यूरोपीय संघ के कोर्ट ऑफ जस्टिस ने पोलैंड पर एक मिलियन यूरो यानी लगभग नौ करोड़ रुपये प्रतिदिन का जुर्माना लगाया है. ऐसा पोलैंड द्वारा कुछ विवादित कानून पास करने के कारण किया गया. माना जाता है कि यूरोपीय संघ के किसी सदस्य पर अब तक का यह सबसे बड़ा जुर्माना है.
जब तक पोलैंड अदालत के फैसले का पालन नहीं करता, तब तक उस पर लगीं पाबंदियां जारी रहेंगी. ये पाबंदिया बीती जुलाई में लगाई गई थीं क्योंकि पोलैंड ने अपने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक व्यवस्था बनाई है. आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था राजनीतिक आधार पर जजों को हटाने का रास्ता है.जुलाई में यूरोपीय कोर्ट ने पोलैंड को यह व्यवस्था खत्म करने का आदेश दिया था. कोर्ट का कहना था कि यह व्यवस्था निष्पक्ष न्याय के रास्ते में बाधा है.
यूरोपीय आयोग ने 9 सितंबर को पोलैंड पर जुर्माने की सिफारिश की थी. यूरोपीय संघ के अन्य सदस्यों का कहना है कि संघ के सिद्धांतों की अनदेखी करने वाले पोलैंड को ईयू से मिलने वाली सब्सिडी बंद होनी चाहिए. बेल्जियम के प्रधानमंत्री आलेक्जांडर डे क्रू ने बुधवार को इस बात का जिक्र किया किया कि पोलैंड यूरोपीय संघ से फंड पाने वाले सबसे बड़े दशों में से है. उन्होंने कहा,"आपको पैसा तो चाहिए पर मूल्यों को खारिज कर देंगे, ऐसा नहीं चल सकता. पोलैंड यूरोपीय संघ को कैश मशीन समझकर नहीं चल सकता.
सिकोरस्की ने कहा कि पोलैंड की सत्ताधारी पार्टी देश की संवैधानिक अदालत पर पहले ही लगाम लगा चुकी है और अब वह बाकी अदालतों पर भी नकेल कसना चाहती है.पोलैंड ने देश के सुप्रीम कोर्ट में अनुशासनात्मक चैंबर 2018 में शुरू किया था. इसके तहत जजों और वकीलों को बर्खास्त किया जा सकता है. ईसेजे को डर है कि इस चैंबर की ताकतों का इस्तेमाल निष्पक्षता बरतने वालों और राजनेताओं की मर्जी के आगे ना झुकने वालों के खिलाफ किया जा सकता है. तभी से यह चैंबर विवाद की जड़ बना हुआ है.
यूरोपीयी देश पहले भी पोलैंड पर न्यायालयों और मीडिया की आजादी पर हमले करने के आरोप लगाते रहे हैं. यूरोपीय संघ का कहना है कि पोलैंड ने न्यायपालिका का राजनीतिकरण कर दिया है और उन जजों जो नियुक्त कर दिया है जो सत्ताधारी लॉ एंड जस्टिस पार्टी के प्रति निष्ठावान हैं.
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