टीएन शेषन एक ऐसे चुनाव आयुक्त जो कहते थे \'मैं नेताओं को नाश्ते में खाता हूं\'

5 वर्ष पहले
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  • 1990 से 1996 के बीच सीईसी रहे टीएन शेषन ने बदल दी थी आयोग की पूरी तस्वीर
  • 69 साल से काम कर रहा आयोग लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा में रहा शेषन का ही कार्यकाल

न्यूज डेस्क. चुनाव आयोग की सख्ती की जब भी बात होती है, तब तिरुनेल्लई नारायण अय्यर यानी टीएन शेषन का नाम जुबां पर आ जाता है। 1990 से 1996 में टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। उन्होंने आयोग में जो कसावट और पारदर्शिता लाए उसकी तारीफ आज भी होती है। वे एक सख्त आईएएस अधिकारी थे। वहीं, मौजूदा चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा अभी विपक्ष के निशाने पर हैं। लोकसभा चुनाव-2019 में निर्णयों को लेकर चुनाव आयोग की आलोचना भी हुई और कुछ मामलों में सवाल भी खड़े हुए। हमने इस बारे में देश के 22वें मुख्य चुनाव रहे ओम प्रकाश रावत से सवाल पूछा कि \'टीएन शेषन के समय जो चुनाव आयोग था और आज जो चुनाव आयोग है, उसे आप कैसे देखते हैं?\'

 

1) दोनों दौर अलग, तुलना नहीं हो सकती- रावत

इस पर उन्होंने कहा कि किसी भी समय कोई भी चुनाव तुलनात्मक नहीं हो सकता। शेषन जी के दौर में परिस्थितियां, समय और हालात अलग थे। अब अलग हैं। अब नई टेक्नोलॉजी आ गई है। सोशल मीडिया आ गया है। फेक न्यूज मिनटों में वायरल हो जाती हैं। ऐसे में देखा जाए तो मौजूदा चुनाव अच्छे से संपन्न हुए हैं। छोटी-मोटी घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो कहीं कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं हुई। कुछ मामलों में निर्णय लेने में आयोग लेट जरूर हुआ। जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट को दखल करना पड़ा। हालांकि समय, प्रसंग और परिस्थितियों के हिसाब से चुनाव बहुत अच्छे से संपन्न हुए। अब सिर्फ गणना होना बाकी है। 

फर्जी वोटर आईडी बनने पर रोक लगाई। पात्रता पूरी करने वालों को ही आईडी जारी करवाना शुरू किया। चुनाव आयोग की मशीनरी को ऑटोनॉमस करने का काम किया। रिश्वत रोकने, शराब बांटने, वोटर्स को लालच देने जैसे कामों को रोकने के लिए ऐसा किया गया। कैंडीडेट्स के खर्चे की लिमिट पर पाबंदी लगाई। लाउडस्पीकर से प्रचार करने पर पहले लिखित में अनुमित लेने को अनिवार्य किया। 

शेषन ने ही फोटो आइडेंटिटी कार्ड जारी करवाए थे। शुरुआत में सरकार ने इसे विफल करने की कोशिश की थी, लेकिन शेषन ने रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल्स एक्ट के नियम 37 के तहत, चुनाव रोकने की धमकी दी। बाद में कोर्ट में मामला हल हुआ और जल्द ही फोटो आइडेंटिटी कार्ड जारी होना शुरू हो गए। टीनए शेषन के समय काम में जरा सी भी लापरवाही बरतने या आचरण के विरुद्ध काम करने पर सीनियर पुलिस अधिकारियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों का ट्रांसफर कर दिया जाता था।

निर्वाचन आयोग की यह प्रतिष्ठा शेषन के बाद आए चुनाव आयुक्तों ने भी बरकरार रखी। एसवाय कुरैशी ने तब के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद को मीटिंग के लिए निर्वाचन सदन में बुलाया था, क्योंकि स्वतंत्र तौर पर काम करने वाला आयोग शास्त्री भवन (कानून मंत्री का घर) जाता तो इसका गलत संकेत जाता। एक दौर ऐसा भी था जब मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के चेम्बर के बाहर बैठे रहते थे, चुनाव की तारीखों के लिए। 

 

ऐसे में आयोग कितनी इमानदारी से चुनाव करवाता होगा, समझा जा सकता है लेकिन टीएन शेषन ने इस परिपाटी को बदलकर ही रख दिया। उन्होंने आयोग में ऐसी कसावट पैदा कि नेता उनसे घबराने लगे। वे कहते थे कि 'मैं नेताओं को नाश्ते में खाता हूं'। 

चुनाव आयोग ने बंगाल में तय समय से 19 घंटे पहले ही प्रचार पर रोक लगा दी। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि आयोग मोदी सरकार के सामने झुक गया। आयोग ने मोदी बायोपिक को रोका लेकिन नमो टीवी को लेकर सवाल खड़े हुए। यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने भारतीय आर्मी को मोदीजी की सेना कहा था। इस पर आयोग ने उन्हें नोटिस जारी किया था। हालांकि बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इसी बात को दोहराया। 

मिशन शक्ति के बारे में जानकारी देने पर चुनाव आयोग ने पीएम मोदी को क्लीनचिट दी। हालांकि 66 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जताई।

भारतीय निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है। भारतीय संविधान के भाग-15 के अनुच्छेद-324 से 329 में निर्वाचन से संबंधित उपबंध दिए गए हैं। निवार्चन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो पहले हो) तक होता है। वहीं अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या 62 वर्ष की उम्र तक होता है।

  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना
  • मतदाता सूची तैयार करना
  • राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह देना
  • चुनाव का आयोजन करना
  • आचार संहिता का प्रावधान करना
  • चुनाव क्षेत्रों का परसीमन
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत भारतीय चुनाव आयोग का गठन किया गया। गांवो और शहरों में होने वाले छोटे चुनावों में चुनाव आयोग की भूमिका नहीं होती। मुख्य चुनाव आयुक्त आयोग के प्रमुख होते हैं।
  • 1950 में सिर्फ मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ इसकी शुरुआत की गई थी
  • 1993 से इसमें दो और सदस्यों को जोड़ दिया गया। इसके बाद यह तीन सदस्यीय बॉडी हो गई
  • सदस्य 6 साल या 65 वर्ष उम्र (जो भी पहले जल्दी हो) तक पद पर बने रहते हैं
  • सुनील अरोड़ा देश के 23वें मुख्य चुनाव आयुक्त हैं
  • मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है
  • सुकुमार सेन देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे

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