पूर्व पुलिस कमांडो, सरुल अजहर उमर को प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया था, जिन्हें मलेशिया में एक मंगोलियाई नागरिक अल्तांतुआ शरियिबु की हत्या के लिए मृत्युदंड दिया गया था। उन्होंने द डेली से कहा, “हमने ऑस्ट्रेलिया से सिरुल का प्रत्यर्पण करने का अनुरोध किया और उन्हें डर है कि हम उसे फांसी पर चढ़ाने वाले हैं।”

यह शायद पहली बार नहीं है जब मलेशिया ने विवादास्पद इस्लामिक उपदेशक जाकिर नाइक के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया है, जो राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा भारत में जांच का सामना कर रहा है। वजह ये है कि पीस टीवी पर जाकिर नाईक उपदेशों वर्ष 2019 में बांग्लादेश के ढाका में हमले का एक कारण बताया गया था। इस हमले में 22 लोगों की जान जाने का दावा किया गया था। इस्लामी नेता ने 2016 में कथित तौर पर भारत छोड़ दिया और बाद में मलेशिया चले गए, जहां उन्हें स्थायी निवास प्रदान किया गया।

जाकिर नाइक के एनजीओ ‘इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन’ (IRF) को भी 2016 में गैरकानूनी घोषित किया गया था। 18 करोड़ रुपये से अधिक के मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप को लेकर इस संस्था के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच की जा रही है। पिछले साल औपचारिक अनुरोध और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत के बावजूद मलेशिया के अधिकारियों ने जाकिर नाईक को वापस भेजने से इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री ने पिछले साल कहा था, “जब तक वह कोई समस्या पैदा नहीं कर रहा है, हम उसे नहीं भेजेंगे क्योंकि उसे स्थायी निवासी का दर्जा दिया गया है।”