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उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा नतीजे: शीला दीक्षित की करारी हार

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उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा नतीजे: शीला दीक्षित की करारी हार

शीला दीक्षित
शीला दीक्षित

उत्तर-पूर्वी दिल्ली लोकसभा नतीजे (North East Delhi Election Result): शीला दीक्षित (Sheila Dikshit)

    लोकसभा चुनाव 2019 में दिल्ली की हाई प्रोफाइल सीट नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के नतीजों की मानें तो कांग्रेस की उम्मीदवार शीला दीक्षित के हाथ मायूसी लगी. इस सीट को मनोज तिवारी ने 787799 वोटों के साथ जीत लिया. वह 421697 वोटों के साथ दूसरे स्‍थान पर रहीं.

    कांग्रेस आलाकमान यानी गांधी परिवार से खासी करीबियत रखने वाली पूर्व दिल्ली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के लिए लोकसभा चुनाव 2019 नाक की सवाल रहा. अगले साल दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में दीक्षित पर लोकसभा चुनाव का दांव खेलना कांग्रेस का एक दांव माना जा रहा था लेकिन अब सवाल खड़ा हो रहा है कि दीक्षित क्या कांग्रेस की मजबूरी बनकर रह गई हैं? और दिल्ली में कांग्रेस की वापसी के लिए क्या विकल्प है?

    उत्तर-पूर्वी लोकसभा सीट पर 81 साल की शीला दीक्षित का मुकाबला दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष और मौजूदा सांसद मनोज तिवारी और आम आदमी पार्टी के दिलीप पांडेय से हो रहा है. शीला दीक्षित दिल्ली में दूसरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं.

    आज भी होती है दीक्षित के कामों की चर्चा
    शीला दीक्षित अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में किए कामों के आधार पर इस बार मैदान में उतरी हैं. दिल्ली की सीएम रहते शीला दीक्षित ने नार्थ-ईस्ट दिल्ली में कई विकास के काम किए थे. इलाके के लोग झुग्गियों और कच्ची कोलनियों के लिए शीला दीक्षित के द्वारा किए गए कामों की आज भी चर्चा करते हैं. शीला दीक्षित ने दिल्ली में अपना राजनीतिक पारी की शुरुआत भी उत्तर-पूर्वी दिल्ली से हीं की थी.

    ये है शीला का अतीत और इतिहास
    बता दें कि शीला दीक्षित पंजाब के कपूरथला में जन्मी थीं. वह एक पंजाबी फैमिली से आती हैं. उनकी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के जीसस एंड मैरी स्कूल और विश्वविद्यालय की पढ़ाई मिरांडा हाउस कॉलेज से हुई. शादी से पहले उनका नाम शीला कपूर हुआ करता था. बाद में उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और स्वतंत्रता सेनानी उमाशंकर दीक्षित के पुत्र विनोद कुमार दीक्षित से शादी कर ली और शीला दीक्षित हो गईं.

    बता दें कि उमाशंकर दीक्षित, गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ आजादी के आंदोलन में भाग लिया था. वे उन्नाव जिले के रहने वाले थे. उनके पुत्र और शीला दीक्षित के पति विनोद कुमार दीक्षित आईएएस अधिकारी थे और शीला दीक्षित के मिरांडा हाउस में पढ़ने के दौरान दोनों को प्रेम हुआ था.

    शीला दीक्षित ने अपने 'ससुरजी' से ही राजनीति का 'ककहरा' सीखा. जब 1969 में इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाला गया तो इंदिरा गांधी का साथ देने वालों में उमाशंकर दीक्षित भी शामिल थे. इसके बाद जब इंदिरा गांधी ने सत्ता में वापसी की तो उन्हें उनकी वफादारी का ईनाम मिला और 1974 में उन्हें देश का गृहमंत्री बना दिया गया.बाद में उमाशंकर दीक्षित कर्नाटक के गवर्नर बने. संजय गांधी युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर जोर देते थे. ऐसे में शीला दीक्षित एक अच्छा विकल्प बनीं. इसके बाद 80 के दशक में ही एक रेल यात्रा के दौरान शीला दीक्षित के पति विनोद कुमार दीक्षित की मौत हो गई. जिसके बाद शीला दीक्षित ने बच्चों और परिवार की राजनीतिक विरासत दोनों को ही बखूबी संभाला.

    गांधी परिवार के साथ नज़दीकियां
    1984 के आम चुनावों में जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के समर्थन में राजनीतिक लहर चली तो शीला दीक्षित ब्राह्मण बहुल कन्नौज सीट से चुनकर लोकसभा पहुंचीं. गांधी परिवार से शीला दीक्षित की नजदीकियों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनकर राजीव गांधी कोलकाता से दिल्ली के लिए जा रहे थे तो उनके साथ उस विमान में प्रणब मुखर्जी के साथ शीला दीक्षित भी थीं और इन्हीं ने उनके प्रधानमंत्री बनाए जाने की रणनीति बनाई थी.

    शीला दीक्षित राजीव गांधी मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बनीं. 1991 में उनके ससुर उमाशंकर दीक्षित का देहांत हो गया,जिसके बाद शीला दीक्षित पूरी तरह से दिल्ली में ही बस गईं. 1991 में फिर से नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई लेकिन अब गांधी परिवार के करीबियों का उतना सम्मान नहीं रहा था तो शीला दीक्षित मंत्रीपद से दूर ही रहीं.

    जब 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली तो पुराने वफादारों की भी वापसी हुई. 1998 में शीला दीक्षित को कांग्रेस ने पूर्वी दिल्ली से बीजेपी के लालबिहारी तिवारी ने उन्हें हरा दिया. इसी दौर में कुछ दिन के लिए विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सरकार बनी थी और सुषमा स्वराज कुछ दिनों के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं. लेकिन जल्द ही बीजेपी की सरकार गिरी और चुनावों में कांग्रेस को सत्ता मिली.

    और दिल्ली की सत्ता प्रमुख बनीं दीक्षित
    लोकसभा चुनाव हारने के बाद विधानसभा में गोल मार्केट से चुनी गईं शीला दीक्षित पर कांग्रेस ने भरोसा दिखाया और उन्हें दिल्ली की सत्ता सौंप दी. इसके बाद शीला दीक्षित ने हैट्रिक मारी और तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री चुनी गईं. इसके बाद अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने 2013 में शीला दीक्षित को पार्टी से बेदखल कर दिया. बाद में केरल की राज्यपाल बनीं लेकिन 2014 में NDA सरकार आने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

    साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने एक रणनीति के तहत शीला दीक्षित को मैदान में उतारा है. बीते 12मई को इस सीट पर वोटिंग हो चुकी है. ऐसा कहा जा रहा है कि इस चुनाव में शीला दीक्षित को मुस्लिमों ने वोट किया है.

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