नीतीश कुमार BJP से दूरी का यूं ही नहीं रच रहे 'चक्रव्‍यूह', 2020 में गेमप्‍लान के खुलेंगे पत्‍ते
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नीतीश कुमार BJP से दूरी का यूं ही नहीं रच रहे 'चक्रव्‍यूह', 2020 में गेमप्‍लान के खुलेंगे पत्‍ते

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इफ्तार पार्टी में शामिल होने पहुंचे तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने उनकी तस्वीर को ट्वीट करते हुए लिखा कि काश ऐसी ही तस्वीर नवरात्र में भी आती. गिरिराज के इस ट्वीट के बाद अटकलों का बाजार गरम हो गया, लेकिन जब पटना के राजनीतिक गलियारे की गहमागहमी पर गौर करेंगे तो समझ पाएंगे कि दोनों दलों के बीच राजनीतिक चाल के तहत तनातनी दिखाने की कोशिश हो रही है.

नीतीश कुमार NDA में रहते हुए BJP से दूरी दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं.

नई दिल्ली: प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और उनके मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह से ठीक पहले खबर आई की नीतीश कुमार (Nitish kumar) की पार्टी जनता दल युनाइटेड (JDU) सरकार में शामिल नहीं होगी. इसके बाद बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish kumar) ने साफ तौर से कहा कि उनकी पार्टी मौजूदा केंद्र सरकार में हिस्सेदार नहीं बनेगी. इसके बाद नीतीश कुमार (Nitish kumar) ने बिहार (Bihar) में मंत्रिमंडल विस्तार किया तो उन्होंने आठ मंत्रियों में से एक भी बीजेपी को नहीं दिया. इन दो राजनीतिक घटनाओं के बाद सवाल उठने लगे कि आखिर नीतीश कुमार (Nitish kumar) बीजेपी से दूरी क्यों बना रहे हैं. 

सोमवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish kumar) इफ्तार पार्टी में शामिल होने पहुंचे तो केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने उनकी तस्वीर को ट्वीट करते हुए लिखा कि काश ऐसी ही तस्वीर नवरात्र में भी आती. गिरिराज के इस ट्वीट के बाद अटकलों का बाजार गरम हो गया, लेकिन जब पटना के राजनीतिक गलियारे की गहमागहमी पर गौर करेंगे तो समझ पाएंगे कि दोनों दलों के बीच राजनीतिक चाल के तहत तनातनी दिखाने की कोशिश हो रही है.

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2010 का रिजल्ट दोहराना चाहते हैं नीतीश
नीतीश कुमार (Nitish kumar) के दोबारा एनडीए में जाने का मतलब है कि उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि वह खुद को राज्य की राजनीति तक ही सीमित रखेंगे. ऐसे में उनके लिए यह मायने नहीं रखता है कि उनकी पार्टी केंद्र की सरकार में है या नहीं. उनके लिए जरूरी है कि वह राज्य की सत्ता में मजबूत रहें. बिहार (Bihar) में अगले साल यानी 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके लिए नीतीश कुमार (Nitish kumar) अभी से तैयारी में जुट गए हैं. बीजेपी से दूरी दिखाने की कोशिश भी उसी तैयारी का हिस्सा है.

साल 2010 के बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव में जदयू ने 141 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसमें 115 पर जीत मिली थी. वहीं बीजेपी ने 102 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसमें 91 सीटों पर जीत मिली थी. 243 सीटों वाले विधानसभा में लालू प्रसाद यादव (Lalu prasad yadav) की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) महज 22 सीटों पर सिमट गई थी. रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा 3 और कांग्रेस 4 सीटों पर सिमट गई थी.

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बीजेपी+जदयू की जोड़ी की इस प्रचंड जीत के पीछे बड़ी वजह यह थी कि इस चुनाव में मुस्लिमों ने भी नीतीश कुमार (Nitish kumar) के चेहरे पर वोट दिया था. इस दौर में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हिंदुत्व का सबसे बड़ा चेहरा थे. सेक्युलर छवि बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार (Nitish kumar) उस दौर में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से खुद को दूर दिखाने की कोशिश करते रहे, जिसका फायदा पूरे एनडीए को हुआ था. इस चुनाव में बिहार (Bihar) में विपक्ष लगभग खत्म हो गया था. 

2020 के बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार (Nitish kumar) कुछ वैसी ही जीत दोहराने की कोशिश में अभी से जुट गए हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार (Bihar) की 40 में से 39 सीटें बीजेपी+जेडीयू+लोजपा गठबंधन को मिली है. बिहार (Bihar) में मुस्लिमों की आबादी करीब 17 फीसदी है. यह आबादी 13 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के 17 में से 16 प्रत्याशियों की जीत का मतलब है कि मुस्लिमों ने अच्छी खासी संख्या में ईवीएम में तीर का बटन दबाया था.

केंद्र के फैसलों से JDU को अलग दिखाने की कोशिश
नीतीश ने मुस्लिमों के इस वोटिंग पैटर्न को भांपते हुए अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इसे और अधिक अपने पाले में करने की कोशिश में जुट गए हैं. इसी मिशन को पूरा करने के लिए वह बीजेपी से दूरी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. 

केंद्र सरकार अगर कश्मीर मसले या तीन तलाक जैसे मुद्दों पर कोई कदम उठाती है तो सीएम नीतीश मुस्लिम वोटरों को संदेश देने की कोशिश करेंगे कि उनकी पार्टी तो मोदी कैबिनेट का हिस्सा ही नहीं है. ऐसे में केंद्र सरकार के फैसलों में उनकी कोई दखल नहीं है.

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नीतीश को समर्थन दे सकते हैं मुस्लिम
दूसरी तरफ यह बात जरूर है कि मुसलमान लालू यादव की पार्टी के पारंपरिक वोटर हैं, लेकिन ये भी एक सत्य है कि यह पार्टी लंबे समय से सत्ता से बाहर है. साथ ही ये भी है कि इस पार्टी के हाल के दौर में दोबारा सत्ता में आने की कम ही संभावना दिख रही है. इस लिहाज से स्वभाविक है कि बिहार (Bihar) के मुसलमान भी सत्ता में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए विकल्प की तलाश करेंगे. ऐसे में नीतीश कुमार (Nitish kumar) की सेक्युलर छवि उन्हें आकर्षित कर सकती है.

इसी राजनीतिक चातुर्य के तहत लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish kumar) इफ्तार पार्टी में पहुंच गए. यहां वह टोपी भी पहने हुए दिखे. नीतीश कुमार (Nitish kumar) की यह प्लानिंग सफल रहती है तो 2020 के बिहार (Bihar) विधानसभा चुनाव में एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आ सकती है, वहीं विपक्ष पूरी तरह साफ हो सकता है.