स्‍वच्‍छता और आत्‍मनिर्भरता के प्रति समाज में संचार सराहनीय

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दुनिया मेरे आगे: अतीत की अहमियत

संगीता कुमारी बहुत वक्त के बाद आज हमारे आसपास, शासन के काम में और यहां तक राजनीतिक मुद्दे के तौर पर जो मूल्य विकसित होते या फलते-फूलते दिख रहे हैं, वह थोड़ी राहत देता है। खासतौर पर स्वच्छता और आत्मनिर्भरता को लेकर जो राजनीतिक और सामाजिक सजगता आई है, वह गौरतलब है। दरअसल, ये बातें हमारे देश में विकास के मूल्यों में पहले से मौजूद रही हैं, लेकिन कई बार हम दूसरी दिशा में सोचते हुए इनका ध्यान नहीं रख पाते हैं। मसलन, आत्मनिर्भरता, स्वच्छता, स्वदेशी, जनकल्याण, कौशल विकास, बुनियादी शिक्षा, आत्मविकास,...

जाना चाहि, ताकि बच्चे जब शिक्षा पूरी करके निकलें, तब वे आत्मनिर्भर बन कर समाज को मजबूती दें। शिक्षा पूरी करने के बाद विद्यार्थी किसी न किसी कौशल में निपुण होकर कमाने खाने योग्य बन सके। जड़, जमीन से जुड़ी प्रकृति का ज्ञान ही स्वावलंबी होने की पहचान है। गांधी बच्चों को एक पौधे के समान मानते थे, जिसे जैसा आकार दिया जाएगा, वह वैसा ही वृक्ष बनेगा। वह पौधे की परख करने वाली संस्था को एक मजबूत बुनियादी पकड़ वाली संस्था के रूप में देखना चाहते थे, न कि खोखली संस्था के रूप में। वे न केवल अंग्रेजों से आजादी...

 

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