'मेरा परिवार' से 'इट्स माइ फ़ैमिली' तक बदलाव का सफ़र

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संयुक्त परिवारों वाला देश भारत बहुत तेज़ी से बुनियादी संरचना में आते बदलाव को देख रहा है.

पिता जी! मेरा दफ़्तर ख़ासा दूर पड़ जाता है लिहाज़ा मैं ऑफ़िस के पास एक कमरा लेने का विचार कर रहा हूं. लेकिन मैं वीकेंड पर घर आता-जाता रहूंगा.पिछले कुछ सालों में इस तरह का संवाद शहरी घरों में आम हो गया है, जहाँ मामूली सुविधा के लिए, थोड़ी असुविधा से बचने के लिए लोग परिवार से अलग होने का फ़ैसला कर लेते हैं.

वहीं पूर्वोत्तर राज्य मेघालय के गारो और खासी समुदाय में मातृसत्तात्मक परिवार देखने को मिलते हैं. इन समुदायों में पारिवारिक संपत्ति मां से बेटी को विरासत में मिलती है और पति अपनी पत्नियों के घर में रहते हैं. लेकिन, हिंदू संयुक्त परिवारों के मुक़ाबले अन्य समुदायों में ऐसे कुनबों को वो दर्ज़ा हासिल नहीं है जो हिंदुओं के बीच है. संयुक्त परिवारों में कुल देवता के लिए भोग को साझा रसोई में पकाया जाता है. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के मुताबिक़, हिंदू अविभाजित परिवार को एक क़ानूनी मान्यता भी मिली हुई है.

खेतिहर समुदायों के बीच ऐसे परिवारों का विकास उस वक़्त हुआ था जब खेती के लिए आधुनिक उपकरण इजाद नहीं हुए थे. ऐसे में बड़े परिवार खेती में बहुत मददगार होते थे क्योंकि खेती की ज़रूरत के वक़्त मेहनत के लिए तमाम हाथ इकट्ठे हो जाते थे और अन्य संसाधनों को भी आपस में साझा किया जाता था. हालांकि, ये भी एक हक़ीक़त है कि बहुत से कारोबारी समुदायों जैसे कि मारवाड़ियों के बीच, अब भी बड़े ख़ानदानों की परंपरा को मज़बूती से निभाया जा रहा है. इसकी वजह कारोबारी हित हैं. आप इसकी मिसाल, फ़िल्म, 'हम आप के हैं कौन' में देख सकते हैं, जो सुपरहिट रही थी.

लेकिन एक बदलाव जो दिखाई देता है वो ये कि महिलाओं की तालीम में इज़ाफ़ा और उनके सशक्तिकरण ने परिवारों की बनावट को बदला है. अब महानगरों और दूसरे बड़े शहरों में अविवाहित लड़के और बड़ी तादाद में लड़कियां भी अपने मां-बाप से अलग रहने लगे हैं. इसकी वजह कभी, घर और उन के शिक्षण संस्थानों के बीच ज़्यादा दूरी होती है. तो कभी घर और दफ़्तर के बीच ज़्यादा फ़ासला कारण बनता है. हालांकि, परिवार से अलग रहने के बाद भी ये युवा पारिवारिक दायित्वों की डोर से बंधे रहते हैं.

बहुत से समलैंगिक जोड़ों के लिए भी यह एक ज़िंदगी जीने के एक नए तरीके के तौर पर उभरा है जहां वे साथ रह सकते हैं क्योंकि सामाजिक तौर पर वे शादी नहीं कर सकते.

 

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