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Lok Sabha Elections Results 2019: मोदी के सामने प्रियंका का भी नहीं चला जादू, क्या रहीं 5 वजहें

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Lok Sabha Elections Results 2019: मोदी के सामने प्रियंका का भी नहीं चला जादू, क्या रहीं 5 वजहें

प्रियंका गांधी की फाइल फोटो
प्रियंका गांधी की फाइल फोटो

लोकसभा चुनाव परिणाम २०१९ (Lok Sabha Election Results 2019): नौबत यहां तक है कि कांग्रेस के ऊपर उसकी परम्परागत सीट अमेठी ...अधिक पढ़ें

    लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने सबसे बड़े ब्रह्मास्त्र बहन प्रियंका गांधी को मैदान में उतारकर बड़ा दांव चला, लेकिन गुरुवार को आए नतीजों में प्रियंका गांधी का जादू बीजेपी के 'चाणक्य' अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी के सामने फीका ही रहा. नौबत यहां तक है कि कांग्रेस के ऊपर उसकी परम्परागत सीट अमेठी को बचाने के भी लाले पड़े हुए हैं. अमेठी सीट से बीजेपी की स्मृति इरानी लगातार बढ़त बनाई हुई हैं. उसे सिर्फ एक ही सीट पर जीत मिलती दिख रही है. यूपीए संयोजक सोनिया गांधी रायबरेली सीट से निर्णायक बढ़त बना ली है.

    दरअसल, गठबंधन में जगह न मिलने के बाद कांग्रेस ने यूपी में अकेले चुनाव लड़ा. उसने 80 में से 67 लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी उतारे. प्रियंका के चेहरे को सामने कर राहुल गांधी यूपी में अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटे थे, लेकिन ऐसा कुछ भी होता नहीं दिखा. जानकार इसके पीछे पांच वजहों को अहम मानते हैं.

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    हालांकि, प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव प्रचार की पूरी कमान संभाली. उन्होंने यहां 40 रैलियां और इतने के करीब ही रोड शो कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. उनके रोड शो में भीड़ भी जुटी, लेकिन वह वोट में तब्दील नहीं हो सकी.

    प्रियंका की लेट एंट्री

    प्रियंका की सियासी एंट्री और कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं इसके चार अहम पहलू हैं. उन्होंने कहा कि प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारना राहुल गांधी की जरूरत तो थी ही, साथ मजबूरी भी थी. उनकी मानें तो कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था, जिसके बल पर चुनाव लड़ा जाए. इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ नेताओं का चुनाव प्रचार को लेकर उदासीन रवैया भी प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में उतारने की वजह बनी.

    कांग्रेस का कमजोर संगठन

    उन्होंने कहा, 'कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. उसके लिए अन्य राज्य भी अहम हैं. इसके लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि उसे स्टेट यूनिट से पूरा सपोर्ट मिले. इसलिए क्या यूपीसीसी से उसे समर्थन मिला? जवाब है बिल्‍कुल नहीं. क्या प्रदेश स्तरीय कांग्रेस के नेता ने प्रचार किया? जवाब है नहीं. प्रमोद तिवारी, निर्मल खत्री, आरपीएन सिंह, श्रीप्रकाश जायसवाल, सलमान खुर्शीद जैसे तमाम नेता प्रचार से दूर रहे. लिहाजा, राहुल के सामने प्रियंका को उतारना रणनीति भी थी और मजबूरी भी.'रतनमणि ने बताया कि प्रियंका को लॉन्च करने के बाद एक सन्देश ये गया कि उनकी एंट्री अनैच्छिक है. इसकी वजह ये है कि 23 जनवरी को पद दिया गया लेकिन वह लखनऊ 11 फ़रवरी को पहुंचीं. इस बीच कई बार उनके आने की ख़बरें आईं, लेकिन वह घर पर ही रहीं. इसके बाद एक सन्देश गया कि क्या वह अभी जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं हैं? भले ही यह सच न हो, लकिन ऐसी धारणा बनी.

    प्रियंका की इंदिरा गांधी से तुलना गलत

    रतनमणि लाल कहते हैं कि तीसरी गलती ये हुई कि कांग्रेस के पीआर ने यह बात फैलाई कि उनकी शक्ल इंदिरा गांधी से मिलती है और वह उन्हीं की तरह बोलती हैं. लिहाजा जो भी भीड़ उनके रोड शो और रैलियों में आई वह उन्हें सुनने कम और देखने के लिए ज्यादा थी. लोग इसलिए गए कि क्या वाकई में उनकी शक्ल इंदिरा गांधी से मिलती है? तो आपका पदार्पण ही राजनीतिक कारण की वजह से न होकर आपके लुक्स की वजह से हुआ तो आपकी आधी गंभीरता तो वहीं खत्म हो गई.

    वाराणसी से चुनाव लड़ने की बात कहकर न लड़ना

    चौथी गलती थी प्रियंका के तीन बयान- पहला बयान कि कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव नहीं 2022 विधानसभा की तैयारी करें. दूसरा बयान था- कांग्रेस बीजेपी के वोट काट रही है. तीसरा सबसे अहम बयान क्या मैं बनारस से लड़ूं? इन बयानों में गभीरता नहीं दिखी.

    उधर, वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडेय का भी मानना है कि प्रियंका की एंट्री लेट हुई. उन्होंने कहा कि जब कोई लीडरशिप आता है तो उसका करिश्मा बिना संगठन के नहीं चलता. प्रियंका ऐसे कांग्रेस को संभालने आई जिसका संगठन ही लुंजपुंज था. प्रियंका को वह संगठन मिला जो चुनाव के लिए तैयार ही नहीं था. ऐसे में प्रियंका ने मेहनत तो की, जिसका असर ये देखने को मिलेगा कि वोटिंग परसेंटेज बढ़ेगा और कई सीटों पर पार्टी लड़ती नजर आएगी. इसे कांग्रेस की उपलब्धि कह सकते हैं. वर्ष 2022 में कांग्रेस एक नई ताकत के तौर पर उभर सकती है. शर्त ये है कि अगर लगातार मेहनत की जाए.

    न्याय योजना की जगह राफेल पर ज्यादा फोकस

    राहुल गांधी ने कांग्रेस के घोषणा पत्र में न्याय योजना, रोजगार और किसानों के कर्जमाफी का वादा कर कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की. राहुल गांधी अपनी हर रैली में 'अब होगा न्याय' का प्रचार भी करते दिखे. रामेश्वर पांडेय का कहना है कि न्याय योजना गेम चेंजर योजना हो सकती थी, लेकिन राहुल ने रणनीति वही अपनाई जो बीजेपी को सूट करती है. ये पूरा चुनाव 'मोदी हराओ या मोदी हटाओ' के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आया. यहां मुद्दे दूर होते चले गए. दूसरी तरफ खुद राहुल राफेल पर ज्यादा जोर देते रहे और न्याय योजना सेकेंडरी रह गई. इसके अलावा संगठन कमजोर होने की वजह से न्याय योजना को समझाने में भी असमर्थ रहे.

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