इमेज स्रोत,वसीम जाफ़र और क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के विवाद के बीच पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान अनिल कुंबले ने वसीम जाफ़र का समर्थन किया है.
जाफ़र के एक ट्विटर पोस्ट पर जवाब देते हुए कुंबले ने लिखा, "मैं आपके साथ हूं वसीम, आपने सही किया, दुर्भाग्य से खिलाड़ियों को आपका मार्गदर्शन नहीं मिलेगा." टीम में सांप्रदायिकता फैलाने के कथित आरोपों के बाद जाफ़र ने ट्वीट किया था, "मैंने जय बिस्टा को कप्तान बनाने का सुझाव दिया था लेकिन सीएयू के अधिकारियों ने इक़बाल का समर्थन किया. मैंने मौलवियों को नहीं बुलाया. मैंने इस्तीफ़ा दिया क्योंकि सिलेक्टर और सेक्रेटरी अयोग्य खिलाड़ियों को बढ़ावा दे रहे थे. टीम सिख समुदाय का एक मंत्र बोलती थी, मैंने सुझाव दिया था कि 'गो उत्तराखंड' बोल सकते हैं.
वह तो भारत देश का दुर्भाग्य है देश की जनता ने बड़ी-बड़ी हस्तियों को अपने सर पर बैठाया और देश ने इन्हें तरक्की दिलाई इन लोगों ने ही देश के साथ गद्दारी करी राहुल गांधी का खून वही कौन है जो एक विशेष विचारधारा का है जो कहते रहे हैं मैं हम कानून मानते हैं नए प्रधानमंत्री को मानते हैं
वसीम जाफर का हुलिया ही सबकुछ बता दे रहा है। वसीम जाफर ने अंततः खुद स्वीकार किया कि ट्रेनिंग के दौरान कोरोना निर्देश का उल्लंघन कर खिलाड़ी के बीच नमाज पढ़ाने के लिए मौलवी को बुलाया जा रहा था। यह सब क्या साबित कर रहा है..?
tsrawatbjp शर्म आती है उत्तराखंड में गढ़वालियों की नाक के नीचे नारा सरदारों वाला थू। पहले जमीनें दे दी कोई भी खरीदे अब नारा भी बदल गया लगता है पहाड़ से पहाड़ियों के अस्तित्व ही मिट जाएगा वहाँ नए गुरुद्वारे और डाँडो में मजिदो को अज़ान बजेगी। बहुत खूब डबल इंजन RSSorg
Hindustan me bas ek Cricket he bacha tha jo in sab bekar ki baato se bacha hua tha..magar ab lagta hai ke Cricket ka zawaal bhe ab shuru ho chuka hai..
सबसे आसान आरोप आज जो किसी भी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति के ऊपर लगाया जा सकता है
इससे पता चलता है कि दुनिया के सारे धर्म कितने कमजोर है कभी कोई कार्टून बनाने से आहत हो जाता है तो कोई जय हनुमान न बोलने से आहत हो जाते है
किसी मुस्लिम अधिकारी या बड़े मुस्लिम खिलाड़ी (वसीम जफर) पर सब से आसान आरोप जो है वो संम्प्रदायिकता ही का है। जनता भी झट से सच मान लेती है जबकि मुस्लिम कहीं भी जाऐ,संप्रदायिक शब्द सुनने को मिल ही जाता है,चाहे वो साहब का आफिस हो या चौक चौराहा।
फरक समजेलच..
औकात पे आ ही जाते है
sachin_rt ImRo45 SGanguly99 ?
कितना आसान है इस दौर में मुजरिम होना मक़्तुल हो कर ख़ुद अपना ही क़ातिल होना दानिश
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