वैक्सीन कहां होती है फेल और कहां पास

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आपने आज जो वैक्सीन लगवाई, क्या वह भविष्य में आने वाले कोरोना के नए वैरिएंट पर भी होगी प्रभावी? सुनें या पढ़ें नवभारत गोल्ड पर 'वैक्सीन कहां होती है फेल और कहां पास' पर।

आपमें से कई लोगों ने अब तक कोविड-19 यानी कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी का टीका लगवा लिया होगा और कई 1 मई से टीका लगवाने के लिए तैयार होंगे। टीका लगवाना एक अच्छा उपाय है। अगर आपने दोनों टीके लगवा लिए हैं तो आप काफ़ी हद तक कोरोना वायरस के हमले से ख़ुद को सुरक्षित मान सकते हैं। लेकिन एक सवाल सभी के दिमाग़ में है, आपके भी दिमाग़ में होगा कि अगर आने वाले समय में कोरोना वायरस के रंग-रूप में कोई बदलाव आया तो क्या ये टीके हमें उस नए रंग-रूप वाले वायरस के हमले से भी सुरक्षित रहेंगे। इस लेख में हम इसी...

इन्हीं फंदों को वैज्ञानिक शब्दावली में ऐंटीबॉडी कहते हैं और एक बार बनने के बाद ये लंबे समय तक शरीर में बने रहते हैं। वह हमारे शरीर को यह छलावा देता है कि तुम्हारे शरीर पर फ़लां वायरस या बैक्टीरिया ने हमला कर दिया है और तुम उसके लिए फंदे तैयार करना शुरू करो, लेकिन इसके लिए वह पूरा का पूरा वायरस या बैक्टीरिया आपके शरीर में नहीं डाल सकता। वह उसके कुछ अंग डालता है। इसे फिर से हाथी वाले उदाहरण से समझते हैं।

अब कोई और टीका लीजिए, जिसमें हाथीनुमा वायरस के छोटे-छोटे पैर इंजेक्ट किए गए हैं। उस शरीर में जो फंदे बनेंगे, वे हाथी के पैर को जकड़ने के हिसाब से बनेंगे। लेकिन वे भी पहले वैक्सीन की ही तरह कारगर होंगे और जब वास्तविक हाथीनुमा वायरस हमला करेगा तो वे फंदे उसके पैरों को जकड़ लेंगे। अच्छी बात यह है कि आम तौर पर वायरसों में जो बदलाव आते हैं, वे इतने बड़े पैमाने पर नहीं होते, इसलिए अधिकतर टीके हर बदले हुए वायरस के लिए प्रभावकारी होते हैं और हो रहे हैं। लेकिन कोई-कोई बदलाव वाक़ई बड़े स्तर के होते हैं जैसा कि कोरोना वायरस के दक्षिण अफ़्रीकी म्यूटेंट के बारे बताया जा रहा है।

 

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