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चुनाव में मिली हार के बाद CPI गंवा सकती है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा

किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता तब मिल सकती है जब लोकसभा या विधानसभा चुनावों में चार या उससे अधिक राज्यों में उसके उम्मीदवारों ने कम से कम 6 फीसदी वोट पाएं हों. लोकसभा में उसके कम से कम चार सदस्य हों.

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(फाइल फोटो)
(फाइल फोटो)

लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिलने के बाद अब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राष्ट्रीय दल का दर्जा गंवाने की संभावना है. उल्लेखनीय है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले भारी पराजय के बाद सीपीएम, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) राष्ट्रीय दल का अपना दर्जा गंवाने की स्थिति का सामना कर रही थी.

हालांकि, चुनाव आयोग द्वारा अपने नियमों में संशोधन करने पर इन पार्टियों को 2016 में राहत मिल गई थी, जब उसने यह प्रावधान किया कि वह राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय पार्टी के दर्जे की समीक्षा 5 साल के बजाय हर 10 साल पर करेगा.

सीपीएम महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने कहा, ‘चुनाव आयोग के मौजूदा मानदंड के मुताबिक हम राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खोने के खतरे का सामना कर रहे हैं. राष्ट्रीय पार्टी के हमारे दर्जे के बारे में वे फैसला करेंगे. मुझे आशा है कि चुनाव आयोग सकारात्मक कदम उठाएगा.’ हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं रहने से पार्टी के कामकाज पर असर नहीं पड़ेगा.

चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश, 1968 के मुताबिक किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता तब मिल सकती है जब लोकसभा या विधानसभा चुनावों में चार या उससे अधिक राज्यों में उसके उम्मीदवारों ने कम से कम 6 फीसदी वोट पाएं हों. साथ ही, लोकसभा में उसके कम से कम 4 सदस्य हों. इसके साथ पार्टी के पास लोकसभा की कुल सीटों का कम से कम 2 फीसदी भी होना चाहिए और उसके सांसद कम से कम 3 राज्यों से हों. इसके अलावा, वह कम से कम 4 राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा रखती हो.

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चुनाव आयोग ने 15 मार्च को एक अधिसूचना जारी कर 7 राष्ट्रीय दल बताए थे. वे हैं बीजेपी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी, सीपीआई, सीपीएम, कांग्रेस और एनसीपी. रेड्डी ने पार्टी में युवाओं को लाने की जरूरत का जिक्र करते हुए कहा, ‘वाम के हाशिए पर जाने का देश के भविष्य पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ेगा. इसलिए सीपीएम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपना यह रुख दोहराया है कि वक्त की दरकार है कि कम्युनिस्ट पार्टियों का फिर से एकीकरण किया जाए और नए सिरे से रणनीति बनाई जाए.

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