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क्या अपनी दादी और मां की तरह कांग्रेस को मुसीबत से उबार पाएंगे राहुल गांधी?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अमित मंडल Updated Wed, 29 May 2019 06:20 PM IST
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Will Rahul Gandhi be able to save congress as Indira and Sonia did
राहुल-सोनिया
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23 मई के पहले की कांग्रेस और उस दिन के बाद की कांग्रेस पार्टी में जबरदस्त बदलाव आ चुका है। पहले यह पार्टी लोकसभा चुनाव में जीत को लेकर आशान्वित थी। नेताओें को उम्मीद थी कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का जादू असर दिखाएगा और केंद्र की सत्ता पर एक बार फिर यूपीए काबिज हो जाएगी।



इसके लिए राहुल ने मेहनत भी खूब की थी। एक के बाद एक रैलियां, साक्षात्कार और जनता से रूबरू होने का सिलसिला चल रहा था। राफेल, चौकीदार चोर है, जीडीपी, बेरोजगारी और संवैधानिक संस्थाओं के अस्तित्व का चर्चा जनता तक पहुंचाने की कोशिश की गई। लेकिन जनता को कुछ और ही मंजूर था।

कांग्रेस में मंथन का दौर

अब कांग्रेस पार्टी में आंतरिक मंथन का दौर चल रहा है। आरोप-प्रत्यारोप के बाणों का संधान हो रहा है। हालांकि कोई भी तीर निशाने पर नहीं बैठ रहा है। राहुल गांधी अध्यक्ष का पद छोड़ने के लिए उतारू हैं। लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमिटी को यह मंजूर नहीं है। हालांकि राहुल अपने फैसले पर अड़े हुए बताए जा रहे हैं।

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उन्होंने पार्टी से कहा है कि एक नया राष्ट्रीय अध्यक्ष खोजा जाए, जो गांधी परिवार से न हो। हालांकि आजादी के बाद के कांग्रेस पार्टी के इतिहास में यह पहली बार है, जब पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर गांधी परिवार ही काबिज है। स्वयं राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनकी माता सोनिया गांधी कांग्रेस संसदीय दल की मुखिया हैं और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की महासचिव हैं।
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तो अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह है कि आखिर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़कर क्या करेंगे। क्या वो कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका में आएंगे। या फिर अपनी दादी इंदिरा गांधी और माता सोनिया गांधी की तरह नए सिरे से पार्टी की कमान कसेंगे।

एक विकल्प तो यह है कि पार्टी के भीतर कार्यकारी अध्यक्ष जैसा एक नया पद बनाया जाए जो अध्यक्ष के साथ मिलकर रूपरेखा तय करे। रोजमर्रा और संगठन के काम को देखे। इससे पार्टी के भीतर नया संदेश भी जाएगा।
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1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दक्षिण भारत में मिली करारी हार के बाद वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलापति त्रिपाठी को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। हालांकि मौजूदा हालातों में ऐसा करने के लिए पार्टी के संविधान में बदलाव भी करना होगा।

पारंपरिक तरीका

अगर पार्टी राहुल गांधी को पद पर बने रहने के लिए मनाने में सफल हो जाती है तो उन्हें कड़े कदम भी उठाने होंगे। 1999 में शरद पवार गुट ने सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का पुरजोर विरोध किया था और सीडब्ल्यूसी छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। हालांकि उस समय भी कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने सोनिया गांधी को सभी फैसलों के लिए फ्री हैंड दिया था।

2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद भी पार्टी ने सोनिया को कड़े फैसले लेने के लिए अधिकृत कर दिया थाा। हालांकि 2017 में सबसे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष रहने के बाद सोनिया ने यह पद अपने पुत्र राहुल गांधी को सौंप दिया था। तो अब देखना यह होगा कि क्या वाकई इस कठिन समय की कसौटी पर कसने के बाद पार्टी नए फलक पर पहुंचेगी।


 

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