देश की शीर्ष अदालत ने पिछले दिनों जमीयत उलेमा-ए-हिंद एवं संबंधित अन्य याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा कि मीडिया का एक वर्ग जिन खबरों का प्रचार-प्रसार कर रहा है, वह बुरी तरह सांप्रदायिकता से ग्रस्त है। यह वर्ग इतना शक्तिशाली है कि उसे सरकार या अदालत-किसी की फिक्र नहीं है। इसके अलावा खासतौर से इंटरनेट मीडिया के मंचों और तमाम वेबसाइटों पर ऐसी फर्जी खबरें चलाई जा रही हैं, जो अंतत: देश की छवि खराब कर रही हैं। चूंकि अभी यूट्यूब, ट्विटर, फेसबुक समेत कथित ‘न्यू मीडिया’ के तहत चैनल बनाने-चलाने के लिए...
इन मंचों पर मौजूद लोगों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनका मूल काम समाज में नफरत रोपना, सांप्रदायिकता भरा विष वमन करना और कट्टर धार्मिक मान्यताओं का प्रचार-प्रसार करना है। हालांकि मुख्यधारा के मीडिया में भी कुछ ऐसे लोगों की मौजूदगी है, जिससे सरकार भी खुद कठघरे में आती है। लिहाजा अदालत ने यह सवाल केंद्र सरकार से पूछा है कि सामाजिक वैमनस्य और कट्टर मजहबी मान्यताओं को प्रश्रय देने वाले निजी टीवी चैनलों के खिलाफ आखिर उसने क्या कदम उठाए हैं? ये सवाल आज इसलिए ज्यादा प्रासंगिक हैं, क्योंकि...
यूं गूगल से लेकर वाट्सएप तक ने फर्जी खबरों की रोकथाम के कई प्रबंध किए हैं, लेकिन कोरोना काल में इंटरनेट मीडिया के रास्ते गहरा गए फेक न्यूज के रोग ने आम लोगों को इस दुविधा में डाल दिया है कि वे किसे सही मानें और किसे गलत। फर्जी सूचनाएं फैलाने वाली वेबसाइटों को प्रतिबंधित करना एक तरीका हो सकता है, लेकिन यह समाधान नहीं है, क्योंकि एक रास्ता बंद होता है तो दूसरे कई रास्ते खुल जाते हैं। पाबंदी से सूचना के कई विश्वसनीय स्नेत भी संकट में पड़ते हैं। ऐसे में जरूरत है कि एक तरफ मुख्यधारा का मीडिया...
आवाज को दबाने-कुचलने के तमाम प्रयासों के बावजूद पत्रकार ही हैं, जो अपना काम पूरी कर्मठता और साहस के साथ करते रहे हैं। मामला चाहे शाहीन बाग, नागरिकता संशोधन कानून और कृषि कानूनों को लेकर चलते रहे देशव्यापी प्रदर्शनों का हो या फिर लाकडाउन में सबसे ज्यादा पीड़ित प्रवासी मजदूरों की व्यथा का, लोग यह बात दावे से कह सकते हैं कि वंचितों-पीड़ितों की बात सामने लाने और उन्हें अंतत: न्याय दिलाने की एक मजबूत कड़ी के रूप में पत्रकार ही आगे आए हैं, लेकिन ये दायित्व निभाने पर भी शायद अब वह मौका आ गया है जब...
अदालत की चिंता यूट्यूब समेत अन्य इंटरनेट मीडिया मंचों को लेकर भी है, क्योंकि वहां फर्जी खबरों की भरमार है और उन पर किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं है। उल्लेखनीय है कि इंटरनेट मीडिया, वेब पोर्टल्स समेत आनलाइन सामग्री के नियमन के लिए हाल में सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को लागू किया गया है, जिनकी वैधता के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों से लंबित याचिकाओं को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित करने के लिए केंद्र ने याचिका दी है। सर्वोच्च अदालत इन पर छह हफ्ते बाद सुनवाई करेगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि जो काम...
Desh bhakti se kuchh ho sakta hai
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