बिहार: लोकसभा चुनाव में हार की वजहें तलाश रहा RJD, महंगा पड़ा सवर्ण आरक्षण का विरोध
आरजेडी लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन की हार की वजहें तलाश रहा है। प्रारंभिक पड़ताल में कुछ वजह सामने भी अाए हैं। पड़ताल जारी है। पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर।
पटना [अरविंद शर्मा]। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) हार की मुख्य वजहें तलाश जा रहा है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में दोबारा दमदार लड़ाई की जमीन तैयार की जा सके। तीन सदस्यीय टीम को हफ्ते भर में रिपोर्ट देनी है। अभी तक जो मुख्य वजहें सामने आईं हैं, उनमें सवर्ण आरक्षण (Upper Caste Reservation) का विरोध, महागठबंधन (Grand Alliance) के घटक दलों के आधार वोट का ट्रांसफर नहीं होना और यादवों का अति पिछड़ी जातियों के साथ तालमेल नहीं हो पाना प्रमुख हैं। कमेटी के निष्कर्ष लेकर आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad yadav) से मिलने रांची रवाना हो गए हैं।
हार के कारणों की समीक्षा को ले राबड़ी आवास पर बैठक
चुनाव नतीजे के बाद हार की हताशा से उबरने के लिए आरजेडी के शीर्ष नेतृत्व ने तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की अध्यक्षता में पराजय के वास्तविक कारणों की पड़ताल जरूरी समझा था। इसके लिए 28 मई को राबड़ी देवी (Rabri Devi) के सरकारी आवास पर बैठक बुलाई गई। बैठक में पार्टी के प्रमुख नेता शामिल रहे। हां, इसमें लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे व लोक सभा चुनाव में कुछ सीटों पर पार्टी के विरोध में चुनाव प्रचार करने वाले तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) नहीं पहुंचे।
पार्टी ने बनाई तीन सदस्यीय जांच कमेटी
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगदानंद सिंह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई गई है, जिसमें अब्दुल बारी सिद्दीकी और आलोक मेहता शामिल हैं। कमेटी को अपनी रिपोर्ट हफ्ते भर के अंदर देनी थी, किंतु समय ज्यादा बीत गया। अभी तक प्रक्रिया ही चल रही है।
तेजस्वी की बन गई नकारात्मक छवि
प्रारंभिक पड़ताल में सामने आया है कि सवर्ण आरक्षण के प्रबल विरोध के चलते आरजेडी का न केवल वर्तमान का नुकसान हुआ है, बल्कि भविष्य की सियासत के भी प्रभावित होने का खतरा है। लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद तेजस्वी यादव ने जिस तरह से पार्टी की कमान संभाली थी, उसकी चौतरफा तारीफ हो रही थी। जाति-बिरादरी से अलग युवाओं का एक वर्ग ऐसा था जो तेजस्वी को प्रगतिशील मानकर बिहार का भविष्य देख रहा था।
किंतु आरजेडी प्रवक्ता मनोज झा के राज्यसभा में झुनझुना बजाने से उसकी भावनाओं को धक्का लगा। जिनके लिए हल्ला मचाया गया, उनका साथ तो नहीं ही मिला, उल्टे प्रगतिशील तबके के बीच तेजस्वी की नकारात्मक छवि बन गई। आरजेडी के सवर्ण नेता आज तक समझ नहीं पाए हैं कि पहले के अपने घोषणा पत्रों में सवर्ण आरक्षण का पक्ष लेने वाले लालू के उत्तराधिकारी ने यू-टर्न किसकी सलाह पर लिया।
वोट ट्रांसफर तक नहीं करा पाए घटक दल
पराजय का दूसरा सबसे प्रमुख कारण महागठबंधन के घटक दलों के आधार वोट का ट्रांसफर नहीं होना माना जा रहा है। आरजेडी का आधार वोट तो साथी दलों के प्रत्याशियों को मिला, लेकिन कुशवाहा, मांझी और मल्लाहों के वोट आरजेडी के पक्ष में नहीं पड़े। लालू परिवार के लिए यह बड़ा सबक हो सकता है कि गांवों में अति-पिछड़ी जातियों के लोगों का यादवों के साथ स्वभाविक तालमेल नहीं हो पाता है। लालू प्रसाद यादव से उनके लगाव को इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन यादव जाति के स्थानीय नेताओं से वे घुलमिल नहीं पाते हैं।
निचले स्तर पर कमजोर रहा प्रबंधन
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तुलना में आरजेडी का निचले स्तर का प्रबंधन बेहद कमजोर था। बूथों पर जितनी मुस्तैदी से बीजेपी-जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) के कार्यकर्ता खड़े थे, उतनी मुस्तैदी आरजेडी समर्थकों में नहीं दिखी।
बीजेपी की जीत में साजिश भी तलाश रहा आरजेडी
प्रारंभिक रिपोर्ट में बीजेपी की जीत को साजिश का हिस्सा भी बताया गया है। हालांकि, इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा गया है कि किस तरह की साजिश हुई।
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