राजनीति: सवालों में फिलस्तीन का भविष्य

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बदलती परिस्थितियों में फिलस्तीन का भविष्य इजराइल की उस मंशा के अनुसार नजर आ रहा है, जिसके संकेत पूर्व में ही मिल चुके हैं। इजराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू का विश्वास रहा है और वे कहते भी आए हैं कि फिलस्तीनी समस्या के समाधान को परे रख कर भी अरब देशों के साथ शांति समझौते किए जा सकते हैं।

ब्रह्मदीप अलूने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का यथार्थवादी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि राष्ट्र की शक्ति का विकास ही उसके हितों को पूर्ण करने का एकमात्र माध्यम है और विदेश नीति संबंधी निर्णय राष्ट्रीय हितों के आधार पर लिए जाने चाहिए, न कि नैतिक सिद्धांतों और भावनात्मक मान्यताओं के आधार पर। 1947 से विश्व राजनीति में उथल-पुथल मचाने वाले इजराइल और फिलस्तीन का जमीनी विवाद अब इन दो राष्ट्रों तक ही सीमित रहने के संकेत मिलने लगे हैं। इस साल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘डील आफ द सेंचुरी’ के दांव...

स्टेट का दांव खेला था, जिससे सीरिया, इराक और ईरान तबाह हो जाएं, इन देशों के तेल भंडार नष्ट हो जाएं और वह तेल की दुनिया का बादशाह हो जाए। शिया-सुन्नी संघर्ष और आर्थिक फायदों के लिए यह समूचा क्षेत्र ही अस्थिर हो गया। ऐसे में इजराइल के धुर विरोधी देश अब फिलस्तीन से ज्यादा अपने अस्तित्व को बचाने की फिक्र कर रहे हैं। इसी का परिणाम है कि मध्य पूर्व में रणनीतिक साझेदारी में अरब की अगुवाई का सपना देखने वाला सऊदी अरब अब इजराइल का हमराह बन रहा है, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने कभी की होगी। इजराइल अब...

 

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