हरियाणा में बिना जिलाध्यक्षों के लड़ रही थी कांग्रेस!
लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी चली है. इसका असर इतना है कि हरियाणा में दस की दस सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया है. यहां तक कि यहां कांग्रेस के सबसे बड़े नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र सिंह हुड्डा को भी हार का मुंह देखना पड़ा है. रोहतक जैसा कांग्रेस का गढ़ उसके हाथ से चला गया है. कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया उसकी एक बड़ी वजह और भी है. वो वजह खुद कांग्रेस है. उसके पीछे पार्टी की गुटबाजी और जमीन पर संगठन की गैर मौजूदगी है. 2014 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही पार्टी बिखरी हुई है. सभी जिला और ब्लॉक कमेटियां भंग हैं. जिसकी वजह से किसी भी जिले में न पार्टी की मासिक बैठक हो रही है न तो सामूहिक रूप से सरकार के खिलाफ कोई धरना-प्रदर्शन हो पा रहा है. सवाल ये है कि जब संगठन की ये स्थिति है तो कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला कैसे कर पाती?
इस समय हरियाणा में कांग्रेस कम से कम पांच गुटों में बंटी हुई है. ये गुट हैं पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर, पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा, पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला और भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई के समर्थकों के. जिसमें से हुड्डा और तंवर गुट तो लंबे समय से प्रदेश में एक दूसरे के खिलाफ ही शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं. कांग्रेस की रैलियों में भी दोनों गुटों के कार्यकर्ता अलग-अलग रंग की पगड़ी पहनकर शक्ति प्रदर्शन करते हैं. ऐसे में इस हार ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस का संगठन ऐसे ही चला तो भविष्य में और बड़ा नुकसान हो सकता है. कुछ ही माह बाद हरियाणा का विधानसभा चुनाव होने वाला है. (ये भी पढ़ें: PHOTOS: लोकसभा चुनाव 2019 की वो तस्वीरें जिन्हें भुला नहीं पाएंगे आप! )
हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी हार गए हैं (file photo)
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी ने कई प्रदेशों में कांग्रेस को चुस्त-दुरुस्त करने का काम किया. फ्रंटल संगठनों में भी फेरबदल किया. लेकिन हरियाणा में कोई बदलाव नहीं किया. हालात ये हैं कि हुड्डा और तंवर गुट की जंग में उलझी पार्टी में पांच साल से जिला अध्यक्षों की नियुक्ति तक नहीं हुई है. प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने कमेटियां भंग कर दी थीं. पिछले चार साल से पार्टी में ब्लॉक स्तर पर भी कोई अध्यक्ष नहीं है. विधानसभा, लाेकसभा और स्थानीय निकाय चुनाव बिना संगठन के हुए और परिणाम ये है कि बीजेपी इतनी बड़ी हो गई है कि अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरना पहले जैसा आसान नहीं होगा.
सूत्रों का कहना है कि एक-दो बार जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर कवायद शुरू हुई लेकिन वह पूरी नहीं हुई. पिछले पांच साल में जितने भी स्थानीय निकाय चुनाव हुए हैं उनमें किसी में भी पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई. यहां तक कि मुस्लिम बहुल जिला मेवात में भी बीजेपी ने कांग्रेस को बैकफुट पर कर रखा है.
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार नवीन धमीजा का कहना है कि कांग्रेस की इतनी बुरी स्थिति अपनी गुटबाजी और संगठन न होने की वजह से हुई है. इतनी कमजोर कांग्रेस का सीधा फायदा बीजेपी को मिला है. पिछले साल हुए पांच नगर निगमों के चुनाव में भी पार्टी ने सिंबल पर उम्मीदवार नहीं उतारे. अशोक तंवर चाह रहे थे कि सिंबल पर चुनाव लड़ा जाए लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसके विरोध में थे. पार्टी समर्थकों को समझ नहीं आया कि किसे वोट किया जाए. नतीजतन बीजेपी ने पांचों निगमों पर कब्जा कर लिया था.
हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर भी हार गए (file photo)
यही हाल लोकसभा चुनाव में भी हुआ. क्या बिना जिलाध्यक्ष और संगठन के कोई पार्टी चुनाव लड़ती है? लेकिन कांग्रेस ने लड़ा. धमीजा का कहना है कि इस चुनाव में कई कांग्रेस नेता एक दूसरे को निपटाने में लगे रहे, ताकि दिल्ली दरबार में उनका अपना वजूद कायम रह सके. इसका बड़ा नुकसान हुआ. कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, अशोक तंवर, किरण चौधरी, दीपेंद्र हुड्डा व कुलदीप विश्नोई जैसे चेहरे हैं लेकिन ये सब संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की जगह अपने-अपने गुट को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं. हरियाणा कांग्रेस का गढ़ रहा है. बीजेपी ने पहली बार यहां पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई है और अब लोकसभा की सभी सीटों पर कब्जा कर लिया है.
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