शिक्षा अपने मूल में सामाजीकरण की एक प्रक्रिया है. जब-जब समाज का स्वरूप बदला शिक्षा के स्वरूप में भी परिवर्तन की बात हुई. आज कोरोना संकट के दौर में ऑनलाइन शिक्षा के जरिये शिक्षा के स्वरूप में बदलाव का प्रस्ताव नीति निर्धारकों के द्वारा पुरजोर तरीके से रखा जा रहा है.
कोरोना संकट में शारीरिक दूरी बनाए रखकर शिक्षा के लिए तकनीकी का प्रयोग एक बात है. वैसे भी तकनीकी के विकास के साथ ही शिक्षा में भी उसका उपयोग होता रहा है. यह होना जरूरी भी है. वैसे यह तथ्य भी बहुत मजेदार है कि शिक्षाविदों के द्वारा शिक्षा नीति बनाने की परंपरा जो राधाकृष्णन से चली आ रही थी, उसे खत्मकर बिड़ला-अंबानी जैसे पूंजीपतियों के नेतृत्व में शिक्षा नीति तैयार करने का निर्णय अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार के द्वारा किया गया.
यूजीसी की स्थापना का उद्देश्य ही राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा के विकास के लिए अनुदान देना और देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नियमन बनाना था. जब सब्सिडी ही खत्म कर दी जानी है तो यूजीसी की जरूरत कहां! जिस केंद्रीकृत व्यवस्था की अवधारणा लाई जा रही है, पहले इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री को करनी थी, अब उसमें थोड़ा परिवर्तन कर शिक्षा मंत्री को जिम्मेदारी देने की बात की गई है.
अब ये मैनेजर ही शिक्षा के नीति निर्धारक होंगे और नियम तय करेंगे. यही तय करेंगे कि उस शिक्षण संस्थान का उद्देश्य क्या होगा! शिक्षकों और कर्मचारियों की सेवा-शर्तों को भी अब यही गवर्नर्स तय करेंगे. प्रमोशन से लेकर निलंबन तक सब यहीं तय होगा. यही भाग्य विधाता होंगे. शिक्षा के सार्वभौमिक स्वरूप से इसका संबंध था, सार्वभौमिक ज्ञान से इसका संबंध था. सार्वभौमिक ज्ञान पर आधारित विश्व-दृष्टि से जुड़े मूल्यों से ही विश्वविद्यालय की परिभाषा बनी थी.
एकलव्य का अंगूठा नहीं उसकी भ्रूण हत्या की तैयारी हो चुकी है. उच्च शिक्षण संस्थान रूपी ये कंपनियां अपने मुनाफे के लिए लागत को कम करेंगी. तमाम निजी संस्थानों के विज्ञापन को देखेंगे तो आपको इसका सबूत भी मिल जाएगा. कोरोना संकट का उपयोग करते हुए ऑनलाइन की अनिवार्यता को धकेलने की वर्तमान सरकार की नीति को इस परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है.
आप सबके माइक को बंद कर दें तो प्रक्रिया एकतरफा होगी, माइक खोल दें तो शोर में सब गुल हो जाएगा. किसी के घर से टीवी का शोर तो किसी के रसोई से आती चीख पुकार. कुछ लोग ऑनलाइन शिक्षा में सामाजिक भेदभाव को देख रहे हैं. उनका तर्क है कि पिछड़े तबके के पास स्मार्टफोन, कम्प्यूटर, डेटा, आदि नहीं है, इसलिए वे ऑनलाइन के लाभ से वंचित रह जाएंगे.
ऐसा नागरिक जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे उदार मूल्यों के साथ आलोचनात्मक विवेक हो. यही नैतिक मूल्य भी था. साहित्य और समाज विज्ञान के जरिये इन नैतिक मूल्यों को निर्मित करने की नीति थी. आज वह पूरी नीति ही गलत बताई जा रही है.
Sorry, be positive.
To be honest we have no option left to fight again with Corona or to lockdown again school. yes it will be considered as a permanent option for at least 1year if vaccine come into play.
Naseem2901
शिक्षा माफियाओं का पैसा ऐठने का नया तरीका है
Online study se villages me koi ferk nhi pdega Jb tk vaha mobile seva or net speed sahi nhi hogi
खुलेआम जुआँ चल रहा है सरकार नाकामयाब है इंटरनेट पर कोई लगाम नहीं ऐसे में अपने बच्चों को कौन ऑनलाइन पढ़ाई की आजादी देगा । मैनें वेबसाइट और कभी सुबूत दिए पर कुछ नहीं हुआ लगता है कोई बड़ा आदमी इसे ऑपरेट करवा रहा है ।
Online study क्या करेगी जब गाँव मे network रहता नहीं है और net-speed बिल्कुल नहीं आती है ऐसे में बच्चे कहाँ से पढेगे
Exactly......
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।
स्रोत: Amar Ujala - 🏆 12. / 51 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: News18 India - 🏆 21. / 51 और पढो »
स्रोत: Amar Ujala - 🏆 12. / 51 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »