अनुराग कुमार, पटना
7वें और आखिरी चरण में 19 मई को वोटिंग होनी है। आखिरी चरण के चुनाव में जिन सीटों पर देशभर की नजर है, उनमें पटना साहिब की लोकसभा सीट भी है। पटना साहिब की सीट से बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को उम्मीदवार बनाया गया है, वहीं महागठबंधन से हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा ताल ठोक रहे हैं।
दोनों पार्टियों के उम्मीदवार अपनी तरफ से चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक ओर जहां बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में रविशंकर प्रसाद के समर्थन में रोड शो किया, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भी पटना में रोड शो प्रस्तावित है।
दिलचस्प है पटना साहिब की लड़ाई
परिसीमन के बाद पटना साहिब लोकसभा सीट पर 2009 में पहली बार चुनाव हुआ था। इससे पहले बिहार की राजधानी में केवल एक सीट पटना के नाम से थी, नए परिसीमन में पटना लोकसभा क्षेत्र को 2 हिस्सों में बांटकर पटना साहिब और पाटलीपुत्र लोकसभा सीट अस्तित्व में आए। बिहार की राजनीति का केंद्र बिंदु होने की वजह से यह सीट एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए नाक का सवाल बनी हुई है। इस सीट पर शुरुआत से ही बीजेपी का दबदबा रहा है और पिछले दोनों लोकसभा चुनावों (2009 और 2014) में बीजेपी के उम्मीदवार रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने शानदार जीत दर्ज की थी।
क्या हैं मुद्दे?
पटना के कदमकुआं इलाके में हार्डवेयर का कारोबार करने वाले गौरव कुमार कहते हैं, 'हमारा मुद्दा केवल विकास है और जो विकास की बात करेगा हम उसे ही वोट देंगे।' इसके अलावा गौरव राष्ट्रवाद का भी समर्थन करते हैं और एक केंद्र में मजबूत सरकार की वकालत करते हैं। गौरव कहते हैं, 'राष्ट्रवाद इस देश के लिए जरूरी है, देश से प्यार करना तो गर्व का विषय है। देश में एक स्थिर और मजबूत सरकार होनी चाहिए।'
वहीं कर्नाटक में आईटी कंपनी में नौकरी वाले अदनान अहमद पार्टी नहीं उम्मीदवार के आधार पर वोट देने की वकालत करते हैं। वह कहते है, 'मैं किसी पार्टी नहीं, उम्मीदवार के काम और उसकी छवि के हिसाब से वोट देना सही मानता हूं। हमारे लिए रोजगार अहम मुद्दा है, अगर राज्य में रोजगार के समुचित अवसर होते तो बड़ी संख्या में युवाओं को राज्य से बाहर जाना नहीं पड़ता।'
बीजेपी का रहा है दबदबा
पटना साहिब निर्वाचन क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। बख्तियारपुर, फतुहा, पटना साहिब, दीघा, कुम्हरार और बांकीपुर हैं। इन 6 विधानसभा सीटों में से 5 पर बीजेपी का कब्जा है। फतुहा की एकमात्र सीट आरजेडी के खाते में है। इस लोकसभा क्षेत्र में कायस्थ आबादी ज्यादा होने की वजह से इस सीट पर पार्टियां अकसर कायस्थ उम्मीदवारों को ही टिकट देती रही हैं। एक बार फिर इस सीट पर जंग इसी जाति के दो धुरंधरों के बीच है।
बीजेपी की इस समीकरण पर होगी नजर
कायस्थों के अलावा ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत जैसी अगड़ी जातियों के मतदाताओं की भी यहां ठीक-ठाक आबादी है। कुछ समय पहले तक नाराज चल रहीं अगड़ी जातियां आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण और बालाकोट एयरस्ट्राइक की वजह से एकबार फिर बीजेपी के पक्ष में गोलबंद होती दिख रही हैं। इसका फायदा केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को इस सीट पर मिल सकता है।
इसके अलावा ओबीसी मतदाता भी चुनावी नतीजे बदलने का माद्दा रखते हैं। पटना के शहरी इलाके में वैश्य वोटर्स की संख्या काफी ज्यादा है, वैश्य बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं, साथ ही नीतीश कुमार की जेडीयू कुर्मी-कुशवाहा वोटबैंक से भी बीजेपी को काफी उम्मीदें होंगी। इस सीट पर रामविलास पासवान की एलजेपी दलित वोटबैंक बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर कराने में सफल रही तो रविशंकर प्रसाद की राह आसान हो सकती है।
महागठबंधन को एम-वाई वोटबैंक से उम्मीदें
इस सीट पर शत्रुघ्न को सबसे ज्यादा उम्मीद आरजेडी के परंपरागत एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण से होंगी। इसके अलावा दलितों की केंद्र-बीजेपी के प्रति नाराजगी बिहारी बाबू के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। शत्रुघ्न सिन्हा की कोशिश अपने स्टारडम को भुनाने पर भी होगी। वह गुजरे जमाने के लोकप्रिय ऐक्टर रहे हैं और राजनीति में भी काफी मुखर रहे हैं। उनकी बेबाक छवि का फायदा भी उन्हें मिल सकता है।
हालांकि,महागठबंधन के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, पूर्व सीएम जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और नई-नई बनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जैसे दल शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में अपना वोटबैंक कितना ट्रांसफर करवा पाएंगे यह बड़ा सवाल है।
7वें और आखिरी चरण में 19 मई को वोटिंग होनी है। आखिरी चरण के चुनाव में जिन सीटों पर देशभर की नजर है, उनमें पटना साहिब की लोकसभा सीट भी है। पटना साहिब की सीट से बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को उम्मीदवार बनाया गया है, वहीं महागठबंधन से हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा ताल ठोक रहे हैं।
दोनों पार्टियों के उम्मीदवार अपनी तरफ से चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। एक ओर जहां बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हाल ही में रविशंकर प्रसाद के समर्थन में रोड शो किया, वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भी पटना में रोड शो प्रस्तावित है।
दिलचस्प है पटना साहिब की लड़ाई
परिसीमन के बाद पटना साहिब लोकसभा सीट पर 2009 में पहली बार चुनाव हुआ था। इससे पहले बिहार की राजधानी में केवल एक सीट पटना के नाम से थी, नए परिसीमन में पटना लोकसभा क्षेत्र को 2 हिस्सों में बांटकर पटना साहिब और पाटलीपुत्र लोकसभा सीट अस्तित्व में आए। बिहार की राजनीति का केंद्र बिंदु होने की वजह से यह सीट एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए नाक का सवाल बनी हुई है। इस सीट पर शुरुआत से ही बीजेपी का दबदबा रहा है और पिछले दोनों लोकसभा चुनावों (2009 और 2014) में बीजेपी के उम्मीदवार रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने शानदार जीत दर्ज की थी।
क्या हैं मुद्दे?
