सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती: हिमाचल के डलहौजी में TB का इलाज कराने के लिए 5 महीने ठहरे थे नेताजी; सिर्फ बावड़ी का पानी पीते थे

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सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती: हिमाचल के डलहौजी में TB का इलाज कराने के लिए 5 महीने ठहरे थे नेताजी; सिर्फ बावड़ी का पानी पीते थे SubhasChandraBose HimachalPradesh dalhousie tuberculosis ParakramDivas

125th Birth Anniversary: Netaji Subhas Chandra Bose Special Connection With Tourist Place Dalhousie Of Himachal Pradeshसुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती:डलहौजीअंग्रेजों ने उन्हें रिहा कर दिया था और रिहा होने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस डलहौजी आ गए थे।देश आज क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है। इस मौके पर हम आपको बता रहे है, उनकी जिंदगी से जुड़ा एक अहम किस्सा। इसके बारे में शायद ही लोग जानते हों या शायद बहुत कम लोगों को पता होगा। हिमाचल प्रदेश के एक पर्यटन स्थल से नेताजी...

नेताजी यहां लगभग 5 महीने रुके थे और वे जिस होटल और कोठी में ठहरे थे, वह आज भी मौजूद हैं। उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए बेड, कुर्सी, टेबल और अन्य सामान भी संभालकर रखा गया है। नेताजी जिस कमरे में ठहरे थे, वहां अब लोगों का जाना वर्जित है। कोई भी इस जगह के फोटो नहीं ले सकता।वे लोग भी अब दुनिया में नहीं हैं, जिन्होंने उस वक्त नेताजी को देखा था, लेकिन लोगों ने उन बुजुर्गों से नेताजी के किस्से सुन रखे हैं। कवि एवं साहित्यकार बलदेव मोहन खोसला डलहौजी निवासी हैं। उन्होंने भी नेताजी को क्षय रोग होने और इसके...

नेताजी डलहौजी के सबसे पुराने गांधी चौक पर स्थित होटल मेहर के कमरा नंबर 10 में रहे थे। इसी दौरान जैन धर्मवीर को नेताजी के डलहौजी का आने का पता चल गया और उन्होंने नेताजी से गांधी चौक के पास पंजपूला मार्ग पर स्थित कोठी कायनांस में रहने का आग्रह किया, जिसे नेताजी ने मान लिया। नेताजी होटल छोड़कर कोठी में रहने चले गए। जैन धर्मवीर, नेताजी के सहपाठी रहे कांग्रेस नेता डॉ.

बावड़ी के पास मौजूद जंगल में बैठकर प्रकृति से संवाद करते थे। नेताजी के लिए गुप्त डाक भी यहां आती थी, जिसका आदान-प्रदान जंगल में ही होता था। हालांकि, डाक कौन लेकर आता और जाता था, यह आज तक रहस्य ही बना हुआ है। लेकिन, नियमित सैर और बावड़ी का पानी पीकर नेताजी को काफी स्वास्थ्य लाभ हुआ।बावड़ी को आज सुभाष बावड़ी के नाम से जाना जाता है। बावड़ी की देखरेख का जिम्मा नगर परिषद डलहौजी को मिला है। शहर के एक चौक का नाम भी नेताजी के नाम पर सुभाष चौक रखा गया है। चौक पर नेताजी की विशाल प्रतिमा लगी हुई है।...

लेकिन, किसी से मिले बिना और बिना बताए। कहा जाता है कि वे समाचार पत्र लाने और ले जाने वाले ट्रक में बैठकर पठानकोट तक गए थे। इसके बाद नेताजी फिर से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। हालांकि, ये किस्सा बेहद दिलचस्प है, लेकिन इस वजह से डलहौजी का नेताजी से खास नाता जुड़ गया।

 

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि तो ये होगी कि लोग / मीडिया मुलायम सिंह यादव जैसों को नेताजी कहना बंद कर दें !

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