रायः जर्मनी की जनता ने दिया जोर का झटका | DW | 27.09.2021

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जर्मनी के मतदाताओं ने देश के राजनीतिक परिदृश्य को हिला डाला है. बड़े दलों के प्रभुत्व को इतिहास की ओर खिसका दिया गया है. डॉयचे वेले की प्रधान संपादक ManuelaKC लिखती हैं कि यह एक जरूरी बदलाव है. germany GermanElection AngelaMerkel

लेकिन जर्मनी बदलाव के लिए शायद उतना तैयार नहीं है, जितना ग्रीन्स और उनकी चांसलर पद की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक ने उम्मीद की थी. खासकर वहां, जहां बदलाव के लिए धन देना होगा.

ऐसा इसलिए क्योंकि नवउदारवादी एफडीपी के बिना सरकार बनाना लगभग असंभव है. फ्री डेमोक्रैट्स असल में ग्रीन्स की कुछ इच्छाओं पर पानी फेर सकते हैं. उनका भरोसा बाजार, डिजिटलीकरण और लाल फीताशाही कम करने में है. वे जलवायु परिवर्तन तो चाहते हैं लेकिन टैक्स बढ़ाए बिना. अब ये होगा कैसे, यह उन्हें गठबंधन के लिए होने वाली बातचीत के दौरान स्पष्ट करना होगा.एक चीज जो एकदम स्पष्ट है, वो है रूढ़िवादियों की हार.

बेशक, सीडीयू/सीएसयू नई सरकार बनाने की भरसक कोशिशें करेंगे. इसके लिए कथित जमैकन गठबंधन किया जा सकता है. जमैकन गठबंधन जमैका के झंडे के रंग से आया है, यानी काले, हरे और पीले का गठबंधन. मतलब सीडीयू/सीएसयू का ग्रीन्स और एफडीपी से गठजोड़. और यह संभव है. भले ही कंजर्वेटिव दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, फिर भी ऐसा हो सकता है. पिछले कुछ दशकों में तीन बार ऐसा हो चुका है कि चांसलर का पद जर्मन संसद की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नहीं मिला. क्योंकि सरकार उसकी बनती है, जिसके पास गठबंधन में बहुमत हो.मध्य-वामपंथी दल एसपीडी के नेता ओलाफ शॉल्त्स के सामने यही चुनौती है. उनकी पार्टी तो सबसे बड़ी बन गई है. हालांकि चुनाव में टक्कर कांटे की थी लेकिन उन्होंने बाजी तो मार ली.

परन्तु, वह निजी तौर पर क्या सोचते हैं और किसे वह सबसे अहम मानते हैं, यह अब भी स्पष्ट नहीं है. वह मैर्केल 2.0 जैसे लगते हैं. यानी उनके बारे में आप अनुमान लगा सकते हैं, तथ्यों पर टिकते हैं और भवनाओं में ज्यादा नहीं बहते. ऐसा लगता है कि मतदाताओं को भी यह पसंद है.

 

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