सुप्रीम कोर्ट को यह समझ लेना चाहिए कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार है

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सुप्रीम कोर्ट को यह समझ लेना चाहिए कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार है SupremeCourt Reservation FundamentalRights सुप्रीमकोर्ट आरक्षण मौलिकअधिकार

वर्ष 2020 में पहले की तरह उच्चतम न्यायालय ने दो बार ये विचार प्रस्तुत किया है कि आरक्षण संविधान के तहत एक मूल अधिकार नहीं है.दूसरा मामला जून 11 को सुना गया था जो किमें छात्रों के लिए आरक्षण से संबंधित था. चूंकि इस मामले में याचिका को वापस लेना पड़ा था इसलिए इसका निर्णय उपलब्ध नहीं है.

अपीलीय कार्यवाही के दौरान सुप्रीम कोर्ट को ये बताया गया कि उत्तराखंड सरकार ने सरकारी सेवाओं में एससी व एसटी के प्रतिनिधित्व संबंधी आंकड़े इकट्ठा करने के लिए एक समिति बनाई थी. यह कदम कई ज्वलंत सवाल खड़े करता है: क्या अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दर्शाने वाले आंकड़े भी पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 16 के अंतर्गत राज्य की ‘राय’ बनाने के लिए काफी नहीं थे?

साथ ही यह आदेश एक जैसे और उनसे भिन्न लोगों को एक जैसा मानकर अनुच्छेद 16 में दी गई अवसर की समता को छीनता है. अनुच्छेद 13 ऐसे आदेश को इन शब्दों में खारिज करता है: उत्तराखंड सरकार का यह आदेश साफ तौर पर असंवैधानिक था और हाईकोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त कर दिया.

इसलिए राज्य की सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था अनुच्छेद 16 के तहत भी की जा सकती है, क्यों कि यह समता की अवधारणा पर आधारित है. इस प्रकार, मनमाना ढंग से आरक्षण तथा पदोन्नति में आरक्षण देने से मना करने वाला सरकारी आदेश, या अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले पिछड़े वर्गों के हित में आरक्षण दिए बगैर रिक्त सरकारी पदों की घोषणा करने वाला विज्ञापन/अधिसूचना, इन मूल अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.मुकेश कुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक और गौरतलब राय यह है कि सरकार राजकीय सेवाओं में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं हैं.

नीति निर्देशक तत्वों के महत्व के बारे में अनुच्छेद 37 ये घोषणा करता है कि नीति निर्देशक तत्व किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे, लेकिन फिर भी ये देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा.मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि मूल अधिकारों तथा नीति निर्देशक तत्वों के बीच संतुलन संविधान के मूल ढांचे का अनिवार्य हिस्सा है.अनुच्छेद 21 की सीमाओं का विस्तार भी नीति निर्देशक तत्वों की सहायता से ही किया गया है.

गौरतलब है कि इन दोनों अनुच्छेदों में राज्य को विकल्प देने वाले शब्द ‘कर सकेगा’ का इस्तेमाल नहीं हुआ है. कोर्ट का यह कथन समता के प्रावधानों, नीति निर्देशक तत्वों तथा संविधान निर्माताओं की मंशा को पूर्ण रूप से अनदेखा और नाकाम करता है. जब अन्य सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब इंसाफ पाने के लिए अदालत ही आखिरी सहारा होती है. अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय के पास ताकत है कि वह ‘पूर्ण न्याय’ करने की खातिर ‘कोई भी आदेश’ जारी कर सकता है. इसलिए दो जजों की बेंच द्वारा दी गई उपरोक्त राय पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद है.

 

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आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं, आजाद भारत में गरीब को गरीब बनाये रखने और समाज के दूसरे गरीबों से अलग रखकर वोटों की थोक गिनती का राजनीतिक बाजार बन गया है।गरीबों को न्याय और आजादी संघर्ष ,को रोकने का सशक्त राजनीतिक हथियार भी है।आरक्षण हमेशा रहने वाली संवैधानिक व्यवस्था नहीं है ।

बस इसी आरक्षण कीमत शिक्षित मध्यम वर्ग चुका रहा है योग्यता को अवसर देना चाहिए

nhi

😂😂😂 आरक्षण मौलिक अधिकार 😂😂

यस अब्सोल्युटली राइट।

ये किस कमीने ने कहा दिया कि आरक्षण मौलिक अधिकार है

आपको भी सही से समझ लेना चाहिए कि आरक्षण कभी मौलिक अधिकार न तो रहा है और न रहेगा। आरक्षण प्राप्त लोगों के लिए भी आरक्षण बैसाखी ही है और योग्यता पर कुठाराघात है। SCI को आरक्षण को समाप्त करके भारत की योग्यता को सम्मान करें और सभी को समान रूप से आगे बढ़ने अवसर प्रदान करें।

अच्छा।।। तोह अब तुम बताओगे उच्चतम न्यायालय को संविधान के बारे में।। सुबह सुबह नशा करके कुछ भी लिख देते हो।।

Desh ka gaddaro sirf Native Aadhar per Aarkshan ka awake keyo laga ye ho ye may like Adhikar nahi hai 10 Sal k liye tha Tum apni nursing pahle keyo nahi garibo ko dete ho

नही समझेगा बैठाये गये जज विशेष योजना के तहत है वहा पर

मुझे कोर्ट पर 1% भरोसा नही आरोपियो को सजा से बचना हो तो कोर्ट की शरण ले जहा अपराधी को कुछ हो जाय कोर्ट आधी रात को खुलकर सुनवाई करेगा जनता मर जाए तो मरने दो रोज का कामआदमी मर जाता वकील को पैसे देते देते और जज साहब की तारिखे बढती ही जाती वकील जज सब बिकाऊ है इनसे न्याय की उम्मीद नही

KAISE THODA BATA DO NAXAL ISI KA PORTAL JO FAKE PLANT KERTA

Bhakkk🖕

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