अब इस भत्ते को लेकर कर्मचारी संघ भी सवाल उठा रहें हैं. दरअसल, इस भत्ते के पीछे परिवार नियोजन की परिकल्पना थी. 1976 में इस भत्ते को देने की शुरुआत की गई थी. इसके अंतर्गत कम से कम 210 रुपए और अधिकतम एक हजार रुपए तक दिए जाते थे. इसके लिए शर्त थी कि राज्य कर्मचारी की उम्र 40 वर्ष से ज्यादा हो और दो से ज्यादा बच्चे न हों. सचिवालय संघ के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री सीमित परिवार वालों को देशभक्त बता रहे हैं.
सरकार का दावा है कि स्वैच्छिक परिवार कल्याण भत्ते को केंद्र सरकार पहले की खत्म कर चुकी है. इसे उत्तराखंड सरकार ने भी समाप्त कर दिया है. अब लोग खुद परिवार नियोजन और सीमित परिवार को लेकर अब जागरूक हो गए हैं. ऐसे में अब इस भत्ते की कोई जरूरत नहीं है लिहाजा इसे समाप्त किया गया है. इतना ही नहीं इसके अलावा जिन पांच भत्तों को खत्म किया गया है, उनके औचित्य को लेकर भी सरकार का कहना है कि बदलते वक्त में अब इन भत्तों की कोई जरुरत नहीं रही है.
यूपी सरकार ने जिन 6 भत्तों को खत्म किया है, इसमें स्वैच्छिक परिवार कल्याण प्रोत्साहन भत्ता के अलवा पांच भत्ते हैं-4. कैश हैंडलिंग भत्ताइन भत्तों को खत्म करने को लेकर कर्मचारी संघ सरकार से बेहद नाराज है. सचिवालय संघ के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह का कहना है कि सरकार ने कर्मचारियों के साथ गलत किया है. यह कर्मचारी हितों पर कुठाराघात किया गया है.
इंडिया ताज़ा खबर, इंडिया मुख्य बातें
Similar News:आप इससे मिलती-जुलती खबरें भी पढ़ सकते हैं जिन्हें हमने अन्य समाचार स्रोतों से एकत्र किया है।
स्रोत: News18 India - 🏆 21. / 51 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: AajTak - 🏆 5. / 63 और पढो »
स्रोत: Amar Ujala - 🏆 12. / 51 और पढो »
स्रोत: Jansatta - 🏆 4. / 63 और पढो »