मोदी सरकार राज्यसभा में बहुमत हासिल करने के बाद क्या-क्या कर पाएगी?

  • प्रदीप कुमार
  • बीबीसी संवाददाता
नरेंद्र मोदी

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17वीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के 303 सांसद हैं और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के 353. इतने बड़े बहुमत के बाद भी निर्णायक फैसलों के लिए भारतीय जनता पार्टी को राज्य सभा में बहुमत का इंतज़ार करना होगा.

245 सदस्यीय राज्य सभा में भारतीय जनता पार्टी के फिलहाल 73 सदस्य हैं. राज्यसभा के इतिहास में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार, पिछले साल कांग्रेस को पीछे छोड़ा था.

इसके अलावा जनता दल (यूनाइटेड) के छह, शिरोमणी अकाली दल के तीन, शिव सेना के तीन और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया के एक सदस्य है.

इन सबको मिलाकर एनडीए के राज्य सभा में 86 सांसद होते हैं. मौजूदा समय में अन्ना द्रमुक के 13 राज्य सभा सांसद हैं और इनका समर्थन भी बीजेपी को अहम मौकों पर मिलता आया है, इस हिसाब से एनडीए के राज्यसभा में सांसदों की संख्या 99 तक पहुंचती है.

इसके अलावा तीन नामांकित सदस्यों का समर्थन भी मौजूदा सरकार को मिल रहा है. ये तीन सदस्य स्वपन दासगुप्ता, मैरीकॉम और नरेंद्र जाधव हैं.

यानी राज्यसभा में बहुमत से एनडीए महज 21 सीटें दूर हैं. बावजूद इसके मौजूदा स्थिति में एनडीए को राज्यसभा में बहुमत हासिल करने में बहुत मुश्किल नहीं होगी.

वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "अभी भी मोदी सरकार को बहुत मुश्किल नहीं होगी. बीजू जनता दल, वाइएसआर कांग्रेस और तेलंगाना राष्ट्र समिति के समर्थन पर निर्भर रहना होगा. तीनों दल ग़ैर कांग्रेस और ग़ैर बीजेपी खेमे में ज़रूर हैं लेकिन ज़रूरत पड़ने पर ये बीजेपी का साथ दे सकते हैं."

मौजूदा समय में राज्य सभा में बीजू जनता दल के नौ, तेलंगाना राष्ट्र समिति के छह और वाईएसआर कांग्रेस के दो सदस्य हैं.

कब तक आ जाएगा बहुमत

वैसे 14 जून, 2019 को असम से राज्य सभा की दो सीटें खाली होने वाली हैं. मनमोहन सिंह और एस कुजुर, दोनों कांग्रेसी सांसद हैं. अब असम में बीजेपी बहुमत में है, लिहाजा इन दोनों सीटों पर एनडीए का कब्ज़ा तय है. इन्हीं में से एक सीट से लोजपा के संस्थापक राम विलास पासवान को देने पर बीजेपी चुनाव से ठीक पहले तैयार हुई थी.

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2020 की शुरुआत में यूपीए की ओर से मनोनीत केटीएस तुलसी रिटायर हो जाएंगे, ऐसे में एनडीए अपनी पसंद के सांसद को मनोनीत कर पाएगी.

वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार अजय सिंह कहते हैं, "इन सबके बीच कर्नाटक और मध्य प्रदेश सरकार पर भी नजर रखनी होगी, अगर वहां आने वाले कुछ महीनों में वहां सरकार बदलती है तो फिर बीजेपी राज्य सभा में बहुमत के करीब पहुंचेगी."

अप्रैल, 2020 में महाराष्ट्र, असम, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश से राज्य सभा की 55 सीटें खाली होंगी. इसमें उत्तर प्रदेश से नौ सीटें खाली होनी हैं जिसमें समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव, नीरज शेखर, जावेद अली खान और कांग्रेस के पीएल पूनिया जैसे सांसद भी रिटायर होंगे. इन नौ में से केवल एक सीट समाजवादी पार्टी रिटेन कर पाएगी और आठ सीटें बीजेपी को मिलना तय है क्योंकि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के 309 विधायक और 62 सांसद हैं.

राज्यसभा की इन 55 सीटों में कम से कम 19 सीटें बीजेपी को हासिल होने की उम्मीद है. ऐसे में अगले साल तक बीजेपी राज्य सभा को अपने दम पर बहुमत हासिल हो जाएगा.

