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चुनाव में जनता ने युवाओं से ज्यादा 'बुजुर्गों' पर जताया भरोसा

जनसंख्या पिरामिड में ऊपर की तरफ जाते हुए पता चलता है कि जैसे-जैसे आयु की श्रेणी बढ़ती जाती है, उस आयु के सांसदों का आंकड़ा भी बढ़ता जाता है. इसका मतलब यह कि बड़ी उम्र के सांसदों की संख्या कम उम्र के सांसदों की संख्या से ज़्यादा है.

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जनता ने फिर उम्रदराज नेताओं पर ही जताया भरोसा
जनता ने फिर उम्रदराज नेताओं पर ही जताया भरोसा

2019 लोकसभा चुनावों का शोर अब ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है. एक बार फिर से युवा भारत ने उम्रदराज नेताओं को शासन करने के लिए चुन लिया है. 1999 से लेकर 2019 तक के चुनावों की इंडिया टुडे डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने सांसदों की आयु के आंकड़ों का आंकलन किया और पता लगाया कि पिछले बीस साल से हमारे सांसदों की उम्र 50 साल से ऊपर ही रही है. ध्यान देने लायक बात यह है कि भारत की आधी से ज़्यादा आबादी 28 साल से कम की है.

DIU ने हाल ही में चुने गए सांसदों की उम्र का आंकलन किया तो यह साफ़ हो गया कि देश की आबादी जवान होती जा रही है लेकिन देश के नेता नहीं. 2011 जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि भारत की 11 प्रतिशत आबादी की आयु 25-30 साल है. 17वीं लोक सभा के पास इस उम्र के केवल 1.5 प्रतिशत सांसद हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि 25 प्रतिशत से ज़्यादा की आबादी 25-40 की आयु सीमा में आते हैं लेकिन 17वीं लोक सभा में इस उम्र के महज 12 प्रतिशत सांसद ही हैं.

जनसंख्या पिरामिड में ऊपर की तरफ जाते हुए पता चलता है कि जैसे-जैसे आयु की श्रेणी बढ़ती जाती है, उस आयु के सांसदों का आंकड़ा भी बढ़ता जाता है. इसका मतलब है कि बड़ी उम्र के सांसदों की संख्या कम उम्र के सांसदों की संख्या से ज़्यादा है. इस बार सबसे ज़्यादा सांसद 51-55 साल की उम्र के चुने गए. 16 प्रतिशत से ज़्यादा सांसद इस आयु सीमा में पड़ते हैं.

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diu_053019120231.jpgउम्रदराज सांसदों की बढ़ती संख्या

उम्रदराज सांसदों की बढ़ती संख्या

पिछले बीस साल में उम्रदराज सांसदों की संख्या भी लगातार बढ़ती हुई नज़र आ रही है. 13वीं लोक सभा (1999-2004) में सांसदों की औसत आयु लगभग 52 वर्ष थी. जब भारत एक नई शताब्दी की तरफ कदम बढ़ा रहा था, तब उसके सांसदों की औसत आयु सबसे कम थी. 2004 में भी भारत के सांसदों की औसत आयु 52 वर्ष रही. 2009 में यही औसत आयु बढ़कर 54 हो गई. 2014 में सांसदों की औसत आयु चरम बढ़कर 59 साल हो गई.

सांसदों की औसत आयु बढ़ने का यह सिलसिला लगातार तीन चुनावों तक चलता रहा और 2019 में इसमें गिरावट दर्ज की गई, पिछली लोकसभा में औसत आयु घटकर 55 साल रह गई. लेकिन यह औसत अब भी 1999-2009 की तुलना में ज़्यादा है.

कांग्रेस वाकई में है ग्रैंड ओल्ड पार्टी

DIU ने चुनाव संपन्न होने से पहले उम्मीदवारों के आंकड़ों की पड़ताल की थी और यह पाया था कि इस बार दिग्गज पार्टियों ने युवाओं को मौका नहीं दिया. भारतीय जनता पार्टी के सिर्फ 8 प्रतिशत उम्मीदवार 40 से कम की आयु के थे. भाजपा के सांसदों की औसत आयु 55 वर्ष थी. बीजेपी के सबसे ज़्यादा उम्मीदवार जीते हैं

भाजपा के बाद, देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने भी कुछ ज़्यादा अच्छे विकल्प नहीं दिए. पुराने आंकड़ों के आंकलन से पता चलता है कि कांग्रेस वाकई में 'ग्रैंड ओल्ड पार्टी' है. 1999 से लेकर 2019 तक, सभी लोक सभाओं में कांग्रेस पार्टी के सांसदों की औसत आयु भाजपा से ज़्यादा रही है. 1999 में जहां भाजपा के सांसदों की औसत आयु 49.7 वर्ष थी, वहीं कांग्रेस के सांसदों की औसत आयु 54.8 वर्ष थी. 2004 में कांग्रेस सांसदों की औसत आयु बढ़कर 56 वर्ष हो गई. वही भाजपा सांसदों की आयु बढ़कर 51 वर्ष हो गई.

2009 में कांग्रेस सांसदों की आयु घटकर 55.3 वर्ष हो गई. लेकिन उसके बावजूद वह भाजपा की 54 वर्ष की औसत से ऊपर ही रही. 2014 में कांग्रेस और भाजपा, दोनों पार्टी के सांसदों की औसत आयु सबसे ज़्यादा थी. जहां कांग्रेस सांसदों की औसत आयु 64 वर्ष थी, वहीं भाजपा सांसदों की औसत 60 साल थी. साल 2019 तक आते हुए दोनों पार्टियों के सांसदों की औसत आयु घटकर 57 (कांग्रेस) और 55 (भाजपा) साल हो गई, इसलिए ये साफ तौर पर कहा जा सकता है कि नौजवानों को टिकट देने में सभी पार्टियां बचती रही हैं.

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