यह भी पढ़ेंदरअसल हिंदी की विडंबनाएं बहुत सारी हैं. वह हिंदी प्रदेश में भी हिंदी की किसी की मातृभाषा नहीं रही. वह भोजपुरी, मैथिली, मगही, अवधी, ब्रज, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, बैंसवाड़ी जैसी बोलियां बोलने वालों के बीच पढ़ाई-लिखाई की भाषा के रूप में विकसित होती रही. लेकिन मध्यवर्गीय भारत में उसकी इस भूमिका पर पिछले दो-तीन दशकों में अंग्रेज़ी ने ग्रहण लगा दिया है. पढ़ाई का माध्यम हिंदी की जगह अंग्रेजी होती चली गई है.
मगर सच्चाई क्या है? स्कूलों से हिंदी बहिष्कृत होती जा रही है. कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में वह पहले भी कम थी और अब पूरी तरह विलोप के कगार पर है. दिल्ली विश्वविद्यालय में अगर अंग्रेज़ी में 99 फ़ीसदी में दाख़िला मिल पाता है और कई कट ऑफ़ के बाद 88-90 फीसदी पर एकाध लोगों को किन्हीं दूर-दराज के कॉलेजों में ऐडमिशन मिल जाता है, तो हिंदी में दाखिले के लिए 60 फ़ीसदी लाना काफ़ी होता है. यानी कोई हिंदी पढ़ना नहीं चाहता. इतिहास-भूगोल और विज्ञान की पढ़ाई तो अंग्रेज़ी में वैसे भी होती है.
हिंदी की तीसरी विडंबना उसके लोगों का भावुक और नकली हिंदी प्रेम है जिसकी परिणति दरअसल विश्वासघात में होती है. ये तथाकथित हिंदी प्रेमी शुद्ध हिंदी के नाम पर उर्दू और फ़ारसी शब्दों की छंटाई की बात करते हैं और ऐसी हास्यास्पद हिंदी बोलते दिखाई पड़ते हैं जिससे लगता है कि ऐसी हिंदी न बोलना ही बेहतर है. फिर ये हिंदी प्रेमी लोग ख़ुद मराठी, बांग्ला, तमिल, तेलुगू जैसी भाषाएं सीखते नहीं और उनकी अशुद्ध हिंदी का मज़ाक बनाते हैं.
सवाल है, हिंदी के लिए रास्ता कहां से बनता है? इत्तिफ़ाक़ से हिंदी धीरे-धीरे उन ग़रीबों की, आदिवासियों और दलितों की भाषा बनती जा रही है जहां पहली पीढ़ियां स्कूल में पांव रख रही हैं. यह अनायास नहीं है कि इन दिनों हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं में भी सबसे ज़्यादा जो साहित्य पढ़ा जा रहा है, वह दलित साहित्य है. हालांकि एक दौर था जब अंबेडकर कहा करते थे कि अंग्रेज़ी इस देश में बाघिन का दूध है- इसे पी लेने वाले को भारत में कोई छू नहीं सकता.
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सच्चाई की जीत होती होगी तभी ऐसा कहा जाता है.. लेकिन आजतक सच्चाई की एक जीत के बारे में प्रमाणित नहीं हो सका, जबकि झूठ की जीत के हजारों लाखों प्रमाण मिल जायेंगे.. अगर विश्वास नहीं तो किसी फेंकू से पूछकर देख लो🤣😂😆😁
हिन्दी तुम्हें आती नहीं अंग्रेजी मुझे भाती नहीं भाषा के इस बेमेल में संवाद हमारी हो पाती नहीं|
“हिंदी दिवस के दिन, हिंदी बोलने वाले, हिंदी बोलने वालों से कहते हैं कि हिंदी में बोलना चाहिए”।
एनडीटीवी जैसा चैनल हिंदी से नफरत हिंदू से नफरत भारत देश से नफरत और भारत की संस्कृति से नफरत करने वाला एकमात्र पत्रकार संगठन है
बिल्कुल सही, आज़ादी के 74 वर्ष बाद हम हिंदी दिवस की बधाई देते हुए गर्व महसूस करते हैं तो यह वाकई अचरज की बात है। लगभग डेढ़ अरब की आबादी वाले देश में हिंदी अब भी सर्वामान्य नहीं है तो कौन जवाबदेही लेगा..? हम हिंदी को अब भी पूरी तरह से अभिव्यक्ति की भाषा क्यों नहीं बना सके हैं..?
reminder. every hotel sends min 10 reports daily to general manager this is beginning music to Taj hotels, not the end. picture abhi baki hai. i want to start with other tata companies also, donot waste my time. media to telecast. report or resign publicly.
क्या हिंदी दिवस, जब डिजिटल इंडिया में हिंदी के लिए 2 दबाना पड़े। क्या यही है राष्ट्रभाषा। तो धन्य हैं ऐसे लोग।
ndtv का एक पत्रकार हिंदी में लिखकर हिंदी भाषियों को गाली दे रहा है
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