यौन उत्पीड़न का शिकार बेटे को मां ने ऐसे दिलाया न्याय

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एक भारतीय मां की आपबीती, जिसने यौन उत्पीड़न के शिकार अपने 13 साल के बेटे को न्याय दिलाने के लिए चार साल लंबी लड़ाई लड़ी.

16 अगस्त 2019, देश अभी भी स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना ही रहा था कि यह दिन मेरे जीवन के यादगार दिनों में शामिल हो गया.मैं कुछ देर के लिए जैसे थम सी गई. सबकुछ समझने में मुझे कुछ सेकंड का वक़्त लगा. यह मेरे बेटे को न्याय दिलाने की चार साल की लंबी लड़ाई की जीत थी, जिसके साथ उसके स्कूल के एक चपरासी ने यौन उत्पीड़न किया था.

"मम्मा... इस स्कूल के चपरासी बहुत अजीब हैं. उनमें से एक ने मुझे पीछे से पकड़ने की कोशिश की और अपना हाथ मेरी पैंट के अंदर डाल दिया."बोर्डिंग स्कूल में उसे छोड़े बमुश्किल से चार दिन ही हुए थे. मैं इस घटना के बाद सन्न थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. प्रिंसिपल ने पहले ही चपरासी को नौकरी से निकाल दिया था और उसे अपने परिवार के साथ स्कूल परिसर से जाने को कह दिया था. शायद उन्होंने सोचा होगा कि यह सज़ा के रूप में पर्याप्त है लेकिन मेरे अंदर की मां संतुष्ट नहीं थी.स्कूल के प्रिंसिपल के पास अपनी मजबूरियां थीं. उनके स्कूल की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती और आज मैं उनकी इस दुविधा को पूरी तरह से समझ सकती हूं. मैंने स्थानीय पुलिस स्टेशन में एफ़आईआर दर्ज कराई.

मुझे लगा कि मैं अपने बच्चे की रक्षा नहीं कर पाई. मेरे आंखों से आंसू बह रहे थे और ये गुस्से के आंसू थे.मैं इस लड़ाई में बिल्कुल अकेली थी. मेरे पति ने कहा था कि कोर्ट जाने के झंझट में क्यों फंसना. बच्चे की पढ़ाई प्रभावित हो जाएगी और हम लोगों को परेशानी होगी सो अलग. मेरे रिश्तेदार जानना चाहते थे कि मैं इस मामले को बड़ा मुद्दा क्यों बना रही हूं क्योंकि यह मेरे बेटे के साथ हुआ था न कि बेटी के साथ.

इस पूरी कवायद में एक अच्छी बात यह थी कि जो पुलिस अधिकारी मेरे बेटे का केस देख रहे थे, वो काफ़ी मददगार थे. वो हर सुनवाई पर न केवल हमारे पास आते थे बल्कि पूरे समय तक हमारे साथ रहते थे. उस सज्जन की वजह से पुलिस विभाग के प्रति मेरा विश्वास बढ़ा है. मैं अपने बेटे के उस चेहरे को कभी नहीं भूल सकती. वो न तो डरा हुआ था और न ही भयभीत दिख रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर दर्द था.

मेरे बेटे ने मुझे गले लगाते हुए कहा,"आप फ़ाइटर हैं. बिना लड़े आप कैसे हार मान सकती हैं? क्या हम इतनी दूर लड़ाई को बीच में छोड़ देने के लिए आए थे?"कमज़ोर मां बनना कोई विकल्प नहीं था. मुझे ख़ुद को साहस देना पड़ा और लड़ाई लड़ने के लिए फिर से खड़ा होना पड़ा.अब मेरी बारी थी. मुझे बचाव पक्ष के वकील के सवालों का जवाब देना था. मुझे भी कुछ ऐसे सवालों से गुज़रना पड़ा जिन्होंने मुझे गुस्से से भर दिया.

 

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