दरअसल, बीते पांच साल के दौरान कई बार ऐसा देखने को मिला जब राज्य सभा में बहुमत नहीं होने के चलते बीजेपी सरकार को कई कानून नहीं पास करा पाई थी. अजय सिंह मानते हैं कि राज्य सभा में बहुमत हासिल करने से सरकार को कई तरह की सहूलियत बढ़ जाएँगी.

क्या क्या फ़ैसले लेगी सरकार

अजय सिंह कहते हैं, "राज्य सभा में बहुमत हासिल होने से फाइनेंशियल बिलों का पास होना सहज हो जाता है. राज्य सभा में कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है कि विपक्ष जानता है कि ये ठीक क़ानून है लेकिन वह विरोध करती है, ऐसी सूरत नहीं आएगी."

इसमें भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक सबसे अहम था, इसके विरोध में विपक्षी दलों की एकता को देखते हुए सरकार इसे राज्य सभा में लेकर ही नहीं गई. तीन तलाक़ को अपराधिक बनाए जाने का क़ानून भी पारित नहीं हो पाया. विपक्ष इस पर बहस तक के लिए तैयार नहीं हुआ.

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इतना ही नहीं, 2016 में संयुक्त विपक्ष ने राष्ट्रपति के भाषण में संशोधन को पास करा लिया था- यह किसी भी सत्तारूढ़ दल के लिए शर्मनाक स्थिति होती है. राज्य सभा में बहुमत नहीं होने की सूरत की वजह से ही सरकार आधार विधेयक को मनी बिल बनाकर पारित करवा पाई.

इसके अलावा मोटर वाहन संशोधन विधेयक, कंपनी संशोधन विधेयक, नागरिकता संबंधी विधेयक और इंडियन मेडिकल काउंसिल संशोधन विधेयक भी राज्यसभा में अटका हुआ था.

इसकी वजह से स्टैंडिंग कमेटी में कई बिल पारित होने के बाद भी सेलेक्ट कमेटी में भेजना पड़ता रहा है.

संविधान संशोधन का सवाल?

हालांकि महिला आरक्षण विधेयक जैसा मामला भी है, जिसमें केवल चार पांच सांसदों ने विधेयक को पारित होने में अड़ंगा लगा दिया था.

अजय सिंह कहते हैं, "ऐसा तब होता है जब सरकार खुद उस विधेयक के प्रति बहुत दम नहीं लगाती है. नहीं तो चार पांच सांसद कोई विधेयक को पारित होने से रोक दें, ये तो संभव नहीं होता. हालांकि अगर सरकार की इच्छा नहीं हो तो चार पांच सांसद भी एजेंडा हाईजैक कर लेते हैं."

आम विधेयकों के साथ साथ धारा-370 और राम मंदिर के मुद्दे भी हैं, जो विवादास्पद होने के साथ साथ बीजेपी के घोषित एजेंडे में भी शामिल रहे हैं. इस पहलू को सरकार प्राथमिकता ज़रूर देगी.

अजय सिंह कहते हैं, "सरकार अगर ऐसी स्थिति में है तो उसे ज़रूर आगे बढ़ाएगी, ये तो घोषित एजेंडा है."

रशीद किदवई बताते हैं, "जब संसद के दोनों सदनों में बहुमत होगा तो भारतीय जनता पार्टी अपने राजनीतिक विचारों को भी आगे बढ़ाएगी. हर पार्टी अपने विचारों को बढ़ाना चाहेगी. जब बहुमत हो तो संविधान में बदलाव करने में भी आसानी होगी."

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार संविधान में संशोधन के स्तर तक जाएगी.

नरेंद्र मोदी- अमित शाह

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इस पर अजय सिंह कहते हैं, "देखिए संविधान में संशोधन के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए, ऐसी स्थिति तो अभी नहीं है. तो इसके लिए सरकार कैसे कुछ कर पाएगी, मुझे लगता है कि इस दिशा में तो अभी कुछ नहीं हो सकता."

रशीद किदवई ये भी कहते हैं कि बीजेपी कोई भी बड़ा फ़ैसला लेने से पहले काफ़ी सोच विचार करेगी, क्योंकि वह जनमानस का ख़याल रखकर ही आगे बढ़ेगी.

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