पटना के कदमकुआं इलाके में हार्डवेयर का कारोबार करने वाले गौरव कुमार कहते हैं, 'हमारा मुद्दा केवल विकास है और जो विकास की बात करेगा हम उसे ही वोट देंगे।' इसके अलावा गौरव राष्ट्रवाद का भी समर्थन करते हैं और एक केंद्र में मजबूत सरकार की वकालत करते हैं। गौरव कहते हैं, 'राष्ट्रवाद इस देश के लिए जरूरी है, देश से प्यार करना तो गर्व का विषय है। देश में एक स्थिर और मजबूत सरकार होनी चाहिए।'
वहीं कर्नाटक में आईटी कंपनी में नौकरी वाले अदनान अहमद पार्टी नहीं उम्मीदवार के आधार पर वोट देने की वकालत करते हैं। वह कहते है, 'मैं किसी पार्टी नहीं, उम्मीदवार के काम और उसकी छवि के हिसाब से वोट देना सही मानता हूं। हमारे लिए रोजगार अहम मुद्दा है, अगर राज्य में रोजगार के समुचित अवसर होते तो बड़ी संख्या में युवाओं को राज्य से बाहर जाना नहीं पड़ता।'
बीजेपी का रहा है दबदबा
पटना साहिब निर्वाचन क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। बख्तियारपुर, फतुहा, पटना साहिब, दीघा, कुम्हरार और बांकीपुर हैं। इन 6 विधानसभा सीटों में से 5 पर बीजेपी का कब्जा है। फतुहा की एकमात्र सीट आरजेडी के खाते में है। इस लोकसभा क्षेत्र में कायस्थ आबादी ज्यादा होने की वजह से इस सीट पर पार्टियां अकसर कायस्थ उम्मीदवारों को ही टिकट देती रही हैं। एक बार फिर इस सीट पर जंग इसी जाति के दो धुरंधरों के बीच है।
बीजेपी की इस समीकरण पर होगी नजर
कायस्थों के अलावा ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत जैसी अगड़ी जातियों के मतदाताओं की भी यहां ठीक-ठाक आबादी है। कुछ समय पहले तक नाराज चल रहीं अगड़ी जातियां आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण और बालाकोट एयरस्ट्राइक की वजह से एकबार फिर बीजेपी के पक्ष में गोलबंद होती दिख रही हैं। इसका फायदा केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को इस सीट पर मिल सकता है।
इसके अलावा ओबीसी मतदाता भी चुनावी नतीजे बदलने का माद्दा रखते हैं। पटना के शहरी इलाके में वैश्य वोटर्स की संख्या काफी ज्यादा है, वैश्य बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं, साथ ही नीतीश कुमार की जेडीयू कुर्मी-कुशवाहा वोटबैंक से भी बीजेपी को काफी उम्मीदें होंगी। इस सीट पर रामविलास पासवान की एलजेपी दलित वोटबैंक बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर कराने में सफल रही तो रविशंकर प्रसाद की राह आसान हो सकती है।
महागठबंधन को एम-वाई वोटबैंक से उम्मीदें
इस सीट पर शत्रुघ्न को सबसे ज्यादा उम्मीद आरजेडी के परंपरागत एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण से होंगी। इसके अलावा दलितों की केंद्र-बीजेपी के प्रति नाराजगी बिहारी बाबू के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। शत्रुघ्न सिन्हा की कोशिश अपने स्टारडम को भुनाने पर भी होगी। वह गुजरे जमाने के लोकप्रिय ऐक्टर रहे हैं और राजनीति में भी काफी मुखर रहे हैं। उनकी बेबाक छवि का फायदा भी उन्हें मिल सकता है।
हालांकि,महागठबंधन के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी, पूर्व सीएम जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और नई-नई बनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जैसे दल शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में अपना वोटबैंक कितना ट्रांसफर करवा पाएंगे यह बड़ा सवाल है।