ईरान से भारी तनाव के बीच ट्रंप सऊदी को देंगे अरबों डॉलर के हथियार

सऊदी अरब

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ईरान से भारी तनाव के बीच अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब से अरबों डॉलर के हथियार सौदे का रास्ता साफ़ कर दिया है.

ईरान और सऊदी अरब एक-दूसरे को फूटी आँखों नहीं सुहाते ऐसे में अमरीका से हथियारों की इतनी बड़ी ख़रीदारी काफ़ी अहम है.

ट्रंप ने आठ अरब डॉलर के इस हथियार सौदे के लिए कांग्रेस की रोक को बाइपास कर दिया है.

सामान्य स्थिति में इस सौदे के लिए ट्रंप को कांग्रेस की मंजूरी ज़रूरी थी. मध्य-पूर्व में ईरान को लेकर काफ़ी तनाव की स्थिति है और ट्रंप प्रशासन भी इसे लेकर काफ़ी मुखर है.

ट्रंप के इस क़दम से उन लोगों में नाराज़गी है जिन्हें डर है कि इन हथियारों का इस्तेमाल आम लोगों के ख़िलाफ़ किया जा सकता है. कुछ डेमोक्रेट सांसदों ने भी ट्रंप पर आरोप लगाए हैं कि राष्ट्रपति हथियार बेचने के लिए कांग्रेस की अनदेखी कर रहे हैं.

इन हथियारों में कई अत्याधुनिक युद्ध सामग्री और आधुनिक बम शामिल हैं. इस हथियार सौदे को लेकर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई थी. कहा जा रहा है कि ये हथियार संयुक्त अरब अमीरात और जॉर्डन को बेचे जाएंगे.

ईरान अमरीका

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शु्क्रवार को अमरीका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने सऊदी से हथियार बेचने के फ़ैसले की सूचना कांग्रेस को दे दी. जिस पत्र के माध्यम से पॉम्पियो ने कांग्रेस को सूचित किया उसकी चर्चा अमरीकी मीडिया में काफ़ी हुई.

पॉम्पियो का तर्क

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पॉम्पियो ने इस पत्र में कहा है कि ईरान की आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए इन हथियारों को तत्काल बेचना बहुत ज़रूरी हो गया है.

पॉम्पियो ने कहा है, ''ईरान की गतिविधियां मध्य-पूर्व की स्थिरता के लिए भारी ख़तरा हैं. इसके साथ ही अमरीका की बाहरी और भीतरी सुरक्षा भी ख़तरे में है. ईरान खाड़ी में कुछ अगला दुःसाहस करे उससे पहले हमें ये हथियार बेचने होंगे.''

हालांकि ट्रंप प्रशासन के इस फ़ैसले की तत्काल आलोचना भी होने लगी. डेमोक्रेटिक सीनेटर और विदेशी मामलों की समिति के सदस्य रॉबर्ट मनेंदेज़ ने ट्रंप पर आरोप लगाया कि वो तानाशाही देशों के पक्ष में खड़े हैं. रॉबर्ट ने अपने बयान में कहा है, ''ट्रंप एक बार फिर से लंबी अवधि के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने के मामले में नाकाम रहे.''

रिपब्लिकन फ़ॉरन रिलेशन कमिटी के अध्यक्ष सीनेटर जिम रिश ने कहा है कि उन्हें ट्रंप प्रशासन ने सूचित किया है कि हथियार बेचने का फ़ैसला ले लिया गया है. जिम ने कहा, ''हम इसकी समीक्षा कर रहे हैं और क़ानूनी पक्ष को देख रहे हैं.''

अमरीका न केवल बड़े पैमाने पर हथियार बेचने जा रहा बल्कि मध्य-पूर्व में अमरीकी सेना की मौजूदगी भी बढ़ाने पर विचार कर रहा है.

आने वाले दिनों में अमरीका 1,500 अतिरिक्त सैनिक, फाइटर जेट और ड्रोन्स की तैनाती कर सकता है. अमरीका के कार्यकारी रक्षा मंत्री पैट्रिक शैनहान ने कहा है कि यह क़दम ईरानी ख़तरों को देखते हुए अहम है.

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ईरान और अमरीका में तनाव क्यों?

इस महीने जब अमरीका ने उन देशों पर से ईरान से तेल ख़रीदने की छूट वापस ले ली तब से तनाव चरम पर है. अमरीका के इस क़दम से ईरान तेल का निर्यात नहीं कर पा रहा है और उसकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह से समस्याग्रस्त हो गई है.

ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए तेल का निर्यात सबसे अहम ज़रिया है. ईरान से अमरीका ने पिछले साल परमाणु समझौता तोड़ दिया था.

इस समझौते पर छह देशों के हस्ताक्षर थे जिनमें से पाँच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य थे. इसके अलावा जर्मनी भी था. ईरान ने अब घोषणा की है कि परमाणु समझौते के तहत जो उसकी प्रतिबद्धताएं थीं उससे वो पीछे हटेगा. खाड़ी के देशों में ईरान को लेकर तनाव लगातार बढ़ रहा है.

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