यूं तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 26 से 35 साल के कई युवा चेहरे चुनाव मैदान में थे, मगर 23 को ही जीत नसीब हो सकी. इस बार 28 और 29 साल की उम्र में भी दो युवा सांसद बनने में सफल रहे हैं. ओडिशा में बीजद के टिकट पर क्योंझर लोकसभा सीट से 25 वर्ष 11 महीने की उम्र में चुनाव जीतने वाली चंद्राणी मुर्मू सबसे कम उम्र की सांसद बनीं हैं.
ओडिशा में बीजद ने क्योंझर लोकसभा सीट से चंद्राणी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया था. चंद्राणी ने बीजेपी प्रत्याशी को हराते हुए सबसे कम उम्र की सांसद बनने का तमगा हासिल कर लिया. वहीं बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार के निधन के बाद बेंगलुरु दक्षिण से उनकी पत्नी की जगह युवा चेहरे 28 वर्षीय तेजस्वी पर दांव खेला था. मोदी लहर और अपनी लोकप्रियता के दम पर तेजस्वी ने जीत हासिल की. उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बीके प्रसाद को तीन लाख 31 हजार से अधिक वोटों से हराया.
कर्नाटक से ही एक और कम उम्र के प्रत्याशी चुनाव जीते हैं. ये जनता दल सेक्युलर मुखिया एचडी देवेगौड़ा के पौत्र बताए जाते हैं. नाम है प्रज्वल रेवन्ना. उन्होंने कर्नाटक के हासन संसदीय सीट से एक लाख 41 हजार 324 वोटों से जीत हासिल की है. यह एकमात्र सीट है, जिस पर जनता दल सेक्युलर को जीत मिली. प्रज्वल रेवन्ना की उम्र 29 साल है.
इन्हें नहीं मिली सफलता
2019 के लोकसभा चुनाव में कम उम्र के कई उम्मीदवार उतरे थे, मगर उन्हें सफलता हाथ नहीं लगी. मिसाल के तौर पर देखें तो आम आदमी पार्टी के टिकट पर दक्षिण दिल्ली सीट से राघव चड्ढा उतरे थे, मगर उन्हें बीजेपी के रमेश बिधूड़ी ने साढ़े तीन लाख से अधिक वोटों से हराया. इसी तरह कांग्रेस ने हिसार से 26 वर्षीय भव्य विश्नोई को उतारा था. मगर उन्हें चार लाख से ज्यादा वोटों से बीजेपी के बिजेंद्र सिंह ने हरा दिया. वहीं माकपा ने 26 वर्षीय बिराज डेका को काकरझोर सीट से उतारा था. मगर वह निर्दलीय एनके सरानिया के हाथों हार गए.
युवा सांसदों के आंकड़े
2014 के लोकसभा चुनाव में 35 साल से कम उम्र के 32 सासंद निर्वाचित हुए थे, मगर इस बार संख्या घटकर 23 हो गई है. यह हाल तब है , जब देश की औसत उम्र 27.9 उम्र है, मगर आंकड़े बताते हैं कि हर बार के लोकसभा चुनाव में 2.2 प्रतिशत सांसद ही 30 से कम उम्र के बन पाते हैं. खास बात है कि आजादी के बाद से अब तक हुए हर लोकसभा चुनाव में संसद में बुजुर्ग सांसदों की संख्या बढ़ती जा रही है. उस अनुपात में युवा सासंद जीतकर नहीं आ रहे. इसके पीछे एक और प्रुमख वजह है कि पार्टियां 30 साल से कम उम्र के युवाओं को चुनाव मैदान में उतारने में कम रुचि दिखाती हैं.