ये विचार भारतीय संविधान को यहां के समाज के लिए एक मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में सामने रखने वाले डॉ भीमराव आंबेडकर के हैं, लेकिन इसे दुनिया भर में सामाजिक विकास के एक पैमाने पर देखा जा सकता है। हमारे देश में महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए सामाजिक, राजनीतिक, विधिक और प्रशासनिक स्तर पर दावों और वादों में कमी नहीं रही है। लेकिन सच यह है कि आज भी इस दिशा में इतनी कामयाबी नहीं मिल सकी है, जिस पर संतोष किया जा सके। गौरतलब है कि वैश्विक आर्थिक मंच की अंतरराष्ट्रीय लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट, 2021...
लेकिन अगर इस दौर में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को अवसरों से ज्यादा वंचित होना पड़ा और आर्थिक भागीदारी में कमी आई है तो इसका मतलब यह है कि यहां के समाज में सार्वजनिक जीवन से लेकर कामकाज तक के ढांचे में स्त्रियों के प्रति भेदभाव का रवैया ज्यादा मुखर हुआ है। दरअसल, समाज में किसी तबके के बीच बदलाव की राह इस बात से तय होती है कि मुख्यधारा की राजनीति में उसकी भागीदारी कितनी सशक्त है। अफसोस की बात है कि अंतरराष्ट्रीय लैंगिक भेद रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा गिरावट महिलाओं के राजनीतिक...
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